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Lok Sabha Election Results 2024: यूपी में कांग्रेस को मिली खोई हुई जमीन, 2019 में सिर्फ एक सीट जीतने के बाद 6 सीटों पर मारी बाजी, समझिए पूरे प्रदेश का सियासी ककहरा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: June 5, 2024 14:53 IST

लोकसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन ने उत्तर प्रदेश में एनडीए को करारा झटका देते हुए 43 सीटें अपने नाम कर लीं।

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ठळक मुद्देकांग्रेस-सपा गठबंधन ने उत्तर प्रदेश में एनडीए को करारा झटका देते हुए 43 सीटें अपने नाम की बीजेपी और उसके सहयोगी को भारी नुकसान हुआ, जो कुल मिलाकर 36 सीटों पर सिमट गए2019 में एनडीए द्वारा जीती गई 64 सीटों की तुलना में उसे 28 सीटों का भारी नुकसान हुआ है

लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन ने उत्तर प्रदेश में एनडीए को करारा झटका देते हुए 43 सीटें अपने नाम कर लीं। जिसके कारण सबसे भारी नुकसान बीजेपी और उसके सहयोगी को हुआ, जो कुल मिलाकर 36 सीटों पर सिमट गए।

नतीजों को देखें तो पता चलता है कि 2019 में एनडीए द्वारा जीती गई 64 सीटों की तुलना में उसे 28 सीटों का नुकसान है। वहीं बीजेपी का वोट शेयर भी 2019 की तुलना में 49.97 फीसदी से घटकर इस बार 41 फीसदी से थोड़ा अधिक रह गया है।

समाचार वेबसाइट टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार यूपी में सपा और कांग्रेस ने क्रमशः 37 और 6 सीटें जीतीं, जो कि 2019 की तुलना में 37 सीटों का इजाफा है, जब दोनों ने मिलकर छह सीटें जीती थीं।

यूपी में सबसे बड़ा उलटफेर अमेठी में हुआ, जहां केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को हार का सामना करना पड़ा। उसके अलावा मोदी सरकार के छह और केंद्रीय मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा। अमेठी सीट पर गांधी परिवार के वफादार किशोरी लाल शर्मा से 1.6 लाख से अधिक वोटों के अंतर से स्मृति ईरानी को हार का सामना करना पड़ा, उन्होंने पिछली बार इसी सीट पर राहुल गांधी को 55,000 से अधिक वोटों से हराया था।

जबकि पीएम नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अप्रत्याशित तरीके से अपनी जीत का अंतर कम होते हुए देखाष वहीं राहुल गांधी ने रायबरेली की सीट 3.9 लाख से अधिक वोटों से हासिल की। एसपी ने उन सभी पांच सीटों पर जीत हासिल की, जहां से अखिलेश यादव ने अपने परिवार के सदस्यों ने चुनाव लड़ाया था। इनमें कन्नौज से खुद अखिलेश यादव), मैनपुरी से डिंपल यादव, बदायूं से आदित्य यादव, फर्रुखाबाद से अक्षय यादव) और आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव की सीट शामिल है।

सपा ने इस चुनाव में जोरदार वापसी की है, जबकि 2019 के चुनाव में वो बसपा के साथ गठबंधन में केवल पांच सीटें ही जीत सकी थी। कांग्रेस ने भी अपने गढ़ रायबरेली और अमेठी सहित छह सीटें जीतकर आश्चर्यचकित कर दिया। 40 साल के अंतराल के बाद कांग्रेस ने सहारनपुर से भी जीत हासिल की।

वहीं नगीना को आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद ने जीता था, जो पश्चिम यूपी में उनके राजनीतिक उत्थान का समर्थन करता था। एक ही समय पर मायावती के नेतृत्व वाली बसपा को बुरी हार का सामना करना पड़ा है और उनका वोट शेयर 2019 में 19 फीसदी के मुकाबले घटकर इस बार लगभग 9 फीसदी रह गया है।

भाजपा की सहयोगी रालोद अपनी दो सीटें बागपत और बिजनौर जीतने में कामयाब रही, जिससे पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा के हाथों लगातार हार के बाद वह राष्ट्रीय राजनीति में वापस आ गई लेकिन बीजेपी की अन्य सहयोगी अपना दल केवल एक सीट मिर्ज़ापुर, बरकरार रख सकी, जहां से केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल जीतीं। वहीं भाजपा की दो अन्य सहयोगी सुभासपा और निषाद पार्टी क्रमशः घोसी और संत कबीर नगर में हार गईं।

बात अगर समाजवादी पार्टी की करें तो साल 2019 के चुनाव में उसका वोट शेयर 18.11 फीसदी था. जो बढ़कर इस बार 33 फीसदी से अधिक हो गया है। सपा ने इस बार 62 सीटों पर चुनाव लड़ा था। सपा की यह कामयाबी मूलतः गठबंधन के पीछे मुसलमानों के व्यापक एकजुटता का नतीजा है। बताया जाता है कि सपा को ओबीसी और दलितों के एक वर्ग का भी समर्थन मिला है, जो इस चुनाव में बसपा और भाजपा से छिटक गए थे।

सपा की संख्या में उल्लेखनीय सुधार ने उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उसकी स्थिति को मजबूत किया है, जो संभावित रूप से 2027 के यूपी चुनावों के लिए चुनावी कहानी तैयार कर सकता है।

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