Prayagraj Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को समाजवादी पार्टी (सपा) पर हमला करते हुए कहा कि उनके शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री के पास कुंभ की समीक्षा करने का समय नहीं था और एक गैर सनातनी को इसका प्रभारी बनाया गया था। विधानसभा में अपने संबोधन में आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘हमने आपकी (सपा) तरह आस्था के साथ खिलवाड़ नहीं किया है। आपके समय में मुख्यमंत्री के पास आयोजन को देखने और समीक्षा करने का समय नहीं था, इसलिए उन्होंने एक गैर सनातनी को कुंभ का प्रभारी नियुक्त किया था।’’
आदित्यनाथ 2013 में आयोजित कुंभ का जिक्र कर रहे थे जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे और उन्होंने मोहम्मद आजम खान को कुंभ मेले का प्रभारी बनाया था। योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘लेकिन यहां मैं खुद कुंभ की समीक्षा कर रहा था और अब भी कर रहा हूं। यही कारण है कि 2013 में जो भी कुंभ में गया, उसने अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, प्रदूषण देखा।
तब गंगा, यमुना और मां सरस्वती की त्रिवेणी में नहाने लायक पानी नहीं था। मॉरीशस के प्रधानमंत्री इसका उदाहरण हैं जिन्होंने स्नान करने से इनकार कर दिया था।’’ उन्होंने कहा,‘‘इस बार लगातार लोग आ रहे हैं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति वहां आए। भूटान नरेश आए, दुनिया के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष वहां आए। सभी ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया। ’’
उन्होंने कहा कि पहली बार उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, सभी जगहों के लोग इस कार्यक्रम का हिस्सा बने और उन्होंने इसे सफल बनाया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के अभिभाषण के दौरान विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) के सदस्यों द्वारा किये गये व्यवहार की सोमवार को निंदा करते हुए पूछा कि क्या वह आचरण संवैधानिक था।
आदित्यनाथ ने विधानसभा में अपने संबोधन में कहा, ‘‘राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान उनके प्रति की गई टिप्पणियां और व्यवहार क्या संवैधानिक था?’’ सत्र के पहले दिन राज्यपाल समाजवादी पार्टी के सदस्यों के विरोध के कारण अपना अभिभाषण पूरा नहीं कर सकी थीं। मुख्यमंत्री ने कहा,‘‘आप संविधान की प्रति लेकर घूमते हैं, लेकिन संवैधानिक पदों पर बैठे गणमान्य व्यक्तियों के प्रति आपका रवैया क्या है?
राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान इस सदन में जो दृश्य था, उसे देखकर हम इसका सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं। जो शोरगुल था, जिस तरह की टिप्पणियां की जा रही थीं, राज्यपाल के साथ जिस तरह का व्यवहार किया जा रहा था, क्या वह संवैधानिक था?’’