Bihar Assembly elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में किला फतह करने के लिए एनडीए और महागठबंधन ने अपने-अपने नए लड़ाकों के सहारे सियासी जंग जीतने के लिए सधी चाल चली है। सूबे के प्रमुख गठबंधनों एनडीए और महागठबंधन ने एक-तिहाई विधायकों को बदल डाला है। अधिक से अधिक सीटें हासिल करने के लिए दोनों गठबंधनों ने 100 नए लड़ाकों पर दांव खेला है। यही नहीं, मौजूदा विधायकों के खिलाफ आम जनता में पनपे आक्रोश को देखते हुए 27 फीसदी विधायकों को बे-टिकट कर दिया है।
दरअसल, बिहार की सियासत में पुराने और अनुभवी चेहरों का लंबे समय से दबदबा रहा है। वह चाहे राजद हो, जदयू हो या भाजपा समेत अन्य दल, कुछ पुराने चेहरों से परहेज कर दिया है। इस बार विधानसभा चुनाव में नए लडाके अपनी ताकत दिखाने के लिए मैदान में हैं। ऐसे में यह चुनाव उनके लिए अग्नि परीक्षा भी साबित होगी।
जदयू और भाजपा ने जहां 31 विधायकों को बेटिकट किया, वहीं राजद और कांग्रेस ने 36 मौजूदा विधायकों को चुनावी मैदान में उतारने से परहेज किया है। इसके अलावा दोनों गठबंधनों ने अपनी परम्परागत सीटें भी सहयोगियों के लिए छोड़ दी हैं। सहयोगी दलों के लिए एनडीए ने 22 तो महागठबंधन ने 18 सीटें छोड़ी हैं। एनडीए में भाजपा और जदयू ने 10-10 सीटें और हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) ने 2 सीटें दी हैं।
भाजपा ने जिन सीटों पर अपने सहयोगियों को मौका दिया है, उनमें बख्तियारपुर, मनेर, दरौली, बरौली, फतुहा और कहलगांव जैसी अहम सीटें शामिल हैं। वहीं जदयू ने बाजपट्टी, बेलसंड, कोचाधामन, महुआ, मढ़ौरा, तेघड़ा और नाथनगर जैसी पारंपरिक सीटें सहयोगियों को सौंपकर गठबंधन की एकजुटता का संदेश दिया है। एनडीए के भीतर टिकट कटौती की सबसे बड़ी लहर भाजपा में देखने को मिली है।
पार्टी ने इस बार 17 मौजूदा विधायकों को दोबारा मौका नहीं दिया, जिनमें रामसूरत राय, जयप्रकाश यादव, निक्की हेम्ब्रम, नंदकिशोर यादव, अमरेंद्र प्रताप सिंह और रश्मि वर्मा जैसे वरिष्ठ नाम शामिल हैं। जदयू ने भी इस बार आठ मौजूदा विधायकों को हटाया है। पार्टी ने जनता के मूड को भांपते हुए गोपाल मंडल, वीना भारती, दिलीप राय जैसे पुराने चेहरों को किनारे कर दिया और युवाओं पर भरोसा जताया। उल्लेखनीय है कि भाजपा वर्ष 2020 के चुनाव में 74 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके बाद वीआईपी के चार विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। उपचुनाव में जीत हासिल करने के बाद विधानसभा चुनाव के पहले तक 80 विधायक हो गए थे।
भाजपा ने इस बार 10 नए चेहरे को उतारा है। इनमें मैथिली ठाकुर, रत्नेश कुशवाहा, संजय गुप्ता, सुजीत कुमार सिंह, त्रिविक्रम सिंह, डॉ. सियाराम सिंह, आनंद मिश्र, छोटी कुमारी, सुभाष सिंह, रमा निषाद और रंजन कुमार शामिल हैं। वहीं, जदयू ने इस बार 24 नए चेहरों को तरजीह दी है।
इनमें कविता साह, अतिरेक कुमार, ईश्वर मंडल, कोमल सिंह, अजय कुशवाहा, आदित्य कुमार, भीषम कुशवाहा, विकास सिंह उर्फ जीशु सिंह, इन्द्रदेव मंडल, डॉ. मांजरीक मृणाल, रवीना कुशवाहा, अभिषेक कुमार, बबलू मंडल, नचिकेता मंडल, रूहेल रंजन, राहुल सिंह, समृद्ध वर्मा, विशाल साह, श्वेता गुप्ता, नागेन्द्र रावत, सोनम रानी सरदार, पप्पू कुमार वर्मा, ऋतुराज कुमार, चन्देश्वर चन्द्रवंशी शामिल हैं। हालांकि चन्द्रवंशी जहानाबाद के सांसद रह चुके हैं, लेकिन पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। वहीं लोजपा (आर) ने अपने हिस्से की 29 सीटों में 10 पर नए लड़ाके उतारे हैं
राजद ने अपने 31 मौजूदा विधायकों को टिकट से वंचित कर दिया, जबकि कांग्रेस ने 5 विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाया। राजद ने इस बार भरत बिंद, मो. कामरान, भीम यादव और किरण देवी जैसे पुराने चेहरों को हटा दिया है। वहीं राजद ने जिन 31 विधायकों को बेटिकट कर दिया है, उनमें छोटे लाल राय, भूदेव चौधरी, मो. कामरान, भीम यादव, विजय कुमार सिंह, मो. नेहालउद्दीन, भरत बिंद, किरण देवी, रामविशुन सिंह आदि प्रमुख हैं।
कांग्रेस से बेटिकट पांच विधायकों में विजय शंकर दूबे, अजय कुमार सिंह, मो. आफाक, इजहारूल हुसैन और छत्रपति यादव शामिल हैं। राजद ने सहयोगी दलों के लिए बरूराज, पारू, गौराबौराम, आलमनगर, औराई, सिकटी, बिहपुर, कटिहार, कुशेश्वरस्थान, लौरिया, गोपालपुर, सुगौली और केसरिया, जबकि कांग्रेस ने बांकीपुर, लालगंज, राजगीर और बाढ़ सीट सहयोगी दलों के लिए छोड़ दी है।
इसके साथ ही राजद ने 31 नए चेहरों पर भरोसा जताया है। इनमें प्रमुख तौर पर माला पुष्पम, रितु प्रिया चौधरी, तनुश्री मांझी, पृथ्वी राय, अरुण गुप्ता, ओसामा शहाब, विशाल जायसवाल, वैजयंती देवी, पिंकी चौधरी, शिवानी शुक्ला, डॉ. करिश्मा राय, सुशील सिंह कुशवाहा, अवनीश विद्यार्थी, रेखा गुप्ता, देवा गुप्ता, रामबाबू सिंह, कुणाल किशोर, फैसल रहमान, नवनीत झा, स्मिता पूर्वे गुप्ता, इशरत परवीन, रजनीश भारती, चाणक्य प्रकाश रंजन, राजेश यादव, गुड्डू चंद्रवंशी, अमोद चंद्रवंशी, डॉ. गुलाम शाहिद, अजय दांगी और शमशाद आलम शामिल हैं। वहीं, कांग्रेस से 10 नए चेहरे पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं।
इनमें शशांत शेखर, इंद्रदीप चंद्रवंशी, उमेर खान, त्रिशुलधारी सिंह, बीके रवि, ओम प्रकाश गर्ग, इसरारूल होदा, मनोज विश्वास, नलिनी रंजन झा और अमित गिरि शामिल हैं। वामदलों से सात उम्मीदवार पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं। इनमें दिव्या गौतम, धनंजय, अनिल कुमार, विश्वनाथ चौधरी, राकेश कुमार पांडेय, मोहित पासवान और शिव कुमार यादव पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं। वीआईपी ने आठ नए चेहरों को चुनावी मैदान में उतारा है। इसमें भोगेन्द्र सहनी, नवीन कुमार, उमेश सहनी, बाल गोविंद बिंद, अपर्णा मंडल, सौरभ अग्रवाल, गणेश भारती सदा, वरुण विजय शामिल हैं।
इस तरह 2025 का यह चुनाव सिर्फ सत्ता बदलने का नहीं, बल्कि सियासी सोच बदलने का भी संकेत है। दोनों गठबंधनों ने यह समझ लिया है कि जनता अब चेहरों के साथ-साथ छवि भी देखती है। जहां एक ओर पुराने विवादित चेहरों को टिकट से दूर रखा गया है, वहीं युवा, शिक्षित और नए उम्मीदवारों को आगे लाकर यह संदेश दिया गया है कि बदलाव ही अब जीत का मंत्र है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या यह बदलाव जनता को पसंद आएगा या फिर पुराने चेहरों की अनुपस्थिति में संगठनात्मक पकड़ कमजोर पड़ेगी? 6 और 11 नवंबर को होने वाले मतदान के बाद ही यह तय होगा कि बदलाव की बयार बिहार की राजनीति में नई दिशा लाएगी या पुराने समीकरण ही हावी रहेंगे। 14 नवंबर को जब चुनाव के परिणाम आएगा तो तस्वीर साफ हो जाएगा।