झारखंड में नक्सलवाद खात्मे की ओर अग्रसर है, कारण कि जिन ईलाकों में कभी लाल झंडा पहराता था, आज वहां भगवा झंडा गड गया है. जिस ईलाके में दिन के उजाले में भी लोग जाने से डरते थे आज उन ईलाकों में लोगों ने भगवा झंडे ने अपना परचम लहराया है. इसका उदाहरण यह है कि झारखंड में आठ नक्सल प्रभावित लोकसभा सीटों में से इस बार सात पर भाजपा और सहयोगी आजसू का परचम लहरा है.
इन नक्सल प्रभावित इलाकों में मात्र एक सीट सिंहभूम कांग्रेस के खाते में गई. सिंहभूम में पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोडा की पत्नी गीता कोडा ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा को हराया. हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव में यह सीट भी भाजपा के खाते में ही आई थी. 2014 में इन सभी आठ सीटों पर भाजपा का कब्जा था. लेकिन इस बार पार्टी एक सीट कांग्रेस से हार गई. सात में एक गिरिडीह पर आजसू और बाकी 6 पर भाजपा को जीत मिली.
झारखंड के नक्सल प्रभावित सीटों में चतरा से भाजपा के सुनील सिंह जीते, कांग्रेस के मनोज यादव हारे, रांची से भाजपा के संजय सेठ जीते, कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय हारे, खूंटी से भाजपा प्रत्याशी व पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा जीते, कांग्रेस के कालीचरण मुंडा हारे, गिरिडीह से आजसू प्रत्याशी सीपी चौधरी जीते, झामुमो के जगरनाथ महतो हारे, पलामू से भाजपा के वीडी राम जीते, राजद के घूरन राम हारे. सिंहभूम से कांग्रेस की गीता कोडा जीतीं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा हारे, दुमका से भाजपा के सुनील सोरेन जीते, झामुमो के प्रत्याशी व पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन हारे और लोहरदगा से भाजपा प्रत्याशी व केन्द्रीय मंत्री सुदर्शन भगत जीते, कांग्रेस के सुखदेव भगत हारे.
झारखंड में नक्सलवाद की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री रघुवर दास लोहरदगा के अतिनक्सल प्रभावित क्षेत्र पेशरार में जाकर पदयात्रा की और केन्द्रीय मंत्री सुदर्शन भगत के लिए वोट मांगा था. एक वक्त था, जब दिन के उजाले में भी पेशरार जाना, सरकार और प्रशासन के लिए लगभग असंभव था.
नक्सली गांव से बच्चों को उठा कर ले जाते थे और लोग डर के साये में ये सब सहने को मजबूर थे. लेकिन बीते चार सालों में हालात पूरी तरह बदल गये हैं. अब पेशरार में नक्सलराज खत्म हो गया है. गांव अब विकास के पथ पर है. झारखंड में नक्सलियों के ज्यादातर बडे कमांडर या तो मारे चले गये हैं या आत्मसमर्पण कर सरकार की शरण में आ गये हैं.
हालांकि अभी देश के 30 अतिनक्सल प्रभावित जिलों में झारखंड के 13 जिले शामिल हैं. खूंटी, गुमला, लातेहार, सिमडेगा, पश्चिम सिंहभूम, रांची, दुमका, गिरिडीह, पलामू, गढ़वा, चतरा, लोहरदगा और बोकारो ये सूबे के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जिले हैं. जबकि सरायकेला, पूर्वी सिंहभूम, हजारीबाग, धनबाद और गोड्डा में नक्सल समस्या करीब-करीब खत्म हो चुकी है. कोडरमा, जामताडा, पाकुड, रामगढ, देवघर और साहेबगंज नक्सलमुक्त जिले हो गये हैं.
ऐसे में इसे सुरक्षा बलों की सफलता कहा जाये या फिर कमजोर पडता नक्सलवाद, झारखंड में इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान कोई बडी नक्सली घटना नहीं घटी. पलामू और खरसावां में भाजपा चुनाव कार्यालय उडाया गया. लेकिन इसका मतदाताओं पर कोई असर नहीं पडा. चार चरणों में मतदान के दौरान बेखौफ होकर लोग घरों से निकले और अपने मताधिकार का प्रयोग किया. न
नक्सल प्रभावित सीटों पर वोट प्रतिशत अच्छा रहा. इसबार 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 10 फीसदी ज्यादा सुरक्षा बल की तैनाती की गई थी. हर चरण में पांच सौ कंपनियां लगाये गये थे. इनमें अर्धसैनिक और जिला पुलिस के जवान शामिल थे.