प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: बजट घाटे से डरे बिना सरकारी खर्च बढ़ाएं
By Prakash Biyani | Updated: December 21, 2019 08:23 IST2019-12-21T08:23:21+5:302019-12-21T08:23:21+5:30
बजट अब सरकारी लेखा जोखा बनकर रह गया है, पर पिछली छह तिमाही से लगातार जीडीपी ग्रोथ घटने, बेरोजगारी 6 फीसदी हो जाने और राजस्व नहीं बढ़ने से बजट-2020 वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण के लिए चैलेंज बन गया है.

प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: बजट घाटे से डरे बिना सरकारी खर्च बढ़ाएं
कभी केंद्रीय बजट के पहले जिज्ञासा रहती थी कि सामान और सेवाएं महंगी होंगी या आयकर की दरें घटेंगी या बढ़ेंगी. अब जीएसटी काउंसिल साल में 2-3 बार महंगाई बढ़ा या घटा देती है. जब जरूरत हो तब सरकार आर्थिक फैसले भी लेने लगी है जैसे हाल ही में कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती.
बजट अब सरकारी लेखा जोखा बनकर रह गया है, पर पिछली छह तिमाही से लगातार जीडीपी ग्रोथ घटने, बेरोजगारी 6 फीसदी हो जाने और राजस्व नहीं बढ़ने से बजट-2020 वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण के लिए चैलेंज बन गया है.
वित्त मंत्नी अर्थव्यवस्था में मंदी को नकारती हैं, पर मानती हैं कि सुस्ती है. इस सुस्ती को दूर करने के लिए विगत दो माह में उन्होंने तीन दर्जन घोषणाएं कीं. रिजर्व बैंक ने भी ब्याज दरें लगातार 5 बार घटाईं. इन राहत पैकेज से शेयर मार्केट तो दौड़ पड़ा, पर मंदी का भय बना हुआ है.
मंदी सच्चाई है या केवल आशंका, इस पर बहस हो सकती है, पर यह सच है कि मार्केट में मांग की कमी है. वित्त मंत्नालय ने जो भी जतन किए हैं उससे आपूर्ति बढ़ी है, मांग नहीं. शहरी आबादी के पास पैसा है पर वह इसे खर्च करने से डरती है क्योंकि अब हर कमाई और खर्च पर सरकार की निगाहें हैं.
ग्रामीण आबादी के पास तो पैसा ही नहीं है. उम्मीद है कि लोगों की क्र य शक्ति बढ़ाने के लिए वित्त मंत्नी इस बजट में आयकर में छूट देंगी, पर यह ऊंट के मुंह में जीरा है. 135 करोड़ की आबादी में से 2018-19 में मात्न 3.17 करोड़ लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल किए हैं.
इनकी क्र य शक्ति बढ़ाने से मांग कितनी बढ़ेगी? वित्त मंत्नी ने कॉर्पोरेट टैक्स में भारी कटौती की. उन्हें उम्मीद थी कि उद्योगपतियों को सरप्लस पूंजी मिलेगी तो वे कारोबार का विस्तार करेंगे, पर मंदी के भय से उन्होंने कर्ज का बोझ घटाया, उत्पादन नहीं बढ़ाया.
निर्मला सीतारमण को इसलिए बजट 2020 से आपूर्ति और मांग दोनों बढ़ाना है जिसका एक ही उपाय है कि सरकारी खर्च बढ़े. यह तभी होगा जब सरकार वित्तीय घाटे को नियंत्रित रखने के मोह से मुक्त हो. पूर्ववर्ती वित्त मंत्नी अरु ण जेटली ने पांच साल तक वित्तीय घाटा 3.5 फीसदी तक नियंत्रित रखा.
बजट-2019 में निर्मला सीतारमण ने भी यही किया जिससे नकदी का संकट गहरा गया. निस्संदेह घाटे की अर्थव्यवस्था आदर्श नहीं होती पर आज यह सर्जरी मरीज (अर्थव्यवस्था) को बचाने के लिए अनिवार्य हो गई है.
सरकारी खर्च बढ़ाने के लिए वित्तीय घाटा 4 से 5 फीसदी बढ़ाना आज ऐसी सोची समझी जोखिम होगी जो मांग बढ़ाएगी, मांग बढ़ेगी तो सरकारी राजस्व बढ़ेगा जो आगामी वर्षो में वित्तीय घाटा नियंत्रित कर देगा. तद्नुसार बजट-2020 को लेकर लोगों में जिज्ञासा है कि आलोचना से डरे बिना क्या निर्मला सीतारमण यह सर्जरी कर पाएंगी.