राज्यसभा में बोले थे डीपी त्रिपाठी, सेक्स मुद्दे पर चर्चा करने से क्यों डरा हुआ है सदन, जिस देश में लिखी गई कामसूत्र जैसी पुस्तक
By रामदीप मिश्रा | Updated: January 2, 2020 15:03 IST2020-01-02T15:03:09+5:302020-01-02T15:03:09+5:30
DP Tripathi Passed Away: डीपी त्रिपाठी ने मात्र सोलह साल की उम्र में राजनीति की दुनिया में कदम रखा। कुछ दिनों में ही वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सहयोगियों में से एक बन गए। हालांकि, सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने के विरोध में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।

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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद देवी प्रसाद त्रिपाठी (डीपी त्रिपाठी) ने गुरुवार (02 जनवरी) के दिन दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका निधन दिल्ली में हुआ। वह 67 वर्ष के थे। साल 1968 में राजनीति में आए त्रिपाठी को संसद के अच्छे वक्ताओं में गिना जाता है। उनका एक भाषण उस समय चर्चा में आया था जब उन्होंने राज्यसभा में अपने विदाई भाषण के दौरान सेक्स से संबंधित विषय पर अपनी बात रखी थी।
डीपी त्रिपाठी ने सेक्स के मुद्दे को दरकिनार किया गया
उन्होंने कहा था कि इस देश में कामसूत्र जैसी पुस्तक लिखी गई और उसे लिखने वाले वात्स्यायन को ऋषि का दर्जा मिला। यहां अजंता-अलोरा की गुफाएं और खजुराहो के स्मारक इसी पर समर्पित हैं, लेकिन क्यों संसद में सेक्स के मुद्दे को दरकिनार किया गया? देश के दो महान नेता जिनमें महात्मा गांधी ने सेक्स से संबंधित विषय को उठाते हुए काफी लिखा और दूसरे डॉ. राममनोहर लोहिया थे जिन्होंने इस विषय पर चर्चा की और लिखा। खासकर महिलाओं के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए।
डीपी त्रिपाठी ने लोहिया की रजनावली की किया था जिक्र
डीपी त्रिपाठी ने कहा था, 'लोहिया जी का एक प्रसिध्द लेख है, लोहिया रचनावली खंड पांच में- योनि सुचिता, नर-नारी खंड।' उन्होंने कहा कि एक अध्ययन के मुताबिक, आने वाले पांच सालों में सेक्स से जुड़ी बीमारियों के चलते लाखों युवाओं की मौत होने वाली है, लेकिन इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए संसद क्यों डरी हुई है?
डीपी त्रिपाठी का यूपी में हुआ था जन्म
बता दें 67 वर्ष के डीपी त्रिपाठी पिछले कई दिनों से बेहद बीमार थे। उन्होंने गुरुवार सुबह दिल्ली में आखिरी सांस ली। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ था। छात्र राजनीति के दिनों में वो जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष भी बने। बाद में वो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में राजनीति के प्रोफेसर भी नियुक्त हुए।
वह त्रैमासिक पत्रिका थिंक इंडिया के संपादक भी रह चुके हैं। मराठीन हिंदी के अलावा देशी-विदेशी कई भाषाओं पर उनकी पकड़ थी। त्रिपाठी ने मात्र सोलह साल की उम्र में राजनीति की दुनिया में कदम रखा। कुछ दिनों में ही वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सहयोगियों में से एक बन गए। हालांकि, सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने के विरोध में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। वह यहां पार्टी महासचिव और मुख्य प्रवक्ता के पद तक पहुंचे। यह भी बताया जाता है कि महाराष्ट्र चुनाव में सीट-बंटवारे पर बातचीत में वे जिम्मेदार थे।