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प्रवासी मजदूरों को उनके अपने नजदीकी शहरों में रोजगार दिलाने की नीतियां बनें: एसबीआई रिपोर्ट

By भाषा | Updated: June 11, 2020 01:48 IST

एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सरकार श्रमिक विशेष ट्रेन के माध्यम से की गयी यात्रा, फोन कॉल ब्योरा और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के रिकार्ड के आधार पर प्रवासी मजदूरों पर व्यापक आंकड़ा तैयार कर सकती है।

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ठळक मुद्देमजदूरों को उनके अपने गृह राज्यों में ही रोजगार देने के लिये नीति बनानी चाहिए: एसबीआई रिपोर्टरिपार्ट में मनरेगा को न्यूनतम कृषि मजदूरी दर के दायरे में लाने पर विचार करने की सिफारिश की हैगयी है।

मुंबई: सरकार को प्रवासी मजदूरों को उनके अपने गृह राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में ही रोजगार देने के लिये नीति बनानी चाहिए। एसबीआई की एक रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून) अब न्यूनतम मजदूरी कानून से जुड़ा नहीं है और कई मामलों में राज्यों द्वारा लागू न्यूनतम कृषि मजदूरी से कम है।

रिपार्ट में मनरेगा को न्यूनतम कृषि मजदूरी दर के दायरे में लाने पर विचार करने की सिफारिश की हैगयी है। रपट में यह भी कहा गया है कि सरकार ने वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू सख्त प्रतिबंधों का असर कम करने के लिए मनरेगा पर खर्च की जाने वाली राशि में चालीस हजार करोड़ रुपये की वृद्धि की है।

सरकार को दूसरे राज्यों से अपने गांव लौटे श्रमिकों का और अच्छा उपयोग करने की रणनीति भी तैयार करनी चाहिए। एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सरकार श्रमिक विशेष ट्रेन के माध्यम से की गयी यात्रा, फोन कॉल ब्योरा और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के रिकार्ड के आधार पर प्रवासी मजदूरों पर व्यापक आंकड़ा तैयार कर सकती है। एसबीआई रिपोर्ट इकोरैप के अनुसार, ‘‘करीब 58 लाख प्रवासी उत्तर प्रदेश, बिहार, ओड़िशा ओर पश्चिम बंगाल जैसे अपने गृह राज्यों को लौटे हैं। यह संख्या और बढ़ सकती हैं। हमें समुचित रूप से तैयार एसी नीति बनाने की जरूरत है जिससे प्रवासी मजदूरों को अपने ही राज्यों में रोजगार मिल सके।’’ सरकार के कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिये 25 मार्च 2020 से ‘लॉकडाउन’ की घोषणा के बाद से लाखों प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्यों को लौटे हैं।

एसबीआई रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है, ‘‘...हमें प्रवासी श्रमिकों का एक व्यापक आंकड़ा तैयार करने और असंगठित क्षेत्र में काम करने कामगारों के लिये नीति बनाने की जरूरत है। फोन पर की गयी बातचीत का ब्योरा, श्रमिक ट्रनों के जरिये यात्रा जैसी चीजों के आधार पर एक आंकड़ा तैयार कर सकते हैं।’’ इसमें कहा गया है कि प्रवासी मजदूरों के मामले में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओड़िशा तथा पश्चिम बंगाल की हिस्सेदारी करीब 90 प्रतिशत है। ऐसे में यह जरूरी है कि ऐसे श्रमिकों को अपने जिले में ही रोजगार उपलब्ध कराने के लिये नीतियां बनायी जाएं।

हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इतनी बड़ी संख्या में श्रमिकों के अपने गृह राज्य लौटने से राज्य सरकारों के लिये उन्हें रोजगार उपलब्ध कराना आसान नहीं होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसको देखते हुए जिनके पास जिनके पास रोजगार (मनरेगा) कार्ड है, उन्हें आजीविका के लिये कुछ पैसे बैंक के माध्यम से अग्रिम दिये जा सकते हैं। इससे गरीबों के हाथ में पैसा आएगा और इससे मांग तथा खपत को गति मिलेगी। इकोरैप में कहा गया हे, ‘‘बैंक इसके तहत मनरेगा कार्डधारकों को रोजगार गारंटी कानून के तहत दी जाने वाली मजदूरी का 40 प्रतिशत अग्रिम दे सकते हैं।

इसके लिये फार्म बेहद आसान रखा जाना चाहिए। साथ ही यह शर्त होनी चाहिए कि इस प्रकार के आजीविका कर्ज पर ब्याज की गारंटी सरकार दे। इस पर लागत महज करीब 4,000 करोड़ रुपये आएगी। वहीं खपत में 1.33 लाख करोड़ रुपये का इजाफा होगा।’’ इसमें कहा गया है कि जब मनरेगा कार्डधारक श्रम में योगदान देंगे और कर्ज का भुगतान करेंगे, ऋण खुद-ब-खुद समाप्त हो जाएगा।

एसबीआई की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, ‘‘ मनरेगा अब न्यूनतम मजदूरी कानून से जुड़ा नहीं है। कई मामलों में मनरेगा मजदूरी राज्य के न्यूनतम कृषि मजदूरी से कम है।’’ इसमें इस पर कम-से-कम अस्थायी तौर पर गौर करने का सुझाव दिया गया है। 

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