अयोध्या विवाद: भगवान राम की जन्मस्थली अपने आप में देवता, उसे बांटा नहीं जा सकता, पढ़ें सुनवाई से जुड़े दिलचस्प सवाल-जवाब

By भाषा | Published: August 14, 2019 05:59 AM2019-08-14T05:59:30+5:302019-08-14T05:59:30+5:30

वैद्यनाथन ने कहा, "यदि श्रद्धा का भाव है और धार्मिक प्रभाव पर विश्वास किया जाता है, तो किसी स्थान को पवित्र मानने के लिये किसी मूर्ति की आवश्यकता नहीं है।"

Lord Ram’s Birthplace Itself A Deity Cannot Be Divided Hindu Group Tells Supreme Court | अयोध्या विवाद: भगवान राम की जन्मस्थली अपने आप में देवता, उसे बांटा नहीं जा सकता, पढ़ें सुनवाई से जुड़े दिलचस्प सवाल-जवाब

वकील ने पीठ से कहा, जब जन्मस्थान खुद ही देवता है तो अवधारणा यह है कि आप उसे बांट नहीं सकते।

Highlightsपीठ ने पूछा कि किस स्थान को भगवान राम की वास्तविक जन्मभूमि माना जाता है। वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय ने कहा था कि विवादित ढांचे के केंद्रीय गुंबद के नीचे का स्थान भगवान राम का जन्म स्थान माना जाता है।

राम लला विराजमान ने उच्चतम न्यायालय से मंगलवार को कहा कि भगवान राम की जन्मस्थली अपने आप में देवता है और मुस्लिम 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर अधिकार होने का दावा नहीं कर सकते क्योंकि संपत्ति को बांटना ईश्वर को ‘नष्ट करने’ और उसका ‘भंजन’ करने के समान होगा। ‘राम लला विराजमान’ के वकील प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के उस सवाल का जवाब दे रहे थे जिसमें पूछा गया था कि अगर हिंदुओं और मुसलमानों का विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल पर संयुक्त कब्जा था, तो मुस्लिमों को कैसे बेदखल किया जा सकता है।

‘राम लला विराजमान’ के वकील ने पीठ से कहा, ‘‘जब संपत्ति (जन्मस्थान) खुद ही देवता है तो अवधारणा यह है कि आप उसे नष्ट नहीं कर सकते, उसे बांट नहीं सकते या उसका भंजन नहीं कर सकते। अगर संपत्ति देवता है तो वह देवता ही बनी रहेगी और सिर्फ यह तथ्य कि वहां एक मस्जिद बन गयी, उससे देवता बांटने योग्य नहीं हो जाते।’’ पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं। ‘राम लला विराजमान’ की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले में चल रही सुनवाई के पांचवें दिन अपनी दलीलें रखनी शुरू की।

उन्होंने कहा,"भगवान राम का जन्म स्थान लोगों की आस्था की वजह से एक देवता बन गया है। 1500 ईस्वी के आस-पास बनी तीन गुंबद वाली बाबरी मस्जिद पवित्रता में हिंदुओं की आस्था और सम्मान को हिला नहीं पाई।" उन्होंने कहा कि पहुंच को हमेशा चुनौती दी गई, लेकिन हिदुओं को पूजा करने से कभी नहीं रोका गया। उन्होंने कहा "देवता की कभी मृत्यु नहीं होगी और इसलिए, देवता के उत्तराधिकार का कोई सवाल नहीं है"। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, मुसलमान यह साबित नहीं कर पाए हैं कि मस्जिद बाबर की थी।

शुरुआत में, वैद्यनाथन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया और कहा कि उच्च न्यायालय के तीनों न्यायाधीशों ने कहा था कि जिस स्थान पर मस्जिद बनी थी, वहां एक मंदिर था। जहां न्यायमूर्ति डी वी शर्मा और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा था कि मस्जिद मंदिर के स्थान पर बनी है, वहीं न्यायमूर्ति एस यू खान ने कहा था कि मस्जिद एक मंदिर के खंडहर में बनाई गई थी। वैद्यनाथन ने कहा कि मूर्तियों को "कानूनी व्यक्ति" का दर्जा दिया गया है, जो संपत्ति रखने और मुकदमा चलाने में सक्षम हैं और इसके अलावा, भगवान राम के जन्मस्थान को देवता का दर्जा प्राप्त है, जिन्हें समान अधिकार प्राप्त है। वैद्यनाथन ने कहा, "यदि श्रद्धा का भाव है और धार्मिक प्रभाव पर विश्वास किया जाता है, तो किसी स्थान को पवित्र मानने के लिये किसी मूर्ति की आवश्यकता नहीं है।"

पीठ ने इन दलीलों से सहमति जताई और 'कामदगिरि मंदिर परिक्रमा' का उदाहरण दिया और कहा कि ऐसी मान्यता है कि भगवान राम और देवी सीता "उस पहाड़ी पर रहे थे।" 'राम लला विराजमान' के वकील ने एक रिपोर्ट और मुस्लिम गवाहों की गवाही का जिक्र करते हुए कहा कि अयोध्या हिंदुओं के लिए उसी तरह का धार्मिक स्थल है, जैसा मक्का मुस्लिमों के लिये और यरूशलम यहूदियों के लिए है। वैद्यनाथन ने कहा कि मुसलमानों को विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा गलत तरीके से दिया गया है क्योंकि 1850 से 1949 तक वहां नमाज अदा करने के उनके दावे को जमीन के स्वामित्व का समर्थन नहीं हासिल है।

उन्होंने कहा कि न तो अपना मालिकाना हक साबित किया है और न ही प्रतिकूल कब्जे के जरिये हिंदुओं के मालिकाना हक से बेदखल होने को साबित किया गया है। उन्होंने कहा कि मंदिर को ध्वस्त करके मस्जिद के निर्माण के बावजूद देवता भूमि के मालिक बने रहे। उन्होंने कहा कि निर्मोही अखाड़ा को उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा दिया था। शबैत (भक्त) होने और स्थान के खुद देवता होने के कारण निर्मोही अखाड़ा का जन्म स्थान पर कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा, "पूरे जन्मस्थान (जनमस्थानम) को 'देवता' माना जाना चाहिए और इसलिए अखाड़ा भूमि के स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता है, क्योंकि वे देवता की सेवा में हैं।"

पीठ ने पूछा कि किस स्थान को भगवान राम की वास्तविक जन्मभूमि माना जाता है। वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय ने कहा था कि विवादित ढांचे के केंद्रीय गुंबद के नीचे का स्थान भगवान राम का जन्म स्थान माना जाता है। इससे पहले, राम लला विराजमान की ओर से वरिष्ठ वकील के परासरन ने यह कहते हुए अपनी दलीलें समाप्त कीं कि अदालत को मामलों में ‘पूर्ण न्याय’ करना चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में चौदह अपील दायर की गई हैं। उच्च न्यायालय ने चार दीवानी मुकदमों पर अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ भूमि को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला-के बीच समान रूप से विभाजित किया जाना चाहिए।

Web Title: Lord Ram’s Birthplace Itself A Deity Cannot Be Divided Hindu Group Tells Supreme Court

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