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अमरनाथ यात्रा और प्रकृति के कहर का है पुराना नाता, पहले भी फटे हैं बादल, सैंकड़ो लोगों की जा चुकी है जान

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 9, 2022 12:35 IST

8 जुलाई को अमरनाथ गुफा के बाहर कहर बरपा। एक बादल के फटने से कई श्रद्धालुओं की जान चली गई और अब भी कई लापता है। हालांकि ये कोई पहला अवसर नहीं है जब अमरनाथ में प्रकृति का कहर आया हो। इससे पहले भी अमरनाथ यात्रा के अभी तक के ज्ञात इतिहास में दो बड़े हादसों में 400 श्रद्धालु प्रकृति के कोप का शिकार हो चुके हैं।

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ठळक मुद्देअमरनाथ यात्रा और प्राकृतिक आपदाओं का पुराना नाता है 2010 में जब गुफा के पास बादल फटा था तो कोई नुकसान नहीं हुआ था 2015 में बालटाल आधार शिविर के पास बादल फटने से काफी नुकसान हुआ था

जम्मू: अमरनाथ गुफा के बाहर बादल फटने से अब तक कई लोगों कई जान जा चुकी है। शुक्रवार को जैसे ही बादल फटा तो पानी के साथ कई टेंट बह गए। कई लोगों की तलाश अब भी जारी है। हालांकि ये कोई पहला पहला अवसर नहीं है जब अमरनाथ गुफा के बाहर बादल फटने के कारण श्रद्धालुओं की जानें गई हों। बल्कि पहले भी कई बार बादलों ने सैंकड़ों श्रद्धालुओं की जान ली है।अगर यह कहा जाए कि अमरनाथ यात्रा और प्रकृति के कहर का साथ जन्म जन्म का है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हर साल औसतन 100 के करीब श्रद्धालु प्राकृतिक हादसों में जानें गंवा रहे हैं। अमरनाथ यात्रा के अभी तक के ज्ञात इतिहास में दो बड़े हादसों में 400 श्रद्धालु प्रकृति के कोप का शिकार हो चुके हैं। 

1969 और 1996 में भी हुए थे प्राकृतिक हादसे 

यह बात अलग है कि अब प्रकृति का एक रूप ग्लोबल वार्मिंग के रूप में भी सामने आया था जिसका शिकार पिछले कई सालों से हिमलिंग भी हो रहा है।अमरनाथ यात्रा कब आरंभ हुई थी कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। लेकिन हादसों ने इसे कई बार कब से इसे अपनी चपेट में लिया है इसका जिक्र जरूर है। वर्ष 1969 में बादल फटने के कारण 100 के करीब श्रद्धालुओं की मौत की जानकारी दस्तावेजों में दर्ज है। यह शायद पहला बड़ा प्राकृतिक हादसा था। वहीं दूसरा हादसा था तो प्राकृतिक लेकिन इसके लिए इंसानों को अधिक जिम्मेदार इसलिए ठहराया जा सकता। इसका कारण ये है कि यात्रा मार्ग के हालात और रास्ते के नाकाबिल इंतजामों के बावजूद एक लाख लोगों को वर्ष 1996 में यात्रा में इसलिए धकेला गया क्योंकि आतंकी ढांचे को राष्ट्रीय एकता के रूप में एक जवाब देना था तो 300 श्रद्धालु मौत का ग्रास बन गए। प्रत्यक्ष तौर पर इस हादसे के लिए प्रकृति जिम्मेदार थी मगर अप्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार तत्कालीन राज्य सरकार थी जिसने अधनंगे लोगों को यात्रा में शामिल होने के लिए न्यौता दिया तो बर्फबारी ने उन्हें मौत का ग्रास बना दिया। 

हर साल बढ़ती है अमरनाथ श्रद्धालुओं की संख्या

अगर देखा जाए तो प्राकृतिक तौर पर मरने वालों का आंकड़ा यात्रा के दौरान प्रतिवर्ष 70 से 100 के बीच रहा है। इसमें प्रतिदिन बढ़ोतरी इसलिए हो रही है क्योंकि अब यात्रा में शामिल होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। पहले ये संख्या इसलिए कम थी क्योंकि यात्रा में इतने लोग शामिल नहीं होते थे जितने अब हो रहे हैं।अगर मौजूद दस्तावेजी रिकार्ड देखें तो वर्ष 1987 में 50 हजार के करीब श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा में शामिल हुए थे और आतंकवाद के चरमोत्कर्ष के दिनों में वर्ष 1990 में यह संख्या 4800 तक सिमट गई थी। लेकिन उसके बाद जब इसे एकता और अखंडता की यात्रा के रूप में प्रचारित किया जाने लगा तो इसमें अब 3 से 5 लाख के करीब श्रद्धालु शामिल होने लगे हैं।

2010 में भी गुफा के पास फटा था बादल

जानकारी के अनुसार साल 2010 में भी गुफा के पास बादल फटा था लेकिन तब भी कोई नुकसान नहीं हुआ था। वर्ष 2021 में 28 जुलाई को गुफा के पास बादल फटने से तीन लोग इसमें फंस गए जिन्हें बचा लिया गया था। इसमें कोई जानी नुकसान नहीं हुआ था। इस बार बादल फटने से बड़ा नुकसान हुआ है। वर्ष 2015 में बालटाल आधार शिविर के पास बादल फटने से काफी नुकसान हुआ था। इस दौरान लंगरों के अस्थायी ढांचे ध्वस्त हो गए थे और दो बच्चों समेत तीन श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी।

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