लखनऊ:उत्तर प्रदेश में कारोबारी ही नहीं सरकारी संस्थाएं भी जीएसटी की चोरी कर रही हैं. राज्य में कई लाभ कमाने वाले प्राधिकरणों और सरकारी संस्थानों द्वारा जीएसटी का भुगतान ना किए जाने के कारण प्रमुख सचिव राज्य कर एम. देवराज ने कई प्राधिकरणों की बैलेंस शीट के सघन अध्ययन के निर्देश दिए हैं. यह पहला मौका है जब सूबे के कई प्राधिकरणों के खर्च के प्रपत्र जांचने के निर्देश राज्य कर के सभी अपर आयुक्तों को दिए गए हैं. निर्देश में यह भी कहा गया है कि निर्माण और विकास कार्यों के लिए सरकार से बजट लेने वाली सरकारी संस्थाओं से जुड़े ठेकेदारों और फर्मों की जांच भी की जाए ताकि यह पता चले कि जीएसटी राजस्व के रूप में प्राधिकरणों और सरकारी संस्थानों से कितने करोड़ रुपए की वसूली की जानी होगी.
प्रमुख सचिव राज्य कर एम. देवराज के अनुसार, राज्य के अधिकांश जिलों में विकास प्राधिकरण और औद्योगिक विकास प्राधिकरण बने हुए हैं. तमाम सरकारी संस्थाओं भी ऐसी हैं जिन्हे निर्माण कार्य आदि से लाभ होता है. प्राधिकरणों और सरकारी संस्थाओं को सरकार निर्माण कार्यों के लिए बजट भी उपलब्ध कराया जाता है. बीते माह राज्य कर विभाग की समीक्षा में यह पाया गया है कि प्राधिकरणों- सरकारी संस्थानों ने निर्माण कार्य में लाभ कमाया लेकिन जीएसटी की भुगतान नहीं किया.
इसे देखते हुए हर जिले में हो रहे निर्माण कार्यों की सूची तैयार कराकर उसके आधार पर जीएसटी की बकाया वसूली का नोटिस प्राधिकरणों और सरकारी संस्थानों को भेजने का फैसला किया गया. राज्य कर विभाग के अफसरों का कहना है कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यीडा सहित डेढ़ दर्जन प्राधिकरणों द्वारा दी जाने वाली विभिन्न तरह की सेवाओं पर जीएसटी बकाया है. प्रदेश में सबसे लाभ कमाने वाले यह तीनों प्राधिकरण कई तरह की फीस भी लेते हैं जिन पर जीएसटी लागू है, लेकिन उस जीएसटी का भुगतान सरकार के कोष में अभी तक नहीं किया है. इस बकाया जीएसटी की वसूली के लिए प्राधिकरणों की बैलेंस शीट का डाटा एनालिसिस करने का निर्देश दिया गया है.
बजट के हिसाब से नहीं मिला टैक्स
प्रमुख सचिव राज्य कर एम. देवराज का कहना है कि प्रदेश के कुल राजस्व में राज्य कर की हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी है. चालू वित्तीय वर्ष में राज्य कर से 1.75 लाख करोड़ रुपए का राजस्व हासिल करने का लक्ष्य है. इसे हासिल करने के लिए कई तरह हे कदम उठाए जा रहे हैं ताकि सरकारी विभागों से भी समय से जीएसटी वसूली की जा सके. उनके अनुसार, विभागीय समीक्षा में यह पाया गया है कि निर्माण कार्यों की कार्यदायी संस्थाओं और सरकारी संस्थाओं को जितना बजट जारी किया गया है उस हिसाब से टैक्स नहीं मिला है.
इसे देखते हुए कार्यदायी संस्थाओं द्वारा जिन ठेकेदारों को टेंडर दिया गया है उनके एस्टीमेट का मिलान फाइनल बिल और दाखिल रिटर्न से किया जाएगा. देवराज को उम्मीद है कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यीडा, एलडीए, केडीए सहित लाभ कमाने वाले डेढ़ दर्जन विकास प्राधिकरणों तथा चार सरकारी संस्थाओं ने उन्हे करीब बड़ी धनराशि जीएसटी के रुप में प्राप्त होगी.