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हिंदू आतंकवादी वाले बयान पर कमल हासन के खिलाफ PIL पर सुनवाई से दिल्ली हाईकोर्ट ने किया इंकार

By भाषा | Updated: May 15, 2019 15:51 IST

अदालत ने आयोग से कहा कि वह हासन की हालिया टिप्पणी के मामले में उपाध्याय के ज्ञापन पर जल्द फैसला करे। यह याचिका उपाध्याय ने दाखिल की है और इसमें चुनावी फायदे के लिए मज़हब के ‘‘दुरुपयोग’’ को लेकर दलों का पंजीकरण रद्द करने और उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की है।

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को उस जनहित याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया जिसमें अभिनेता से नेता बने कमल हासन के एक बयान का उल्लेख करते हुए चुनावी फायदे के लिये धर्म के इस्तेमाल को रोकने के लिये चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी।

गौरतलब है कि हासन ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का जिक्र करते हुये कहा था, ‘‘आज़ाद भारत का पहला उग्रवादी एक हिंदू था।’’ न्यायमूर्ति जी एस सिस्तानी और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा कि भाजपा नेता अश्चिनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर यह अदालत विचार नहीं कर सकती है क्योंकि हासन ने इस अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर यह बयान दिया है।

हालांकि, अदालत ने आयोग से कहा कि वह हासन की हालिया टिप्पणी के मामले में उपाध्याय के ज्ञापन पर जल्द फैसला करे। यह याचिका उपाध्याय ने दाखिल की है और इसमें चुनावी फायदे के लिए मज़हब के ‘‘दुरुपयोग’’ को लेकर दलों का पंजीकरण रद्द करने और उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की है।

पेशे से अधिवक्ता उपाध्याय ने आरोप लगाया कि हासन ने चुनावी फायदे के लिये मुस्लिम समुदाय की भीड़ के बीच ‘‘जानबूझ’’ कर यह बयान दिया। याचिका में कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपीए), 1951 की धाराओं के तहत स्पष्ट रूप से यह गलत आचरण है।

मक्कल नीधि मय्यम पार्टी के अध्यक्ष हासन ने रविवार को अपनी पार्टी के एक प्रत्याशी के पक्ष में आयोजित एक चुनावी रैली में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को आजाद भारत का पहला ‘‘हिन्दू उग्रवादी’’ बताया था। यह उपचुनाव अरवाकुरूची विधानसभा सीट पर हो रहा है और यहां 19 मई को वोट डाले जायेंगे।

याचिका में उन्होंने कहा है कि आदर्श आचार संहिता के मुताबिक कोई भी पार्टी या उम्मीदवार ऐसी गतिविधि में शामिल नहीं हो सकता जिससे कि जाति और समुदायों के बीच मतभेद पैदा हो। याचिका में कहा गया है कि हासन द्वारा चुनावी फायदे के लिए मज़हब के कथित इस्तेमाल के बावजूद चुनाव आयोग ने इस संबंध में अब तक कुछ नहीं किया है। 

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