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Motor accident case: मोटर दुर्घटना में मुआवजे के लिए मृतक की आय पर ध्यान रखना जरूरी, सुप्रीम कोर्ट ने की टिप्पणी, जानें क्या है मामला

By भाषा | Updated: September 12, 2022 14:49 IST

Motor accident case: न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने केरल उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ दो अपील की सुनवाई की, जिसमें उसने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) द्वारा दिए गए मुआवजे की राशि कम कर दी थी।

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ठळक मुद्दे2017 को अनानास की खेती करने वाले मृतक के परिजनों को 26.75 लाख रुपये का मुआवजा दिया था।उच्च न्यायालय ने एमएसीटी द्वारा गणना की गई आय को 12,000 रुपये से घटाकर 10,000 रुपये कर दिया। मौजूदा मामले में मृतक अनानास की खेती करने वाला किसान था। दुर्घटना एक अक्टूबर 2015 को हुई थी।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने उदार रुख अपनाते हुए कहा है कि मोटर दुर्घटना के मामलों में मुआवजा देते समय मृतक की कमाई के लिहाज से सुदृढ़ नजरिया अपनाना चाहिए, यदि वह खुद की खेती करने वाला एक किसान या खुद का काम करने वाला एक कुशल श्रमिक है।

न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने केरल उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ दो अपील की सुनवाई की, जिसमें उसने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) द्वारा दिए गए मुआवजे की राशि कम कर दी थी। पहले मामले में एमएसीटी ने 30 जनवरी, 2017 को अनानास की खेती करने वाले मृतक के परिजनों को 26.75 लाख रुपये का मुआवजा दिया था।

एमएसटी ने उसकी मूल आय 12,000 रुपये प्रति माह को इसका आधार माना। लेकिन उच्च न्यायालय ने एमएसीटी द्वारा गणना की गई आय को 12,000 रुपये से घटाकर 10,000 रुपये कर दिया। पीठ ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में मृतक अनानास की खेती करने वाला किसान था। दुर्घटना एक अक्टूबर 2015 को हुई थी।

ऐसे मामलों में कमाई की मात्रा पर सुदृढ़ नजरिया अपनाया जाना चाहिए, क्योंकि इसके दस्तावेजी सबूत उपलब्ध नहीं हो सकते हैं, विशेष रूप से एक खुद की खेती करने वाले कृषक की कमाई को साबित करने के लिए।’’ शीर्ष अदालत ने हाल ही में अपनी वेबसाइट पर अपलोड किए गए आदेश में कहा कि उसके विचार में एमएसीटी द्वारा अपनाई गई 12,000 रुपये प्रति माह की आय को ‘अनियमित या मनमाना’ नहीं माना जा सकता है। उच्च न्यायालय की ओर से मृतक की आय की मात्रा को 12,000 रुपये से घटाकर 10,000 रुपये प्रति माह करके मुआवजे में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं था।

शीर्ष अदालत ने मुआवजे की कुल राशि 26.75 लाख रुपये बहाल कर दी और आदेश दिया कि मृतक के परिजनों को देय शेष राशि का भुगतान नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की ब्याज दर के साथ एक महीने के भीतर किया जाए। एक अन्य मामले में एमएसीटी ने मृतक के परिवार को 24.59 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया, जो एक बढ़ई था, उसकी मूल आय 15,000 रुपये प्रति माह आंकी गई थी।

उच्च न्यायालय ने एमएसीटी द्वारा गणना की गई आय को फिर से 15,000 रुपये से घटाकर 10,000 रुपये कर दिया। इस शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में मृतक एक बढ़ई था। दुर्घटना तीन मई, 2015 को हुई थी। ऐसे मामलों में कमाई पर सुदृढ़ नजरिया अपनाया जाना चाहिए था, क्योंकि (कमाई के) दस्तावेजी सबूत उपलब्ध नहीं हो सकते हैं।’’

शीर्ष अदालत ने परिस्थितियों को देखते हुए 24.59 लाख रुपये की मुआवजा राशि को बहाल कर दिया और निर्देश दिया कि अपीलकर्ता (मृतक के परिजन) को देय शेष राशि का भुगतान नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर के साथ एक महीने के भीतर किया जाए।

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