फूलन देवी: 22 ठाकुरों को लाइन में खड़ा करके मारी थी गोली, आत्मसमर्पण के लिए बैंडिट क्वीन ने रखी थीं ये तीन शर्तें
By पल्लवी कुमारी | Updated: July 25, 2018 14:36 IST2018-07-25T08:03:58+5:302018-07-25T14:36:17+5:30
Phoolan Devi Death Anniversary Special: 11 साल तक बिना मुकदमे के जेल में रहने के बाद फूलन देवी को समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने का ऑफर मिला। 1996 में मिर्जापुर सीट से जीतकर वह सांसद बनी और दिल्ली पहुंची।

फूलन देवी| Phoolan Devi Death Anniversary Special| Phoolan devi Biography|
नई दिल्ली, 25 जुलाई: अस्सी के दशक में फूलन देवी का नाम शोले फिल्म के के गब्बर सिंह से भी ज्यादा डरावना था। कहते हैं फूलन देवी का जितना ज्यादा निशाना अचूक था उससे भी ज्यादा कठोर था उनका दिल। लोगों के मुताबिक हालात ने ही फूलन देवी को इतना कठोर बना दिया कि जब उन्होंने बहमई में एक लाइन में खड़ा करके 22 ठाकुरों की हत्या की तो उन्हें जरा भी मलाल नहीं हुआ था। डकैत से सांसद बनने वाली फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 में हुआ था। 25 जुलाई को उनका पुण्यतिथि है। फूलन देवी को 25 जुलाई 2001 के दिन शेर सिंह राणा ने दिल्ली में फूलन देवी के आवास पर उनकी हत्या कर दी। हत्या के बाद राणा ने यह दावा किया था कि यह 1981 में सवर्णों की हत्या का बदला है।
11 साल की उम्र में हुई थी शादी
फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव गोरहा में 10 अगस्त 1963 में हुआ था। जन्म से ही फूलन जाति-भेदभाव की शिकार हुई है। महज 11 साल की उम्र में फूलन का विवाह एक मल्लाह के घर हुआ था। ये बाल विवाह तो था लेकिन सिर्फ फूलन के लिए, क्योंकि उसके पति एक अधेड़ उम्र का व्यकित था। फूलन की शादी के पीछे का मकसद था कि वह गांव से बाहर चली जाए। फूलन के पति का नाम पुट्टी लाल से करवा दी। शादी के बाद से फूलन के साथ दूराचार होने लगा। उसके अधेड़ उम्र का पति उसे काफी ज्यादा परेशान करता था। जिसके बाद फूलन फिर से घर भागकर आ गई।
15 साल की उम्र में हुआ रेप
ससुराल से भागकर आने के बाद फूलन अपने पिता के साथ मजदूरी के काम में हाथ बटाने लगी। इसी दौरान फूलन के साथ गांव के कुछ ठाकुरों ने मिलकर गैंगरेप किया। इस घटना को लेकर फूलन इंसाफ के लिए दर-दर भटकती रही। इसके बाद फूलन को पूरे गांव में एक बार नंगा कर घुमाया गया था। इसके बाद कहीं से न्याय न मिलने के बाद फूलन देवी ने हथियार उठाने का फैसला किया और वो डकैत बन गई।
22 ठाकुरों को एक साथ मारी गोली
हथियार उठाने के बाद फूलन सबसे पहले अपने पति के गांव पहुंची। जहां उन्होंने पूरे गांव वालों के सामने लोगों को घर से बाहर निकाल कर, सबके सामने चाकू मार दिया और सड़क किनारे अधमरे हाल में छोड़ कर चली गई। जाते-जाते इस गांव में फूलन देवी ऐलान करके के गई, '' आज के बाद कोई भी बूढ़ा किसी जवान लड़की से शादी नहीं करेगा।''
इसके बाद फूलन ने अपने साथ हुए रेप का बदला लेने की ठानी। फूलन ने 1981 में 22 स्वर्ण जाति के लोगों को एक लाइन में खड़ा कराकर गोलियों से भून डाला। इस घटना के बाद पूरे चंबल में फूलन का खौफ फैल गया। सरकार ने फूलन को पकड़ने का आदेश दिया लेकिन यूपी और मध्य प्रदेश की पुलिस फूलन को पकड़ने में नाकाम रही।
फूलन के गिरोह में पड़ी फूट
फूलन के डाकूओं के गिरोह में एक ऐसा वक्त आया, जब इसमें फूट पड़ गई। दरअसल इनके गिरोह का मुखिया बाबू गुज्जर की धोखे से हत्या के बाद विक्रम मल्लाह नाम के शख्स ने खुद को गिरोह का मुखिया घोषित कर दिया। इसके बाद विक्रम मल्लाह के दो खास आदमी जेल से भागे दो भाई श्री राम तथा लाला राम गिरोह में शामिल हुए। बाद में उन्होंने विक्रम मल्लाह को भी मार गिराया और फूलन को बंदी बनाकर अपने गाँव बेहमई ले गए।
जहां इन्होंने बारी-बारी से कई दिनों तक फूलन को बंधक बनाकर रेप किया। कुछ हफ्तों बाद जब इसकी जानकारी फूलन के कुछ साथियों के मिली तो वह उसे वहां छुड़ा कर ले गए। वहां से निकलने के बाद फूलन ने हार नहीं मानी और उन्होंने फूलन ने अपने साथी मान सिंह मल्लाह की सहायता से अपने पुराने मल्लाह साथियों को इकट्ठा कर के गिरोह का पुनः गठन किया और खुद उसकी सरदार बनी। इसके बाद 14 फरवरी 1981 को फूलन ने 22 ठाकुरों की हत्या कर इसका बदला लिया था। इस कांड के बाद फूलन ‘बैंडिट क्वीन’ के नाम से मशहूर हो गई थी।
अपनी शर्तों पर किया सरेंडर
22 लोगों की हत्या के बाद पुलिस उनके पीछे पड़ गई थी लेकिन फूलन देवी किसी के हाथ नहीं आ पाई थी। लूट पाट करना, अमीरों के बच्चों को फिरौती के लिए अगवा करना, राजनीतिक रैलियों के लूटना फूलन के गिरोह का मुख्य काम था। कुछ सालों के बाद फूलन ने आत्म समर्पण के लिए तैयार हुई। फूलन जानती थी कि यूपी पुलिस उनकी जान के पीछे पड़े हैं, इसीलिए अपनी पहली शर्त के तहत उन्होंने मध्यप्रदेश पुलिस के सामने ही आत्मसमर्पण करने की बात कही।
फूलन की दूसरी शर्त थी कि उनके गैंग के किसी साथी को मौत की सजा नहीं दी जाएगी। फूलन की तीसरी शर्त थी उसने उस जमीन को वापस करने के लिए कहा, जो उसके पिता से हड़प ली गई थी। साथ ही उसने अपने भाई को पुलिस में नौकरी देने की मांग की। फूलन की दूसरी मांग को छोड़कर पुलिस ने उसकी बाकी सभी शर्तें मान लीं। फूलन ने 13 फरवरी 1983 को भिंड में आत्मसमर्पण किया। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने फूलन देवी ने एक समारोह में हथियार डाले थे और उस समय उनकी एक झलक पाने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जमा थी।
मिर्जापुर सीट से जीतकर बनी सांसद
11 साल तक फूलन देवी को बिना मुकदमे के जेल में रहना पड़ा। इसके बाद 1994 में आई समाजवादी सरकार ने फूलन को जेल से रिहा किया। इसके दो साल बाद ही फूलन को समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने का ऑफर मिला और वो 1996 में मिर्जापुर सीट से जीतकर सांसद बनी और दिल्ली पहुंच गई। फूलन 1998 का लोकसभा चुनाव हार गईं थी लेकिन अगले ही साल हुए 13वीं लोकसभा के चुनाव में वे फिर जीत गईं। 25 जुलाई 2001 को उनकी हत्या कर दी गई।
'बैंडिट क्वीन': फूलन के ऊपर बनी फिल्म
1994 में उनके जीवन पर शेखर कपूर ने 'बैंडिट क्वीन' नाम से फिल्म बनाई। इस फिल्म को भारत से ज्यादा यूरोप में लोकप्रियता मिली। फिल्म अपने कुछ दृश्यों और फूलन देवी की भाषा को लेकर भारत में काफी विवादों में रही। फिल्म में फूलन देवी को एक ऐसी बहादुर महिला के रूप में पेश किया गया जिसने समाज की गलत प्रथाओं के खिलाफ पुरजोर संघर्ष किया।
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