पटना: रेशम नगरी के नाम से विख्यात भागलपुर की गिनती बिहार के सबसे ऐतिहासिक और प्राचीन शहर में की जाती है। पुराणों में और महाभारत में इस क्षेत्र को अंग प्रदेश का हिस्सा माना गया है। भागलपुर के निकट स्थित चम्पानगर शूरवीर कर्ण की राजधानी मानी जाती रही है।
हिंदू धर्म ग्रंथों में समुद्र मंथन के लिए जिस मंदार पर्वत का इस्तेमाल किया गया था, वह यहीं पर स्थित माना जाता है। 1952 में हुए लोकसभा चुनाव के वक्त पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में भागलपुर की गिनती होती थी। उसके बाद में भागलपुर अलग लोकसभा सीट बना।
भागलपुर में वर्तमान में 6 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। उनमें से 8,57,006 पुरुष मतदाता हैं। महिला मतदाताओं की संख्या 9,66,745 हैं। वहीं थर्ड जेंडर के मतदाता 69 हैं। 2019 में कुल मतदान प्रतिशत 57.16 फीसदी था। जदयू के अजय कुमार मंडल वोटों 6,18,254 से जीत हासिल की थी। भागलपुर लोकसभा सीट पर पहली बार 1957 में पहली बार इस सीट पर चुनावी मैदान में कांग्रेस ने बाज़ी मारी थी।
1957 से लगातार 1984 तक (1977 के चुनाव को छोड़कर) कांग्रेस प्रत्याशी जीत का परचम लहराते रहे। पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके दिवंगत भागवत झा आजाद 5 बार यहां से सांसद चुने गए थे। 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी रामजी सिंह ने कांग्रेस के दिग्गज नेता भागवत झा आजाद को सियासी मात दी थी। 1989 भागलपुर दंगे के बाद कांग्रेस का वर्चस्व ना के बराबर हो गया और इसके बाद से एक भी चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी जीत का परचम नहीं लहरा सके।
1989 से लेकर 1996 जनता दल प्रत्याशी चुनचुन प्रसाद यादव ने सांसद की कुर्सी संभाली। पहली बार 1998 में भाजपा ने जीत दर्ज की। प्रभाष चंद्र तिवारी ने भाजपा का कमल खिलाया, वहीं 1999 में माकपा नेता सुबोध राय ने भाजपा के खाते से सीट अपने खाते में कर लिया। 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने भागलपुर विधानसभा सीट पर पार्टी का परचम दोबारा से बुलंद किया।
भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन भी दो बार यहां से जीत दर्ज की, 2014 लोकसभा चुनाव में राजद प्रत्याशी शैलेश कुमार मंडल ने भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन को सियासी मात दी थी। वहीं 2019 में एनडीए गठबंधन की वजह से जदयू प्रत्याशी अजय मंडल ने चुनावी दांव खेला और जीत दर्ज की।
भागलपुर में जातीय समीकरण की बात करें तो 3 लाख से अधिक गंगोता समाज है। 2 लाख कुर्मी कुशवाहा है। यादव व अल्पसंख्यक 30 फीसदी है यानी साढ़े 6 लाख के करीब है। अगड़ी जाती व वैश्य करीबन 5 लाख है। महादलित, दलित पिछड़ा- 3 लाख मतदाता है। अन्य जातियों के मतदाताओं की संख्या करीब साढ़े 3 लाख है।
उल्लेखनीय है कि गंगा किनारे बसा यह क्षेत्र हमेशा से अध्यात्म और शिक्षा का केंद्र रहा है। पाल वंश के राजा धर्मपाल ने 9वीं ईस्वी के करीब यहां विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई थी। इस विश्वविद्यालय में देश-विदेश से छात्र पढ़ने आते थे। सनकी बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट कर दिया था। मुगलकालीन इतिहास में भी इस स्थल का जिक्र मिलता है। अफगानी विद्रोह को कुचलने हेतु मुगल सेनापति मानसिंह ने यहीं पर अपनी अस्थाई सैनिक छावनी बनाई थी।
इस क्षेत्र में गंगा नदी पर बना विक्रमशिला सेतु देश का पांचवा सबसे लंबा पुल है। शहर के बीच में स्थित घंटाघर महत्वपूर्ण स्थान है। यहां बूढ़ानाथ मन्दिर, बाबा वृद्धेश्वरनाथ मन्दिर धार्मिक स्थान हैं। यह क्षेत्र रेशम उद्योग के लिए पूरे देश में जाना जाता है। यहां तसर से भागलपुरी साड़ी बनाने के कारखाने भी हैं। कृषि विश्वविद्यालय, तिलका मांझी विश्वविद्यालय, सिल्क इंस्टीट्यूट यहां के प्रमुख शैक्षणिक संस्थान हैं।