गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर रविवार रात कैंसर से जिंदगी की जंग हार गए। लेकिन इस गंभीर बीमारी का उन्होंने जिस साहस के साथ सामना किया वो कई लोगों के लिए मिसाल बन गया है। 63 साल के मनोहर पर्रिकर को करीब 1 साल पहले कैंसर का पता चला था। इस गंभीर बीमारी का पता चलने के बावजूद उनके व्यक्तित्व की सौम्यता और जिंदादिली कायम रही। नवभारत टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में उनका इलाज करने वाले डॉक्टर के हवाले से जिंदादिली की कहानी लिखी है।
मुंबई के लीलावती अस्पताल के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. पी जगन्नाथ के अनुसार, 'वह 15 फरवरी 2018 का दिन था। मुझे बताया गया कि एक वीवीआईपी को गोवा से लीलावती हॉस्पिटल लाया गया है। उन्हें पेट में दर्द है और अग्नाशय संबंधी किसी समस्या का शक है। वीवीआईपी होने के चलते अस्पताल ने तैयारी पूरी कर ली थी। मुस्कुराता हुआ एक व्यक्ति हॉस्पिटल में दाखिल हुआ। वह मनोहर पर्रिकर थे।'
पिछले साल फरवरी के बाद से उनकी तबियत खराब रहने लगी थी। उन्हें तब अग्नाशय संबंधी बीमारी के उपचार के लिए मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया। वह मार्च के पहले सप्ताह में इलाज के लिए अमेरिका गए जहां वह जून तक अस्पताल में रहे। वापस लौटने पर उन्होंने फिर से काम करना आरंभ कर दिया और वह 12 दिवसीय विधानसभा सत्र में भी शामिल हुए।
अगस्त के दूसरे सप्ताह में वह फिर से उपचार के लिए अमेरिका गए और कुछ दिनों बाद लौटे। बाद में उन्हें दिल्ली के एम्स में भी भर्ती कराया गया। पिछले कुछ समय से वह अपने डाउना पौला के अपने निजी आवास तक ही सीमित थे। यहीं पर उन्होंने रविवार को अंतिम सांस ली.
उनकी जिंदादिली की कहानी बयां करने के लिए गोवा विधानसभा की वो तस्वीर काफी है जिसमें नाक में नली लगाकर उन्होंने गोवा का बजट पेश किया। अपने संक्षिप्त भाषण के दौरान भी पर्रिकर काफी असहज महसूस कर रहे थे। उन्हें पेज पलटने में भी दिक्कत हो रही थी। इस दौरान मुख्यमंत्री को स्ट्रा के जरिये दवाइयां भी लेनी पड़ीं। अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि वो इस बजट को पूरे जोश और होश के साथ पेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि वो अपनी अंतिम सांस तक प्रदेश की सेवा करते रहेंगे। उन्होंने अपना वादा निभाया। अपने निधन के समय भी वो गोवा के मुख्यमंत्री का पदभार संभाल रहे थे।