जम्मू-कश्मीर में रविवार (19 जनवरी) को कश्मीर पंडित सामूहिक पलायन की 30वीं वर्षगांठ पर सड़कों पर उतरे और उन्होंने जमकर प्रदर्शन किया। इस दौरान कश्मीरी पंडित हाथ में तख्तियां लिए हुए थे, जिसमें कई कई नारे लिखे हुए थे। उन्होंने कश्मीर में दोबारा बसने की मांग उठाई है।
समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू की सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों का कहना है, 'हम अपने देश में शरणार्थियों की तरह रह रहे हैं लेकिन किसी को हमारी परवाह नहीं है। हम जल्द से जल्द कश्मीर लौटना चाहते हैं।'
इससे पहले विस्थापित कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन पनुन कश्मीर ने ‘होमलैंड’ दिवस मनाया था और स्थायी पुनर्वास सहित अपनी विभिन्न मांगों को शामिल करते हुए एक विधेयक स्वीकार किया था। संगठन ने कहा था कि उसका एक प्रतिनिधिमंडल शीघ्र ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करेगा और उन्हें ‘पनुन कश्मीर नरसंहार और अत्याचार निवारण विधेयक 2020’ पेश करेगा तथा उनसे इसे तत्काल प्रभाव से स्वीकार करने का अनुरोध करेगा।
उसने कहा था कि मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान में प्रताड़ित किये जा रहे हिन्दुओं को भारत की नागरिकता देने का फैसला औपनिवेशिक दासता के दौरान हिन्दुओं पर किये गए अत्याचार की सुध लेने का बहुत बड़ा निर्णय है। उसने आरोप लगाया था कि स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अब तक भारत राज्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिन्दुओं के नरसंहार पर मूकदर्शक बना रहा।