नई दिल्लीः शहरी स्थानीय निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के कराने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया है। 27 दिसंबर को हाईकोर्ट ने अधिसूचना को रद्द कर दिया था। 2 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट खुलने के बाद सुनवाई होने की उम्मीद है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 27 दिसंबर को उत्तर प्रदेश सरकार की नगर निकाय चुनाव संबंधी मसौदा अधिसूचना को रद्द करते हुए राज्य में नगर निकाय चुनाव बिना ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण के कराने का आदेश दिया था।
राज्य सरकार ने इस आदेश के खिलाफ अपनी अपील में कहा है कि उच्च न्यायालय पांच दिसंबर की मसौदा अधिसूचना को रद्द नहीं कर सकता है, जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के अलावा ओबीसी के लिए शहरी निकाय चुनावों में सीटों का आरक्षण प्रदान किया गया था।
राज्य के लिए ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ रुचिरा गोयल के माध्यम से दायर अपील में कहा गया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग संवैधानिक रूप से संरक्षित वर्ग है और उच्च न्यायालय ने मसौदा अधिसूचना को रद्द करके गलती की है। उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने आदेश दिया था कि राज्य सरकार को चुनावों की अधिसूचना "तत्काल" देनी चाहिए क्योंकि नगरपालिकाओं का कार्यकाल 31 जनवरी तक समाप्त हो जाएगा।
उच्चतम न्यायालय द्वारा सुझाए गए ट्रिपल टेस्ट फार्मूला अपनाए बगैर पांच दिसंबर को ओबीसी आरक्षण के मसौदे की अधिसूचना तैयार किए जाने को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। अदालत के आदेश को लेकर राज्य सरकार की काफी किरकिरी हुई और सपा, बसपा और अन्य विपक्षी दलों ने अदालत के आदेश पर राज्य सरकार के खिलाफ जमकर हमला बोला।
अदालत में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुपालन में राज्य सरकार को इस राज्य में ओबीसी के राजनीतिक पिछड़ेपन का अध्ययन करने के लिए एक समर्पित आयोग का गठन करने संबंधी ट्रिपल टेस्ट फार्मूला अपनाना चाहिए और इसके बाद ही आरक्षण तय करना चाहिए।
उत्तर प्रदेश सरकार ने शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण प्रदान करने के लिए बुधवार को पांच सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया। इस आयोग की अध्यक्षता न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राम अवतार सिंह करेंगे।
नगर विकास विभाग द्वारा जारी एक अधिसूचना के मुताबिक, इस आयोग का कार्यकाल अध्यक्ष और सदस्यों के प्रभार ग्रहण करने के दिन से छह महीने के लिए होगा। उल्लेखनीय है कि इस आयोग का गठन ऐसे समय में किया गया है जब एक दिन पूर्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की अधिसूचना के मसौदे को खारिज कर दिया था।
ओबीसी को बगैर आरक्षण दिए स्थानीय निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया था। इस आयोग के चार सदस्यों में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी चोब सिंह वर्मा और महेंद्र कुमार, पूर्व अपर विधि परामर्शदाता संतोष कुमार विश्वकर्मा और बृजेश कुमार सोनी शामिल हैं।
आयोग के सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल से मंजूरी के बाद की गई है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ का आदेश आने के बाद कहा था कि ओबीसी को आरक्षण दिए बगैर शहरी स्थानीय निकाय चुनाव नहीं होंगे और राज्य सरकार ओबीसी आरक्षण के लिए एक आयोग गठित करेगी।
(इनपुट एजेंसी)