...जब पादरी बनते-बनते जॉर्ज फर्नांडिस बने मजदूरों के मसीहा, जानें उनके जीवन से जुड़ी ये पांच दिलचस्प बातें
By स्वाति सिंह | Updated: January 29, 2019 12:08 IST2019-01-29T11:44:09+5:302019-01-29T12:08:31+5:30
तीन जून 1930 को मैंगलौर में जन्मे जॉर्ज का 29 जनवरी 2019 को दिल्ली में निधन हो गया।

...जब पादरी बनते-बनते जॉर्ज फर्नांडिस बने मजदूरों के मसीहा, जानें उनके जीवन से जुड़ी ये पांच दिलचस्प बातें
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रक्षामंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडिस का आज निधन हो गया। वे 88 साल के थे। उन्होंने मंगलवार को दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली। बताते चलें कि उनका जन्म तीन जून, 1930 को मैंगलोर में हुआ था। वह अपने 6 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। अगर भाषाओं की बात करें तो उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन जैसी 10 भाषाओं का ज्ञान था।
मां ने किंग जॉर्ज-V के नाम पर रखा था उनका नाम
जॉर्ज फर्नांडिस के नाम के पीछे एक रोचक कहानी है। कहा जाता है कि उनकी मां किंग जॉर्ज-V की बड़ी प्रशंसक थीं।उनके नाम पर ही उन्होंने अपने बड़े बेटे का नाम जॉर्ज रखा था।
यहां से प्राप्त की थी प्रारंभिक शिक्षा
जॉर्ज फर्नांडिस ने अपनी शुरुआती पढ़ाई अपने घर के पास सरकारी स्कूल और चर्च स्कूल में की थी। इसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए सेंट अलोइस कॉलेज से पढ़ाई की। खबरों के मुताबिक, उनके पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे।
सोशलिस्ट पार्टी के आंदोलनों में लेते थे हिस्सा
मंगलौर में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद फर्नांडिस पादरी बनने की शिक्षा लेने के लिए एक मिशनरी में गए, लेकिन वहां की कार्यशैली देख वह चर्च को छोड़कर नौकरी की तलाश में मुंबई चले गए। उसके बाद सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में लेने लगे। इसके बाद उनकी शुरुआती छवि एक जबरदस्त विद्रोही के रूप में उभरी।
ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के बने अध्यक्ष
फर्नांडिस अपने विद्रोही तेवर के चलते साल 1950 में टैक्सी ड्राइवर यूनियन के नेता बने। इसके बाद फर्नांडिस 1973 में ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के अध्यक्ष बने। इसी दौरान उन्होंने सरकार से रेलवे के कर्मचारियों की वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर देशव्यापी हड़ताल की, जिससे पूरे देश में रेलवे का संचालन ठप हो गया था।
इमरजेंसी में गए जेल
फर्नांडिस को बेबाक रवैया और विद्रोही तेवर के चलते आपातकाल के दौरान जेल में डाल दिया गया था। उसी दौरान 1977 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो उन्होंने जेल में रहते हुए ही बिहार की मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीते भी। इसके बाद उन्हें जनता पार्टी की सरकार में मंत्री बनाया गया।