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बिहार के औरंगाबाद सीट पर टिकी हैं सब की निगाहें, वर्तमान सांसद सुशील सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर

By एस पी सिन्हा | Updated: April 4, 2019 07:28 IST

लोकसभा चुनाव 2019: बिहार के मिनी चित्तौडगढ़ के रूप में औरंगाबाद चर्चित राजपूतों की बहुलता के कारण मिनी चित्तौडगढ़ कहा जाने वाला औरंगाबाद की सीट पर 1952 के पहले चुनाव से अबतक सिर्फ राजपूत उम्मीदवार ही विजयी हुये हैं।

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ठळक मुद्दे2014 में सुशील सिंह जदयू छोडकर भाजपा में शामिल हो गए और चुनाव लड़ा थाऔरंगाबाद में राजपूतों की संख्या सबसे ज्यादा है, दूसरे स्थान पर यादव मतदाता

बिहार में इस लोकसभा चुनाव के दौरान सभी पार्टियां अपना दम खम दिखाने में जुट गई हैं. 11 अप्रैल को पहले चरण के चुनाव में औरंगाबाद लोकसभा सीट पर भी मतदान होना है. इसे बिहार का मिनी चित्तौडगढ भी कहा जाता है. यहां इस बार मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद है क्योंकि राजपूतों की परंपरागत सीट रही औरंगाबाद में इस बार वर्तमान सांसद सुशील सिंह को महागठबंधन से हम के उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद वर्मा चुनौती दे रहे हैं.

2014 में हुए लोकसभा चुनाव की करें तो इस सीट से भाजपा के सुशील सिंह जीते थे. उन्हें 3 लाख 7 हजार 914 वोट मिले थे और उन्होंने कांग्रेस के निखिल कुमार को हराया था. लेकिन इस बार समीकरण बदल गया है. सुशील सिंह के सामने इस बार एनडीए के विरोध में विपक्षी दलों के बने महागठबंधन से हम के प्रत्याशी उपेंद्र प्रसाद हैं. औरंगाबाद सीट पर जबर्दस्त टक्कर सुशील सिंह के मुख्य प्रतिद्वंदी माने जा रहे उपेंद्र प्रसाद ने तंज कसते हुये जीत का दावा किया और कहा कि इस बार औरंगाबाद की राजनीति महलों से निकलकर झोंपडी में आने वाली है. वहीं, जब सांसद से पूछा गया कि वे अपना निकटतम प्रतिद्वंदी किसे मानते हैं तो उन्होंने कहा कि यहां का मुकाबला एकतरफा है और दूर-दूर तक उनके सामने कोई है ही नहीं. सुशील सिंह ने अपने संसदीय क्षेत्र के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किये गये कार्यों का हवाला दिया और विकास के मुद्दे पर चुनाव लडने की बात भी कही. 

औरंगाबाद  लोकसभा सीट पर अब तक सिर्फ राजपूत उम्मीदवार ही विजयी हुये हैं

मिनी चित्तौडगढ के रूप में औरंगाबाद चर्चित राजपूतों की बहुलता के कारण मिनी चित्तौडगढ कहा जाने वाला औरंगाबाद की सीट पर 1952 के पहले चुनाव से अबतक सिर्फ राजपूत उम्मीदवार ही विजयी हुये हैं. यहां के लोकसभा चुनावों में सत्येंद्र नारायण सिंह और लूटन बाबू का परिवार ही आमने-सामने रहा है. इस सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या 13 लाख 76 हजार 323 है जिनमें से पुरुष मतदाता 7 लाख 38 हजार 617 हैं. जबकि महिला मतदाता 6 लाख 37 हजार 706 हैं.

वहीं अगर जातीय समीकरण की बात करें तो औरंगाबाद में राजपूतों की संख्या सबसे ज्यादा है. दूसरे स्थान पर यादव मतदाता हैं, जिनकी संख्या 10 प्रतिशत है. मुस्लिम मतदाता 8.5 प्रतिशत, कुशवाहा 8.5 प्रतिशत और भूमिहार मतदाताओं की संख्या 6.8 प्रतिशत है. एससी और महादलित मतदाताओं की संख्या इस लोकसभा क्षेत्र में 19 प्रतिशत है. जो प्रत्याशी इस 19 फीसदी मतदाताओं को अपने पाले में लाने में सफल होता है, उसी के सिर पर यहां का ताज होता है. 

औरंगाबाद  लोकसभा सीट का समीकरण

यहां 6 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से दो सीटें कुटुम्बा और इमामगंज रिजर्व हैं. तीन सीटें- औरंगाबाद, कुटुंबा और रफीगंज औरंगाबाद जिले में हैं, जबकि गया जिले में इमामगंज, गुरुआ और कोच विधानसभा सीटें आती हैं. 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में इन 6 सीटों में से दो कांग्रेस, दो जदयू, 1 भाजपा और एक सीट हम के खाते में गई थी. वर्तमान सांसद की करें तो सुशील सिंह ने 1998 में समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लडा और वीरेंद्र कुमार सिंह को पराजित किया. वर्ष 2014 में भाजपा और जदयू के अलग होने के बाद सुशील सिंह जदयू छोडकर भाजपा में शामिल हो गए और भाजपा के टिकट पर चुनाव लडा था.

वहीं, बात अगर महागठबंधन(हम) के प्रत्याशी उपेंद्र प्रसाद की करें तो उनका रिकॉर्ड दल बदल वाला रहा है और महागठबंधन उम्मीदवार बनने से पहले वे जदयू के विधान पार्ष्द थे. उपेंद्र प्रसाद जदयू से औरंगाबाद की टिकट के लिए जोर आजमाइश भी कर रहे थे. लेकिन औरंगाबाद की सीट भाजपा के खाते में जाने के बाद उन्होंने पार्टी बदल ली और जीतन राम मांझी की पार्टी से अपना औरंगाबाद का टिकट कन्फर्म करा लिया.  

औरंगाबाद के बारे में नेता चाहे जितने भी कागजी दावे कर लें, चाहे जितने कार्य और उपलब्धियां गिना दें लेकिन जमीनी हकीकत तो वहां की जनता ही बताती है. औरंगाबाद के लोगों ने बताया कि जिले की अधूरी उत्तर कोयल नहर परियोजना, नक्सलवाद, गिरता जलस्तर, सिंचाई सुविधा और पेय जल, गन्ना किसानों से जुडे मसले इस बार यहां के चुनाव के प्रमुख मुद्दे हैं.

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