केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण राज्यमंत्री प्रहलाद सिंह पटेल नई योजनाएं लाकर भारत को इस क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी देशों में खड़ा करना चाहते हैं. लोकमत समूह के वरिष्ठ संपादक शरद गुप्ता ने उनसे इस बारे में विस्तृत बातचीत की. प्रस्तुत हैं मुख्य अंश…
किसानों की आय बढ़ाने के लिए फूड प्रोसेसिंग मिनिस्ट्री क्या कदम उठा रही है?
फल और सब्जियों का प्रसंस्करण करने से न सिर्फ उनकी उम्र बढ़ती है बल्कि कीमत भी. इससे किसान व्यापारी और देश सभी का फायदा है. कोरोना के दौरान यह बात साबित भी हो गई. पहले हम सिर्फ आलू टमाटर और प्याज की प्रोसेसिंग टॉप स्कीम के तहत करते थे. कोरोना के दौरान हमने इसमें 20 और सब्जियों के अलावा झींगा भी शामिल कर लिया है. जिससे इस योजना का नाम टोटल हो गया. इनके परिवहन पर भी हमने 50 प्रतिशत सब्सिडी दी है.
इनमें केवल बड़े उद्योग ही काम कर रहे हैं या छोटे व्यापारियों के लिए भी मौका है?
अभी हमारे पास 24 लाख प्रोसेसिंग यूनिट हैं. प्रधानमंत्री जी ने छोटे उद्यमियों के लिए 10000 करोड़ रुपए का फंड जारी किया है जिससे अगले 5 वर्षों में दो लाख लघु उद्योगों को सीड मनी देकर अपग्रेड किया जाएगा. लेकिन इस क्षेत्र में हमारे पास एक भी अंतरराष्ट्रीय कंपनी नहीं है. इसीलिए प्रधानमंत्री जी ने उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत 10900 करोड़ दिए है. उनका कहना है कि मार्केटिंग, ब्रांडिंग और क्वालिटी बेहतर करने में सरकार उद्यमियों की मदद करेगी.
खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय अपने उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के लिए क्या कदम उठा रहा है?
हमने तीन कैटेगरी बनाई है - इनोवेशन, आर्गेनिक और रेडी टू ईट. दुग्ध पदार्थों से एलर्जी वाले लोगों के लिए मुंबई की एक युवक ने दूध में एंजाइम मिलाकर जो दही बनाया है उसे ऐसे लोग खा सकते हैं. इस तरह के नवाचार की विदेश में बहुत मांग है. सरकार इन तीनों कैटेगरी को प्रोत्साहन दे रही है. गुणवत्ता सुधारने के लिए हम पूरे देश में प्रयोगशालाओं का एक जाल बिछा रहे हैं. इनक्यूबेशन सेंटर के जरिए लोग ऐसे उद्योग लगा सकते हैं जहां किसान अपने उत्पाद की प्रोसेसिंग करा सकता हो. यदि कभी टमाटर अधिक पैदा हो गए तो किसान उसे ओने पौने दाम पर बेचने को मजबूर होने की जगह प्रोसेसिंग सेंटर में ले जाकर प्यूरी बनवा लेकर जब चाहे अच्छे दाम पर बेचे.
हमारे पास ऐसी कितनी कंपनियां हैं जो प्रोत्साहन देने पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में नाम कमा सकती हों?
तीनों कैटेगरी में पीएलआई स्कीम में ऐसी बहुत सी कंपनियां हमारे सामने आई हैं. हां, रेडी टू ईट कैटेगरी में अभी संख्या कम है. केवल 12 कंपनियों को ही मौके मिले हैं. ऑर्गेनिक और इनोवेटिव कैटेगरी में काफी कंपनियां काम कर रही है जिनमें बड़ा बनने का पोटेंशियल है. प्रधानमंत्री जी का कहना है कंप्लायंस की संख्या कम से कम की जाए जिससे निर्यातकों को सरकार से मदद मिले.
पिछले 8 वर्ष में फूड प्रोसेसिंग का निर्यात कितना बढ़ गया?
दोगुने से अधिक हो गया है. जब हमारी सरकार बनी थी तो फूड प्रोसेसिंग का निर्यात से हमें 39600 करोड़ रुपए प्राप्त होते थे जबकि पिछले वर्ष इससे हमारी आय 83360 करोड़ रुपए हुई. हमारे कुल निर्यात का लगभग 11% फूड प्रोसेसिंग उत्पादों से आ रहा है. यही नहीं 2014 में हमारे मंत्रालय का बजट 770 करोड़ रुपए था जो अब बढ़कर 2942 करोड़ रुपए हो गया है. प्रधानमंत्री जी के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने अगले वर्ष को मोटे अनाज (मिलेट्स) का वर्ष घोषित किया है. पूरी दुनिया का 40% मोटा अनाज हम पैदा करते हैं. यूक्रेन युद्ध के बाद बनी परिस्थितियों में हमारे पास मोटे अनाज को प्रोसेस करने और अपनी आय बढ़ाने का बड़ा मौका है. प्रधानमंत्री जी ने पीएलआई स्कीम का बचा हुआ पैसा मिलेट्स की प्रोसेसिंग में लगाने के निर्देश दिए हैं जिससे कि हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पहचान बना सकें.
मेगा फूड पार्क बनाने से किसानों की कैसे मदद हो रही है?
मेगा फूड पार्क यूपीए सरकार ने शुरु किए थे. लेकिन इस योजना में बड़ी खामियां थी. पार्क लगाने की जगह का चयन सही नहीं था. जब रोड कनेक्टिविटी बिजली और पानी ही नहीं होगा तो उद्योग कैसे चलेंगे? इनकी गाइडलाइन ठीक से नहीं बनी थीं. पचास एकड़ पार्क में सौ करोड़ रुपया दे दिया गया. पार्क का प्रमोटर अपना उद्योग तो लगा लेता था लेकिन शेष भूमि को लाभ कमाने के लिए इतने ऊंचे दाम पर बेचता था कि अन्य उद्योग आ ही नहीं पाते थे. इसीलिए तब स्वीकृत 41 मेगा फूड पार्क में से केवल 5 ही पूरी तरह बन पाए. अन्य में जमीने अभी भी खाली पड़ी हैं. इसीलिए हमने इस योजना को बंद कर दिया है. इसकी जगह हमने मिनी फूड पार्क शुरू किए हैं.
मिनी फूड पार्क में क्या व्यवस्थाएं हैं और ये मेगा फूड पार्क से कैसे अलग हैं?
जैसा नाम से ही जाहिर है इसका क्षेत्रफल 5 एकड़ ही होगा जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर प्रमोटर ही डेवलप करेगा और इसमें केवल पांच उद्योग ही लगाए जाएंगे. जमीन प्रमोटर को दी जाएगी लेकिन तभी जब वह बताएगा कि यहां कौन से पांच उद्योग लगाए जा रहे हैं. जमीन के दाम भी मनमाने तौर पर नहीं बढ़ाए जा सकेंगे.
लेकिन जब जमीन सरकार ही उपलब्ध करा रही है तो पार्क भी सरकार ही क्यों नहीं बनाती?
सरकार का काम नीतियां बनाना है न कि व्यापार करना. यदि नीतियां सही होंगी तो व्यापार फलेंगे-फूलेंगे.
महाराष्ट्र में संतरा और अंगूर जैसे फलों के प्रसंस्करण को सरकार कैसे बढ़ावा दे रही है?
इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध करा कर यूनिट स्कीम में हम पांच करोड़ रूपए तक मदद देते हैं. यदि कोई प्रस्ताव सामने आता है तो हम अवश्य उस पर सकारात्मक रुख अपनाएंगे.
आप पार्टी की ओर से महाराष्ट्र में 4 लोकसभा क्षेत्रों के प्रभारी हैं. क्या अनुभव रहा आपका? इनमें कुछ सीटें गठबंधन की भी तो होंगी?
मैं रायगढ़, शिरडी, शिरूर और बारामती सीटों का प्रभारी हूं. मुझे यकीन है कि अगले चुनाव में ये सभी सीटें भाजपा जीतेगी. गठबंधन का फैसला तो सेनापति की तरह शीर्ष नेतृत्व करता है. हमें तो एक सैनिक की तरह मोर्चे पर लड़ाई की तैयारी करनी है.