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तस्वीरों में देखें करुणानिधि के छह दशक का सियासी सफर, 94 साल की पारी का हुआ अंत

By पल्लवी कुमारी | Updated: August 7, 2018 20:11 IST

करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को तिरुकुवालाई (तमिलनाडु) में हुआ था। करुणानिधि जब 14  साल के थे तो उन्होंने 1938 में जस्टिस पार्टी जॉइन किया था। करुणानिधि ने अलागिरिस्वामी के भाषणों से प्रभावित होकर राजनीति ज्वाइन किया था। 

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चेन्नई, 7 अगस्त:  द्रविड़ आंदोलन की उपज और तमिलनाडु के कद्दावर नेता के 94 साल के पारी का अंत हो गया है। मुथुवेल करुणानिधि अपने करीब छह दशकों के राजनीतिक करियर में ज्यादातर वक्त तमिलनाडु की सियासत का एक ध्रुव थे। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के संस्थापक सी. एन. अन्नादुरई के 1969 में निधन के बाद उन्होंने पार्टी की बागडोर संभाली। उसके बाद से लेकर निधने के दिन तक वह पार्टी के प्रमुख बने रहे। 

करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को तिरुकुवालाई (तमिलनाडु) में हुआ था। करुणानिधि जब 14  साल के थे तो उन्होंने 1938 में जस्टिस पार्टी जॉइन किया था। करुणानिधि ने अलागिरिस्वामी के भाषणों से प्रभावित होकर राजनीति ज्वाइन किया था। 

जब डीएमके के संस्थापक सी. एन. अन्नादुरई ने अपने राजनीतिक गुरु ई. वी. रामास्वामी से अलग होकर 1949 में डीएमके बनाई थी। तब करुणानिधि उनके साथ आए। करुणानिधि डीएमके के संस्थापक सदस्यों में से एक बने।

करुणानिधि ने पहली बार 1957 में करुर जिले स्थित कुलिथली सीट से जीत हासिल कर तमिलनाडु विधानसभा में प्रवेश किया। चुनाव क्षेत्र में उन्होंने खेतों में काम करने वाले मजदूरों के हक में आंदोलन चलाया था। 

विधानसभा चुनावों में जीत और किसानों के लिए आंदोलन चलाने के बाद करुणानिधि का राजनीतिक करियर तेजी से आगे बढ़ा। 1962 में करुणानिधि विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बन गए। 

एम.करुणानिधि दक्षिण भारत की राजनीति में अपना एक अलग प्रभाव और दबदबा रखते हैं। इस राजनेता की राजनीति में पहुंचने की कहानी भी बड़ी दिल्‍चस्‍प है। वे पहले फिल्‍म पटकथा, लेखक थे और फिल्‍मी पर्दे पर दर्शायी गई उनकी इन्‍हीं कहानियों ने उनके लिए राजनीति का रास्‍ता तैयार किया। 

1967 में पूरे राज्य में हिंदी भाषा थोपे जाने को लेकर आंदोलन चरम पर था। डीएमके को इस साल चुनावों में जीत मिली और करुणानिधि तमिलनाडु की अन्नादुरई सरकार में पहली बार मंत्री बने।

1957 में चुनाव लड़कर उन्होंने एक विधायक के तौर पर तमिलनाडु की सियासत में कदम रखा था। उस समय उन्होंने तिरुचिरापल्ली जिले के कुलिथालाई विधानसभा से चुनाव जीता था।

करुणानिधि  पांच बार (1969–71, 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2006–2011) मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 60 साल के करियर में उन्होंने कभी चुनाव नहीं हारा था। 

करुणानिधि परिवार को आगे पार्टी में बढ़ाने के आरोप लगे। एक वक्त ऐसा भी  जब उन पर आरोप लगा कि सीएम रहते हुए  उन्होंने अपने बेटे स्टालिन को 1989 और 1996 में चुनाव जितवाया था।

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