हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा का मिशन बिहार और दिल्ली भी प्रभावित हो सकता है. बिहार में जहां भाजपा अपने सहयोगी दल जेडीयू पर अपने प्रभाव बल के सहारे दबाव बढ़ाने का प्रयास कर रही थी तो वहीं, दिल्ली में भी वह आम आदमी पार्टी के खिलाफ आक्र मक अभियान की तैयारी कर रही थी, लेकिन दो राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद इन दोनों ही राज्य, जहां पर अगले साल चुनाव होने हैं, वहां पर उसे अपनी रणनीति में बदलाव के लिए विवश होना पड़ सकता है.
सूत्रों के मुताबिक बिहार में भाजपा महाराष्ट्र की तरह ही अपने सहयोगी दल जेडीयू पर दबाव बढ़ाने का प्रयास कर रही थी. यही वजह है कि यहां पर भाजपा की सीटें बढ़ाने और सरकार में उसकी हैसियत में भी इजाफा की मांग उसके कुछ नेताओं ने की थी, जिसके बाद जेडीयू की ओर से भी जवाबी विचार सामने आए थे.
हालांकि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने यह कहा था कि बिहार में वह सहयोगी दलों के साथ ही सामने आएगी. जानकारों का मानना है कि अंदरूनी तौर पर भाजपा यहां पर अपना दबदबा बढ़ाने का लगातार प्रयास कर रही है लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों के बाद फिलहाल भाजपा तात्कालिक तौर पर अपने इरादों पर ब्रेक लगाने का कार्य कर उचित समय का इंतजार करना पसंद करेगी, जिससे यहां पर भी उसे अनचाहे नतीजे का सामना न करना पड़े.
भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती दिल्ली में सरकार बनाना है. इसकी वजह यह है कि दिल्ली देश की राजधानी है और यहीं पर भाजपा का समस्त शीर्ष नेतृत्व भी लगातार रहता है. यही नहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार भाजपा को सीधी चुनौती भी देते रहते हैं. दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच आए दिन खींचतान भी दिखती है.
भाजपा अगले साल होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में किसी भी तरह से यहां से केजरीवाल नीत सरकार को बेदखल करना चाहती है, लेकिन इन दो राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद केजरीवाल का मनोबल काफी ऊंचा हो गया है. स्वयं भाजपा के रणनीतिकार मान रहे हैं कि केजरीवाल अपने चुनाव प्रचार में इन दो राज्योंं में भाजपा की स्थिति का हवाला देते हुए केंद्र सरकार की नीतियों पर भी सवाल खड़े करेंगे. ऐसे में उसे दिल्ली में सरकार बनाने के लिए भी नए सिरे से व्यूह रचना करनी होगी.