नई दिल्ली, 19 जुलाई: महान गीतकार पद्मभूषण कवि गोपालदास नीरज का गुरुवार ( 19 जुलाई) शाम को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में निधन हो गया। वह 93 वर्ष के थे। शाम सात बजकर 35 मिनट पर उनका निधन हुआ। गोपालदास नीरज के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। सोशल मीडिया पर गोपालदास नीरज को लोग श्रद्धांजलि और शोक प्रक्रट कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8.53 मिनट ट्वीट कर नीरज के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा, उनके किए गए काम सदियों तक याद किए जाएंगे और लोगों को प्रेरणा देते रहेंगे।
आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली सरकार में मंत्री मनीष सिसोदिया ने भी ट्वीट कर शोक प्रक्रट किया। उन्होंने नीरज की पंक्तियों के साथ ट्विटर लिखा, ''कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे..' देश की कई पीढ़ियों के दिल की आवाज़ को गुनगुनाहट में बदलने वाले नीरज जी कारवां लेकर आगे बढ़ गए लेकिन उनका गुबार सदियों तक कायम रहेगा। वो तरन्नुम, वो अंदाज़, वो गीत, वो बात.....''
इतिहासकार इरफान हबीब ने भी ट्वीट करते हुए लिखा, ''नीरज अपने बारे में कहते थे, इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में। न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥''
नीरज को उनके गीतों के लिए भारत सरकार ने 1991 में और 2007 में 'पद्मश्री' और 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था। उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए भी अनेक गीत लिखे और उनके लिखे गीत आज भी गुनगुनाए जाते हैं। हिंदी मंचों के प्रसिद्ध कवि नीरज को उत्तर प्रदेश सरकार ने यश भारती पुरस्कार से भी सम्मानित किया था।
अपने इन 7 गीतों की वजह से गोपालदास नीरज हमेशा किए जाएंगे याद
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरवाली गांव में 4 जनवरी 1925 को जन्मे गोपाल दास नीरज को हिंदी के उन कवियों में शुमार किया जाता है जिन्होंने मंच पर कविता को नयी बुलंदियों तक पहुंचाया । वे पहले शख्स हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया। 1991 में पद्मश्री और 2007 में पद्मभूषण पुरस्कार प्रदान किया गया। 1994 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने ‘यश भारती पुरस्कार’ प्रदान किया। गोपाल दास नीरज को विश्व उर्दू पुरस्कार से भी नवाजा गया था।उनकी प्रमुख कृतियों में 'दर्द दिया है' (1956), 'आसावरी' (1963), 'मुक्तकी' (1958), 'कारवां गुजर गया' 1964, 'लिख-लिख भेजत पाती' (पत्र संकलन), पन्त-कला, काव्य और दर्शन (आलोचना) शामिल हैं। गोपाल दास नीरज के लिखे गीत बेहद लोकप्रिय रहे। हिन्दी फिल्मों में भी उनके गीतों ने खूब धूम मचायी। 1970 के दशक में लगातार तीन वर्षों तक उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार प्रदान किया गया। उनके पुरस्कृत गीत हैं- काल का पहिया घूमे रे भइया! (वर्ष 1970, फिल्म चंदा और बिजली), बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (वर्ष 1971, फ़िल्म पहचान), ए भाई! ज़रा देख के चलो (वर्ष 1972, फिल्म मेरा नाम जोकर)।
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