चुनाव के नतीज़े आने से पहले ही हार गया चुनाव आयोग ,कार्यशैली पर उठ रहे हैं सवाल
By शीलेष शर्मा | Published: May 13, 2019 08:36 PM2019-05-13T20:36:47+5:302019-05-13T20:36:47+5:30
चुनाव की निष्पक्षता को लेकर हद तो तब हो गयी जब राजधानी दिल्ली के मटिआला की बूथ संख्या 96 पर मतदाता मिलन गुप्ता वीवीपैट मशीन में ही ईवीएम का बटन दबाने पर जिसको वोट नहीं दिया उसका चुनाव चिन्ह दिखने लगा। सीधा अर्थ था वोट दिया किसी को जा रहा था किसी और को।
लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में केवल सप्ताह का समय बचा है , 23 मई को परिणाम घोषित होंगे ,कौन राजनैतिक दल जीतेगा यह तभी साफ़ होगा लेकिन चुनाव आयोग नतीज़े आने से पहले ही हार गया है। यह सवाल सोशल मीडिया में उठ रहा है ,जिसका बड़ा कारण चुनाव के दौरान फर्जी मतदान , वोटर लिस्ट से बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम गायब ,ईवीएम का खराब होना ,सात चरणों में मतदान कराने के बाबजूद पश्चिमी बंगाल में बूथों पर हिंसा की खबरें चुनाव आयोग पर सवाल उठा रहा है। यह पहला चुनाव है जहाँ आयोग को हज़ारों शिकायतों और ज्ञापनों से रूबरू होना पड़ रहा है।
चुनाव की निष्पक्षता को लेकर हद तो तब हो गयी जब राजधानी दिल्ली के मटिआला की बूथ संख्या 96 पर मतदाता मिलन गुप्ता वीवीपैट मशीन में ही ईवीएम का बटन दबाने पर जिसको वोट नहीं दिया उसका चुनाव चिन्ह दिखने लगा। सीधा अर्थ था वोट दिया किसी को जा रहा था किसी और को। मिलन गुप्ता ने जब इसकी शिकायत प्रासाइडिंग ऑफिसर से की तो उसने गुप्ता को नोडल ऑफिसर से बात करने को कह कर उनको टाल दिया ,नोडल अधिकारी ने सेक्टर अधिकारी पर टाल दिया ,हैरत की बात तो यह थी कि एक के बाद एक अधिकारी गुप्ता पर दबाव बनाते रहे कि वह शिकायत न करें। मिलन ने ट्वीट कर अपनी पीड़ा को साझा किया।
यह केवल मिलन की कहानी नहीं ,पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद की बहन जाह्नवी वोट डालने गयी तो उनका वोट पहले डाला जा चुका था। शरद पवार ने भी अपना अनुभव साझा किया जिसमें वोट डाला किसी को ईवीएम से वोट गया भाजपा को। अमेठी में तो शाम के झुरमुटे में ईवीएम ट्रकों में भर कर ले जाई जा रहीं थी। ईवीएम खराबी की बात तो जैसे आम थी ,देश के हर प्रान्त से ख़बरें आयीं। माया ,सिद्धू ,आज़म ,मेनका पर आचार सहिंता के उलंघन को लेकर प्रतिबंध लगा लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और मोदी पर कार्यवाही करने का साहस आयोग नहीं जुटा पाया ,कार्यवाही की आयोग ने खानापूरी की वह भी तब जब सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग पर शिकंजा कसा।
लाचार चुनाव और उसमें बैठे मुख्य चुनाव आयुक्त की कार्यशैली ने लोगों को टी एन शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त की याद ताज़ा कर दी ,जिनके डर से राजनैतिक दल थर्र थर्र कांपते थे ,यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज चुनाव आयोग अपने ही चुनाव आयुक्त की राय जिसमें उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त के फ़ैसले से असहमति जतायी को रिकॉर्ड पर लेने को तैयार नहीं था ,सच को मीडिया से छिपाया गया।