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समलैंगिक समुदाय ने क्यों अपनाया 'पिंक ट्राएंगल' और 'रेनबो फ्लैग', क्या हैं इसके मायने?

By आदित्य द्विवेदी | Updated: September 7, 2018 08:56 IST

LGBT समुदाय ने पूरी दुनिया में खुद की पहचान के लिए पिंक ट्राएंगल और रेनबो फ्लैग का इस्तेमाल करते हैं। जानें, इसके पीछे की पूरी कहानी...

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नई दिल्ली, 7 सितंबरः भारत में समलैंगिकता अब अपराध नहीं रही। गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में धारा-377 को असंवैधानिक करार दिया। इस फैसले के बाद सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक सतरंगी नज़ारा देखने को मिल रहा है। दुनिया भर में एलजीबीटी समुदाय अपनी पहचान के लिए पिंक ट्राएंगल (गुलाबी त्रिकोण) और रेनबो फ्लैग (सतरंगी झंडे) का इस्तेमाल करता है। इन प्रतीकों का इस्तेमाल समलैंगिक समुदाय अपनी एकता, गर्व और साझा मूल्यों को प्रकट करने के लिए करता है।

पिंक ट्राएंगल का इस्तेमाल सबसे पहले द्वितीय विश्व युद्ध में नाजियों ने 'बैज ऑफ शेम' के तौर पर किया था। रनबो फ्लैग का इस्तेमाल सभी लोगों की एकता के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन इन दोनों प्रतीकों को समलैंगिक समुदाय ने अपनाकर सकारात्मक मायने दिए हैं।

पिंक ट्राएंगल के मायने

गुलाबी त्रिकोण का इस्तेमाल 1930 और 40 दशक में जर्मनी के नाजियों ने बैज ऑफ शेम के तौर पर शुरू किया था। ये उन कैदियों को दिया जाता था जिनकी पहचान होमोसेक्सुअल पुरुषों के रूप में की जाती थी। 1970 में इसे बाइसेक्सुअल पुरुषों और ट्रांसजेंडर महिलाओं के लिए अपनाया गया। इसका इस्तेमाल समलैंगिक अधिकारों और आंदोलनों के प्रचलित प्रतीक के रूप में किया जाने लगा।

इंद्रधनुषी झंडे के मायने

समलैंगिकों का ये झंडा सबसे पहले सेन फ्रांसिस्को के कलाकार गिल्बर्ट बेकर ने एक स्थानीय कार्यकर्ता के कहने पर समलैंगिक समाज को एक पहचान देने के लिए बनाया था। इसे फ्लैग ऑफ द रेस से प्रभावित होकर बनाया गया था। शुरुआत में इस झंडे में आठ रंग होते थे। जिसमें- गुलाबी रंग सेक्स को, लाल रंग जीवन को, नारंगी रंग चिकित्सा को, पीला रंग सूर्य को, हरा रंग शांति को, फिरोजा रंग कला को, नीला रंग सामंजस्य को और बैंगनी रंग आत्मा को दर्शाता था। फिलहाल इस झंडे में 6 रंग ही हैं। इससे गुलाबी और फिरोजा रंग को हटा दिया गया। इसे समलैंगिकों के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।

टॅग्स :एलजीबीटीआईपीसी धारा-377
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