संजय नरवाडे
उमरखेड़ विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र का इतिहास देखा जाए तो, यहां से आज तक लगातार दो बार कोई भी प्रत्याशी चुनकर नहीं आ पाया है. पर वर्तमान विधायक राजेंद्र नजरधने को चुनौती देने वाला कोई चेहरा न मिलने पर इतिहास बदलने की संभावना दिखाई दे रही है .
फिलहाल अनुशासन प्रिय भाजपा में विविध गुटों की राजनीति चल रही है. हाल ही में उमरखेड़ के नगराध्यक्ष तथा इच्छुक उम्मीदवार भाजपा के नामदेव ससाणो तथा उमरखेड़ विधानसभा के वर्तमान विधायक राजेंद्र नजरधने के बीच हुए विवाद तथा दोनों द्वारा एक-दूसरे की गई आलोचना का मामला सामने आया है.
विधायक द्वारा अपनी वैचारिक अपरिपक्वता का प्रदर्शन सरेआम करना लोगों को कुछ रास नहीं आया है. इच्छुक प्रत्याशी नामदेव ससाणो के पूर्व विधायक उत्तमराव इंगले से अच्छे संबंध हैं, जो उनके लिए विधायक के रूप में पार्टी की टिकट लाने में कितने कारगर साबित होते हैं, यह तो समय ही बताएगा.
वहीं, युवा कार्यकर्ता भाविक भगत को संघ द्वारा प्रमोट किए जाने से भाजपा के खेमे में चर्चाओं का बाजार गर्म है. भाविक भगत भाजपा की अनुसूचित जाति आघाड़ी के जिलाध्यक्ष हैं तथा जिले के पालकमंत्री मदन येरावार के वे समर्थक माने जाते हैं. ग्राम स्तर पर सभी के संपर्क में रहकर लोगों से मेल मिलाप करने के साथ ही सभी के कार्यक्रमों में वे हिस्सा लेते दिखाई दे रहे हैं. सोशल मीडिया पर भी वे सभी को सहज उपलब्ध हो रहे हैं, ऐसे में समझा जा रहा है कि वे इस क्षेत्र में अपनी दावेदारी की पूर्व तैयारी कर रहे हैं.
भाजपा के नए जिलाध्यक्ष के रूप में उमरखेड़ के ही नितिन भुतड़ा की नियुक्ति करने से विधायक राजेंद्र नजरधने ने लिए यह बात कुछ काले बादलों की लकीर जैसी बन सकती है. अब तक लोग ‘केंद्र में नरेंद्र राज्य में देवेंद्र तथा उमरखेड़ विधानसभा क्षेत्र में राजेंद्र’ को लेकर चर्चा करते थे. पर अब उमरखेड़ विधानसभा क्षेत्र में यह भी चर्चा जोरों पर है कि देवेंद्र के बगैर राजेंद्र की नैया पार नहीं हो सकती है.
उमरखेड़ विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 2009 में कांग्रेस ने विजयराव खड़से तथा भाजपा ने राजेंद्र नजरधने को चुनाव में उतारा था. उस समय कांग्रेस के विजय खड़से केवल 2 हजार वोट से जीते थे. किंतु लोगों का मानना है कि विधायक खडसे के कार्यकाल में क्षेत्र में विकास नीति तथा जनता की समस्याओं की ओर बराबर ध्यान नहीं दिया गया.
वर्ष 2014 के चुनाव में मोदी लहर के कारण तथा विधायक विजय खड़से के प्रति नाराजगी के कारण लगभग 50 हजार वोटों से भाजपा के राजेंद्र नजरधने चुन कर आए थे. उसके बाद उन्होंने फिर पीछे मुड़कर न देखते हुए विकास के लिए लगातार प्रयास कर करोड़ों रुपए के कार्य अपने क्षेत्र में किए. इस चुनाव में स्थानीय मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया जाने वाला है इसलिए माना जा रहा है कि लोगों को अपने क्षेत्र में विकास करने वाला तथा जनता की समस्याएं हल करने वाला विधायक चाहिए.
फिलहाल, महागांव पंचायत समिति के सभापति गजानन कांबले भी विधानसभा की टिकट को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से संपर्क बढ़ा रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण से उनके अच्छे संबंध हैं, जिसका वे कितना लाभ उठा पाते हैं, यह तो समय ही बताएगा. वहीं उच्चशिक्षित प्राध्यापिका मीनाक्षी सावलकर ने भी कांग्रेस की टिकट मांगी है, उनका कहना है कि महिलाओं को अब तक इस क्षेत्र से कभी मौका ही नहीं दिया गया, इसलिए एक बार महिला को अवसर दिया जाना चाहिए.
उन्होंने अपना ग्राम स्तर पर संपर्क बढ़ा दिया है अब उन्हें टिकट मिलती है या फिर किसी और को यह तो वक्त ही बताएगा. दूसरी ओर डॉक्टर संदीप गायकवाड़ भी पूर्व मंत्री तथा कांग्रेस के कार्याध्यक्ष नितिन राऊत के माध्यम से टिकट हासिल करने के लिए प्रयासरत हैं.