जम्मू: कश्मीर में छह दिनों से लापता सेना जवान की सकुशल बरामदगी के बाद अब कई सवाल उठने लगे हैं, जिनके जवाब सेना और पुलिस को देने होंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि 7 सालों में यह पहला अवसर है कि आतंकियों द्वारा अपहृत कोई जवान जिन्दा बचा हो। कल देर रात को जम्मू कश्मीर पुलिस ने लापता जवान जावेद अहमद वानी की बरामदगी की पुष्टि की थी।
कश्मीर पुलिस के एडीजीपी विजय कुमार ने कहा कि मेडिकल चेकअप के बाद उससे पूछताछ आरंभ की गई है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक सेना के जवान जावेद वानी के लापता होने को लेकर हर एंगल से पूछताछ की जा रही है। इतने दिन तक वो कहां थे और किस-किस से मिले थे और उन्हें किसने, कैसे अगवा किया था। ये सब कुछ ऐसे सवाल है जिसके बारे में जम्मू कश्मीर पुलिस उनसे जानना चाह रही है क्योंकि कश्मीर का यह पहला मामला है, जब किसी लापता जवान की सकुशल बरामदगी हुई है।
सेना का जवान जावेद ईद-उल-अजहा मनाने के लिए घर लौटा था और 29 जून से छुट्टी पर था। उसके लापता होने की परिस्थितियों से यह आशंका पैदा हो गई थी कि आतंकवादियों ने उसका अपहरण कर लिया है। सैनिक के भाई मुदासिर अहमद वानी ने कहा कि वह 30 जुलाई की शाम 7.30 बजे बाजार के लिए निकला और कुछ देर बाद हमें उसकी कार पर खून के निशान मिले। उसकी एक चप्पल और एक टोपी भी वहां थी। सैनिक के लापता होने की जानकारी मिलने पर सुरक्षा बलों ने कुलगाम और आसपास के इलाकों में बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान शुरू किया।
जावेद की तलाश में कई लोगों से पूछताछ की गई और उनके काल रिकार्ड की जांच की गई। जवान के पिता मोहम्मद अयूब वानी ने बेटे को सकुशल रिहा करने का आग्रह किया था। उनके पिता ने पत्रकारों से कहा था कि मैं सभी भाइयों से अपील करता हूं कि उसे जिंदा छोड़ दें। अगर उसने किसी को परेशान किया है तो मैं उसके लिए माफी मांगता हूं। अगर वे चाहें तो मैं उसकी नौकरी भी छुड़वा दूंगा।
लापता हुए सेना के जवान की मां ने कहा, "मैं पिछले 6 दिनों से शोक में थी और सो नहीं पा रही थी। जब मैंने खुशखबरी (जवान के मिलने की) सुनी तो मुझे बहुत खुशी हुई। मैं उन सभी सुरक्षा बलों को धन्यवाद देना चाहती हूं, जिन्होंने हमारे बेटे को ढूंढने में हमारी मदद की है।"
जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंट्री में काम करने वाले 25 वर्षीय जवान जावेद अहमद वानी कुलगाम जिले के अस्थाल गांव के रहने वाले हैं। उनकी पोस्टिंग लद्दाख के लेह में है। बीते सप्ताह वो ईद की छुट्टियों में घर आए हुए थे। समय के बितने के साथ-साथ आशंकाएं बढ़ती जा रही थीं। यह आशंकाएं इसलिए भी बढ़ी थीं क्योंकि पिछले कुछ सालों में आतंकियों ने छुट्टी पर आने वाले कई जवानों को अगवा करने के बाद मार डाला था और कईयों को उनके घर के बाहर बुला कर हत्या कर दी थी।
सरकार रिकार्ड के अनुसार, वर्ष 2017 में आतंकियों ने कश्मीर के पहले युवा सेनाधिकारी ले उमर फयाज को अपहृत कर मार डाला तो उसके बाद ऐसे अपहरणों और हत्याओं का सिलसिला रूका ही नहीं। सात सालों में 6 जवानों की हत्या की जा चुकी है। इनमें वर्ष 2018 में पुंछ के औरंगजेब, वर्ष 2020 में शाकिर मल्ला, वर्ष 2022 में समीर और मुख्तार अहमद भी शामिल हैं। हालांकि आतंकवाद के शुरूआत में आतंकियों ने वर्ष 1991 में भी सेना के ले कर्नल जीएस बाली को अपहृत कर मार डाला था जो सबसे अधिक दिल दहलाने वाली घटना थी।