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लोकसभा में ट्रांसजेंडर व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा संबंधित विधेयक पारित, जानिए इसके बारे में सबकुछ

By भाषा | Updated: August 5, 2019 16:27 IST

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ के मामले में 15 अप्रैल 2014 को दिए अपने आदेश में अन्य बातों के साथ केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को उभयलिंगी समुदाय के कल्याण के लिये विभिन्न कदम उठाने का और संविधान के अधीन एवं संसद तथा राज्य विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों के अधीन उनके अधिकारों की सुरक्षा के प्रयोजन के रूप में उन्हें तृतीय लिंग के रूप में मानने का निर्देश दिया ।

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लोकसभा ने सोमवार को उभयलिंगी या ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा) विधेयक 2019 को मंजूरी दी जिसके माध्यम से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज की मुख्यधारा में लाने और उनके विभिन्न अधिकारों की रक्षा करने का उपबंध किया गया है । निचले सदन में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रतनलाल कटारिया ने कहा कि विधेयक में संसद की स्थायी समिति की ज्यादातर सिफारिशों को शामिल किया गया है।

उन्होंने कहा कि इस विधेयक के पारित होने से ट्रांसजेंडर समुदाय के हितों की रक्षा होगी। मंत्री ने कहा कि इस वर्ग के लिए शिक्षा के अधिकार, स्वास्थ्य के अधिकार और उनके कल्याण को लेकर कई कदम उठाए जा रहे हैं। कटारिया ने कहा कि ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ अपराध करने वालों के लिए दंड का प्रावधान किया गया है।

उन्होंने कहा कि विधेयक में, ट्रांसजेंडर लोगों के हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय परिषद की स्थापना करने की व्यवस्था की गई है। मंत्री के जवाब के बाद सदन ने विपक्ष के कुछ संशोधनों को खारिज करते हुए ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी दे दी ।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा) विधेयक 2019  के बारे में

इस विधेयक में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए एक कार्य प्रणाली उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है । केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 10 जुलाई को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा) विधेयक 2019 को मंजूरी दी थी। इस विधेयक को लाने के पीछे सरकार का मानना है कि इससे हाशिए पर खड़े इस वर्ग के विरूद्ध भेदभाव और दुर्व्यवहार कम होने के साथ ही इन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लाभ पहुंचेगा।

 इससे समग्रता को बढ़ावा मिलेगा और ट्रांसजेंडर व्यक्ति समाज की मुख्यधारा से जुड़ कर उसके उपयोगी सदस्य बन जायेंगे। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि ट्रांसजेंडर एक ऐसा समुदाय है जो सर्वाधिक हाशिये पर है क्योंकि वे ‘पुरूष’ या ‘स्त्री’ के लिंग के सामान्य प्रवर्गो में फिट नहीं होते हैं । ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक बहिष्कार से लेकर भेदभाव, शिक्षा सुविधाओं की कमी, बेरोजगारी, चिकित्सा सुविधाओं की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ के मामले में 15 अप्रैल 2014 को दिए अपने आदेश में अन्य बातों के साथ केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को उभयलिंगी समुदाय के कल्याण के लिये विभिन्न कदम उठाने का और संविधान के अधीन एवं संसद तथा राज्य विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों के अधीन उनके अधिकारों की सुरक्षा के प्रयोजन के रूप में उन्हें तृतीय लिंग के रूप में मानने का निर्देश दिया । विधेयक में ट्रांसजेंडर व्यक्ति को परिभाषित करने, ट्रांसजेंडर व्यक्ति के विरूद्ध विभेद का निषेध करने तथा ट्रांसजेंडर व्यक्ति को उसी के रूप में मान्यता देने का अधिकार देने का प्रस्ताव किया गया है ।

इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पहचान प्रमाणपत्र जारी करने के साथ जोर दिया गया है कि नियोजन, भर्ती, प्रोन्नति और अन्य संबंधित मुद्दों से संबंधित विषयों में किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के विरूद्ध विभेद नहीं किया जाएगा । प्रत्येक स्थापना में शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने तथा ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद स्थापित करने एवं उपबंधों का उल्लंघन करने पर दंड देने का भी प्रावधान किया गया है ।

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