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बिहार में सियासी खेल: 20 वर्षों में 7 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं नीतीश कुमार, 8वीं बार के लिए फिर मारी पलटी

By एस पी सिन्हा | Updated: August 9, 2022 19:18 IST

20 वर्षों में 7वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार को तभी उनके विरोधी ‘पलटूराम’ कह कर सम्बोधित करते रहे हैं। नीतीश ने 2015 के विधानसभा चुनाव में डीएनए मामले को बड़ा मुद्दा बना दिया था।

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ठळक मुद्देसरकार गठन के 21 महीने के बाद नीतीश फिर से पाला बदला2020 के चुनाव में कम सीटों के बावजूद भाजपा ने नीतीश को बनाया था सीएमलालू ने कहा था- ऐसा कोई सगा नही, जिसको नीतीश ने ठगा नही

पटना: बिहार की राजनीति में एकबार फिर से भाजपा और जदयू का गठबंधन टूट गया है। यह गठबंधन 5 साल में दूसरी बार टूटा है। इससे पहले साल 2013 में मतभेदों के चलते दोनों अलग हो गए थे। हालांकि साल 2017 में दोनों फिर साथ आ गए। इन सबके बीच नीतीश और लालू के खट्टे-मीठे रिश्ते बनते और बिगड़ते रहे हैं।

दरअसल, लालू और नीतीश पटना में कॉलेज के दिनों के दोस्त रहे हैं। दोनों ही बिहार में समाजवादी छात्र राजनीति का हिस्सा थे। दोनों ही जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चलने वाले कांग्रेस विरोधी आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल रहे।

इस दौरान जेपी आंदोलन में लालू बड़े छात्र नेता थे। साल 1977 में लालू और नीतीश दोनों ने ही जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। लालू लोकसभा के लिए और नीतीश विधानसभा के लिए चुनावी मैदान में उतरे थे। लालू जीत गए और नीतीश हार गए। फिर साल 1980 में लालू लोकसभा चुनाव हार गए। लेकिन विधानसभा सीट से जीत गए। नीतीश कुमार दोबारा भी चुनाव हार गए। 

साल 1985 में दोनों नेता एक साथ विधानसभा पहुंचे, लेकिन तब तक लालू मंझे हुए नेता के रूप में उभर चुके थे और नीतीश उस समय नए थे। साल 1989 के आम चुनाव में लालू और नीतीश दोनों ही लोकसभा के लिए चुने गए।

जब 1990 में जनता दल ने बिहार विधानसभा में बहुमत हासिल किया। उस समय नीतीश ने अपने जिगरी दोस्त लालू को मुख्यमंत्री बनाने के लिए जमकर मेहनत किया और दोस्ती का फर्ज अदा करते हुए दोस्त को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा भी दिया। 

नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव के अहम सलाहकार के रूप में उभरकर सामने आए थे। लेकिन समय के करवट बदलने के साथ ही नीतीश और लालू के रिश्ते में इतनी दूरी आ गई। लालू यादव अपने उस जिगरी दोस्त को ’ठग’ कहने लगे।

1990 की ये दोस्ती चार साल में ही ऐसी दुश्मनी में बदली कि 1994 में नीतीश लालू का साथ छोड़कर जॉर्ज फर्नांडीज के साथ आ गए और उनके साथ मिलकर समता पार्टी बनाई।

अगले चुनाव में नीतीश को केवल सात सीटें मिलीं। हालांकि, लालू यादव फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने। कहा तो यह भी जाता है कि नीतीश ने लालू के साथ ऐसी दुश्मनी साधी कि चारा घोटाले मामले में जांच के लिए याचिका के पीछे इन्हीं का हाथ था। 

नीतीश ने दोस्ती के साथ साथ खूब दुश्मनी भी निभाई। लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले मामले में जेल में रहना पड़ा। 2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश ने भाजपा के साथ मिलकर लालटेन की लौ को फूंक मरकर बुझा दिया। ये पहला समय था जब नीतीश मुख्यमंत्री बने।

20 वर्षों में 7वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार को तभी उनके विरोधी ‘पलटूराम’ कह कर सम्बोधित करते रहे हैं। नीतीश ने 2015 के विधानसभा चुनाव में डीएनए मामले को बड़ा मुद्दा बना दिया था।

राजद प्रमुख लालू यादव ने ट्वीट कर नीतीश कुमार को पलटू कहा था। लालू यादव के ट्विटर हैंडल से एक कार्टून भी पोस्ट किया गया, जिसमें लिखा गया था कि नीतीश को खुद नहीं मालूम कहां-कहां, कब-कब, क्यों, कैसे और किसलिए पलटियां मारी है? 

लालू ने अपने ट्वीट में नीतीश के डीएनए मामले को फिर से उठाया था। नीतीश के बारे में लालू यह बेहे कहते रहे हैं कि इनके पेट में दांत है। लालू यह भी कहते रहे हैं की ऐसा कोई सगा नही, जिसको नीतीश ने ठगा नही। इस तरह के कई टिप्पणियां लालू के द्वारा नीतीश के लिए की जाती रही हैं।

यहां बता दें कि नीतीश ने साल 1996 में भाजपा से हाथ मिलाया था। उसके बाद भाजपा और समता पार्टी का यह गठबंधन अगले 17 सालों तक चला। इसी बीच 30 अक्टूबर, 2003 को समता पार्टी टूटकर जदयू बन गई और साल 2005 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की। 

इस दौरान दोनों ने शानदार ढंग से सरकार चलाई। लेकिन साल 2013 में भाजपा के लोकसभा चुनाव 2014 के लिए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना नीतीश को रास नहीं आया। इससे नाराज होकर उन्होंने भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया।

इस दौरान नीतीश ने राजद के सहयोग से सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और दलित नेता जीतन राम मांझी को राज्य की सत्ता सौंप दी। नीतीश कुमार ने साल 2015 में पुराने सहयोगी लालू यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की।

हालांकि, चुनाव में राजद ने जदयू से अधिक सीटें हासिल की थी, लेकिन उसके बाद भी नीतीश के सिर मुख्यमंत्री का ताज बंधा था। उस दौरान लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री और बड़े बेटे तेजप्रताप यादव को सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया था।

महागठंधन की सरकार शुरुआत में तो ठीक चली, लेकिन 2017 में राजद और जदयू के बीच मनमुटाव शुरू हो गया। तनाव के उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद विपक्ष की सबसे बडी पार्टी भाजपा ने मध्यावधि चुनाव से इंकार करते हुए जदयू को समर्थन देने का निर्णय किया। ऐसे में नीतीश ने फिर से सरकार बनाते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली।

विधानसभा चुनाव 2020 में कम सीटों के बाद भी भाजपा ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन दो साल बाद ही उनका भाजपा से मनमुटाव फिर से बढ़ गया। सरकार गठन के 21 महीने के बाद नीतीश फिर से पाला बदल लिया है और अपने पुराने साथी लालू यादव की राजद और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने जा रहे हैं।

भाजपा से नीतीश कुमार की नाराजगी के कई कारण हैं। उनके करीबी सूत्रों के अनुसार, भाजपा नेता नीतीश पर लगातार हमला कर रहे हैं, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व चुप है, इससे नीतीश बेहद नाराज हैं। 

आरसीपी सिंह का मुद्दा नीतीश की नाराजगी का दूसरा कारण है। आरसीपी सिंह एक समय उनके उत्तराधिकारी थे, लेकिन भाजपा से नजदीकी ने उन्हें नीतीश से दूर कर दिया। जदयू ने भाजपा पर सिंह के जरिए पार्टी को तोड़ने का आरोप भी लगाया है।

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