सरकारी सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए सक्षम प्राधिकार से पूर्व अनुमति की आवश्यकता : न्यायालय

By भाषा | Updated: July 23, 2021 19:12 IST2021-07-23T19:12:32+5:302021-07-23T19:12:32+5:30

Prior permission required from competent authority to prosecute government servant: Court | सरकारी सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए सक्षम प्राधिकार से पूर्व अनुमति की आवश्यकता : न्यायालय

सरकारी सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए सक्षम प्राधिकार से पूर्व अनुमति की आवश्यकता : न्यायालय

नयी दिल्ली, 23 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने भूमि संबंधित मामले में एक सरकारी क्लर्क को संरक्षण प्रदान करने के राजस्थान उच्च न्यायालय का निर्णय बरकरार रखते हुए शुक्रवार को कहा कि कथित आपराधिक कृत्य के लिए किसी सरकारी सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए सक्षम प्राधिकार से पूर्व अनुमति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 किसी अधिकारी को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाने की बात कहती है जो अपना आधिकारिक दायित्व निभाते समय हुए किसी अपराध का आरोपी हो।

शीर्ष अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 197 अदालत को ऐसे अपराध के मामले में, सक्षम प्राधिकार की पूर्व अनुमति से संबंधित मामले को छोड़कर, संज्ञान लेने से रोकती है।

पीठ ने कहा कि आधिकारिक दायित्व निभाते समय किए गए कथित आपराधिक कृत्य के लिए मुकदमा चलाने के वास्ते धारा 197 के तहत सक्षम प्राधिकार की पूर्व अनुमति आवश्यक है और ‘‘पूर्व अनुमति वाले मामले को छोड़कर कोई अदालत ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगी।’’

न्यायालय ने कहा कि सरकारी सेवकों को दुर्भावनापूर्ण या उत्पीड़न करने संबंधी मुकदमे से बचाने के लिए उन्हें विशेष श्रेणी में रखा गया है। इसने साथ ही कहा कि लेकिन यह व्यवस्था भ्रष्ट अधिकारियों को नहीं बचा सकती।

पीठ ने कहा कि धोखाधड़ी, रिकॉर्ड में छेड़छाड़ या गबन में अधिकारियों की कथित संलिप्तता को ‘आधिकारिक दायित्व निभाते समय किया गया अपराध’ नहीं कहा जा सकता।

शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह देखने के लिए मानदंडों का अनुपालन किया जाना चाहिए कि ‘किए गए अपराध’ का ‘दायित्व निभाते समय हुए अपराध’ से कोई उचित संबंध है या नहीं।

इसने कहा कि इसलिए असल सवाल यह है कि क्या संबंधित अपराध का आधिकारिक दायित्व से सीधा कोई संबंध है।

न्यायालय ने मामले का जिक्र करते हुए कहा कि भूमि संबंधित प्रकरण में फाइल से जुड़े बड़े अधिकारियों को तो संरक्षण मिल गया, लेकिन क्लर्क को निचली अदालत से संरक्षण नहीं मिला जो प्रतिवादी-2 है जिसने कागजी कार्य किया।

शीर्ष अदालत राजस्थान निवासी इंद्रा देवी की अपील पर सुनवाई कर रही थी जिन्होंने आरोप लगाया था कि आरोपी लोगों ने अनुसूचित जाति की महिला, कैंसर से पीड़ित उनके पति और परिवार के अन्य सदस्यों को बेघर कर फर्जीवाड़े का अपराध किया है।

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