लोकसभा चुनाव 2019: नेहरू की संसदीय सीट रहे फूलपुर में कांग्रेस के लिए पांव जमाना आसान नहीं

By भाषा | Published: May 5, 2019 03:33 PM2019-05-05T15:33:41+5:302019-05-05T15:33:41+5:30

फूलपुर संसदीय सीट को कभी ‘‘वीआईपी सीट’’ कहा जाता था क्योंकि आजादी के बाद पहली बार 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में पंडित जवाहरलाल नेहरू फूलपुर संसदीय सीट से जीते थे। फिर वह 1957 और 1962 में भी इस सीट से सांसद निर्वाचित हुए। 2009 के चुनाव में फूलपुर संसदीय सीट से बसपा के पंडित कपिल मुनि करवरिया चुनाव जीते थे।

Lok Sabha Elections 2019: For Congress in Phulpur, Nehru's parliamentary constituency is not easy to score | लोकसभा चुनाव 2019: नेहरू की संसदीय सीट रहे फूलपुर में कांग्रेस के लिए पांव जमाना आसान नहीं

वर्ष 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर के चलते पहली बार भाजपा ने इस सीट पर कब्जा किया

 स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की कर्मभूमि रही फूलपुर संसदीय सीट पर कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़़ रही है। देश के राजनीतिक नक्शे में खास जगह रखने वाले उत्तरप्रदेश की फूलपुर संसदीय सीट पर इस बार भी मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन के बीच है और चुनावी मैदान में कांग्रेस कहीं नजर नहीं आ रही है।

फूलपुर संसदीय सीट को कभी ‘‘वीआईपी सीट’’ कहा जाता था क्योंकि आजादी के बाद पहली बार 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में पंडित जवाहरलाल नेहरू फूलपुर संसदीय सीट से जीते थे। फिर वह 1957 और 1962 में भी इस सीट से सांसद निर्वाचित हुए। 2009 के चुनाव में फूलपुर संसदीय सीट से बसपा के पंडित कपिल मुनि करवरिया चुनाव जीते थे।

2004 में सपा के अतीक अहमद और 1999 में सपा के ही धर्मराज पटेल ने यह सीट जीती थी। बहरहाल, वर्ष 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर के चलते पहली बार भाजपा ने इस सीट पर कब्जा किया और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य फूलपुर सीट से विजयी रहे। उनके इस्तीफे के बाद खाली हुई यह सीट 2018 में हुए उपचुनाव में सपा के पास चली गई थी।

फूलपुर तहसील के शुक्लाना मोहल्ले के निवासी राम गोपाल मौर्य का कहना है कि मुख्य लड़ाई भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन के बीच है। कांग्रेस का कोई नाम लेने वाला नहीं है। उन्होंने कहा, “फूलपुर में यादव और मुस्लिमों की संख्या अधिक है, लेकिन इनमें से कुछ लोग तो जरूर मोदी सरकार को वोट करेंगे क्योंकि इतनी बिजली और अन्य सुविधाएं पहले कभी नहीं मिलीं।”

फूलपुर में केंद्र की योजनाओं के तहत लाभ देने में कथित भेदभाव को लेकर स्थानीय लोगों खासकर अनुसूचित जाति के लोगों में आक्रोश है। अनुसूचित जाति के 46 परिवारों की बस्ती वाले वार्ड संख्या 2 के निवासी गुलाब चंद गौतम का आरोप है ‘‘इस बस्ती के लगभग सभी लोग भाजपा को वोट देते हैं फिर भी केंद्र की योजनाओं के लाभ से इन्हें वंचित रखा गया।’’ उन्होंने बताया कि फूलपुर टाउन एरिया की चेयरमैन काजमीन सिद्दीकी सपा से हैं और जमीलाबाद में ज्यादातर ऐसे लोगों को कॉलोनियां (प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान) दी गई हैं जिनके पहले से पक्के मकान हैं।

वहीं दूसरी ओर हरिजन बस्ती में केवल छह परिवारों को मकान बनाने के लिए पैसा मिला है। इस हरिजन बस्ती में एक-दो परिवारों को छोड़कर सभी भूमिहीन किसान हैं और सभी के घर की महिलाएं बीड़ी बनाने का काम करती हैं। फूलपुर संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले झूंसी के कोहना गांव के निवासी अजय त्रिपाठी का कहना है ‘‘यह चुनाव बहुत हद तक जातिवाद पर आधारित हैं।

बहरहाल, मुख्य लड़ाई भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन के बीच है इसलिए कांग्रेस को वोट दे कर कोई अपना वोट खराब नहीं करना चाहता।’’ फूलपुर तहसील के मलाका गहरपुर गांव के निवासी रामलाल विश्वकर्मा ने कहा कि अभी तक राहुल गांधी जैसे कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने यहां प्रचार नहीं किया है। इससे लोगों में पार्टी को लेकर कोई उत्साह नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि गांव का प्रधान बसपा से हैं और सपा से गठबंधन के बाद उन्होंने गांव के उन सभी लोगों के नाम लाभार्थियों की सूची से कटवा दिए जो भाजपा समर्थक हैं।

नेहरू की वजह से ‘‘वीआईपी सीट’’ कहलाने वाले फूलपुर संसदीय क्षेत्र से, 1964 में नेहरू के निधन के बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने फूलपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद बनीं। आखिरी बार 1984 में फूलपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर रामपूजन पटेल चुनाव जीते थे। लेकिन रामपूजन पटेल बाद में जनता दल में शामिल हो गए।

1996 से 2004 के बीच हुए चार लोकसभा चुनावों में इस सीट से सपा के उम्मीदवार जीतते रहे। 2018 के उपुचनाव में भी यहां से सपा ही जीती। फूलपुर में सबसे बड़ी आबादी पटेलों की हैं और यादवों एवं मुस्लिमों की संख्या भी इसके आस-पास ही है। सपा-बसपा गठबंधन ने पंधारी यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है वहीं भाजपा ने केशरी देवी पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया है।

कांग्रेस के प्रत्याशी पंकज निरंजन पटेल हैं। 1984 से यह सीट कांग्रेस की पहुंच से दूर हो गई। बीते 35 साल से इस संसदीय सीट को जीतने के लिए जी..तोड़ कोशिश कर रही कांग्रेस इस बार भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। इस सीट पर 12 मई को मतदान होगा। 

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