लोकसभा चुनाव 2019: गठबंधन को लेकर बीजेपी बैकफुट पर और कांग्रेस फ्रंटफुट पर क्यों है?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: March 10, 2019 01:11 PM2019-03-10T13:11:39+5:302019-03-10T13:32:37+5:30
इस बार लोकसभा चुनाव में बढ़ती चुनौतियों के कारण बीजेपी गठबंधन को लेकर बैकफुट पर है, वहीं कांग्रेस सियासी संभावनाओं को देखते हुए फ्रंटफुट पर है. राहुल गांधी और पीएम मोदी की ताबड़तोड़ चुनावी रैलियां शुरू हो चुकी हैं.
लोस चुनाव के मद्देनजर जहां बीजेपी तेजी से एक के बाद एक राज्य में सहयोगी दलों की शर्तों पर गठबंधन करती जा रही है, वहीं कांग्रेस गठबंधन को लेकर, ठहरो और देखो की रणनीति पर चल रही है. जहां इस बार लोस चुनाव में बढ़ती चुनौतियों के कारण बीजेपी गठबंधन को लेकर बैकफुट पर है, वहीं कांग्रेस सियासी संभावनाओं को देखते हुए फ्रंटफुट पर है.
बीजेपी ने अब तक बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब आदि राज्यों में अपने सहयोगी दलों के साथ सीटों के बंटवारे के साथ गठबंधन को अंतिम रूप दे दिया है, तो झारखंड में बीजेपी और ऑल झारखंड स्टुडेंट यूनियन गठबंधन पर बीजेपी के संसदीय बोर्ड की बैठक में मुहर लगाई गई है. बीजेपी झारखंड की 14 में से 13 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और आजसू एक सीट पर चुनाव लड़ेगी.
तीन राज्यों में जीत के बाद बढ़ा आत्मविश्वास
कांग्रेस ने तीन प्रमुख राज्यों एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में जीत हांसिल करने के बाद अपनी रणनीति में बदलाव किया है. विस चुनाव के बाद कांग्रेस को सियासी संभावनाएं नजर आने लगी तो उसने अपनी शर्तो पर आगे बढ़ना शुरू कर दिया है. यही वजह है कि कांग्रेस ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन में दिलचस्पी नहीं दिखाई, तो यूपी में एकला चालो की राजनीति पर आगे बढ़ते हुए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी कर दी.
यूपी में सपा-बसपा ने कांग्रेस को अलग रखते हुए एकतरफा गठबंधन तो कर लिया था, लेकिन प्रियंका गांधी की सक्रिय सियासत में एंट्री के बाद यूपी की राजनीति तस्वीर ही बदल गई है. राजनीतिक जानकारों को भी लगने लगा है कि कांग्रेस को कमजोर मानना गलत था और सपा-बसपा का एकतरफा गठबंधन, बगैर कांग्रेस के उपचुनावों जैसा चुनावी करिश्मा शायद ही दिखा पाए.
यूपी में यदि बीजेपी, कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन के बीच त्रिकोणात्मक संघर्ष हुआ तो जहां कांग्रेस को फायदा होगा, बीजेपी को राहत मिलेगी, वहीं सपा-बसपा गठबंधन को नुकसान होगा, क्योंकि जहां कांग्रेस को बीजेपी के नाराज वोट का साथ मिलेगा, वहीं सपा-बसपा गठबंधन के लिए एक-दूजे के वोट हस्तांतरित करना आसान नहीं होगा. कांग्रेस के फेवर में सपा-बसपा गठबंधन के वोट की क्राॅस वोटिंग कैसे रूकेगी?
यूपी में बदलते राजनीतिक समीकरण के मद्देनजर ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सियासी सुर बदल रहे हैं. वे बार-बार बता रहे हैं कि उनके गठबंधन में कांग्रेस साथ है और कांग्रेस के लिए दो सीटें- अमेठी और रायबरेली छोड़ी गई है. अब कांग्रेस ने भी इसके जवाब में सपा-बसपा गठबंधन के लिए दो-तीन सीटें छोड़ने की बात कह दी है.
कांग्रेस अपने दम पर लड़ेगी चुनाव
कांग्रेस महासचिव और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया का कहना है कि उनकी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव अपने दम पर लड़ेगी. सपा-बसपा गठबंधन के साथ जाने के प्रश्न पर सिंधिया का कहना है कि- हमने बार बार कहा है कि हमारा मकसद एक ही है कि केंद्र में संप्रग की सरकार बननी चाहिए. सपा और बसपा ने अपना निर्णय लिया है. उनका यह हक है कि वे अपना निर्णय लें. हम उनके निर्णय का सम्मान करते हैं.
सपा-बसपा गठबंधन की ओर से कांग्रेस के लिए दो सीटें छोड़ने संबंधी अखिलेश यादव के बयान पर उनका कहना है कि- हम भी उनके लिए दो-तीन सीटें छोड़ देंगे!
इस वक्त करीब आधा दर्जन ऐसे राज्य हैं, जहां कांग्रेस सत्ता में है और वहां क्षेत्रीय दलों की कोई बड़ी भूमिका नहीं है. इन राज्यों में कांग्रेस-बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला तो है ही, लोस चुनाव में कांग्रेस के लिए बेहतर संभावनाएं भी हैं, लिहाजा कांग्रेस, दिल्ली, यूपी, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में गठबंधन की संभावनाएं तलाशने के बजाय अपने दम पर फिर से पार्टी को मजबूत करने में जुटी है.
बीजेपी को हर हाल में सत्ता चाहिए
उधर, बीजेपी हर हाल में 2019 में फिर से केन्द्र की सत्ता चाहती है. उसे पता है कि अकेले अपने दम पर इस बार बीजेपी को केन्द्र की सत्ता नहीं मिलेगी और इसीलिए न केवल बीजेपी, सहयोगी दलों की शर्तों पर सीटों का बंटवारा कर रही है, बल्कि सक्षम सहयोगी दलों की संख्या भी बढ़ा रही है.
जाहिर है, अपनी-अपनी सियासी सोच के कारण ही विभिन्न राज्यों में गठबंधन को लेकर बीजेपी बैकफुट पर, तो कांग्रेस फ्रंटफुट पर है!