बेमिसाल प्यार का अब भी है अहसास, विक्रम बत्रा ने अंगूठा काटकर खून से भर दी थी डिंपल चीमा की मांग
By अभिषेक पारीक | Published: July 26, 2021 02:08 PM2021-07-26T14:08:00+5:302021-07-26T17:53:33+5:30
कारगिल विजय को दो दशक से ज्यादा बीत चुके हैं, लेकिन न लोग उस युद्ध में भारतीय सेना के पराक्रम को भूले हैं और न ही विक्रम बत्रा की वीरता को भुलाया जा सका है।
कारगिल विजय को दो दशक से ज्यादा बीत चुके हैं, लेकिन न लोग उस युद्ध में भारतीय सेना के पराक्रम को भूले हैं और न ही विक्रम बत्रा की वीरता को भुलाया जा सका है। देश के लिए खुद को बलिदान कर देने वाले योद्धा को हमेशा आदर से याद किया जाता है। हालांकि जब भी विक्रम बत्रा का नाम आता है उनकी प्रेमिका डिंपल चीमा का भी नाम याद आ जाता है। दोनों का बेमिसाल प्यार अब भी लोगों के जेहन में जिंदा है।
कैप्टन विक्रम बत्रा 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। उन्होंने पहली बार 1995 में डिंपल चीमा से चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी में मुलाकात की थी। दोनों ने ही इंग्लिश एमए में एडमिशन लिया था। हालांकि दोनों ही एमए इंग्लिश की डिग्री नहीं ले सके थे। डिंपल ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में बताया कि दोनां को नजदीक लाने में सबसे ज्यादा योगदान किस्मत का था।
विक्रम बत्रा बेहद होनहार थे और 1996 में उन्हें इंडियन मिलिटरी अकेडमी देहरादून के लिए चुन लिया गया। डिंपल के साथ विक्रम की शादी नहीं हुई, लेकिन एक वक्त ऐसा आया था कि जिसके बाद दोनों की शादी लगभग हो ही चुकी थी।
एक बार जब दोनों मनसा देवी मंदिर और गुरुद्वारा श्री नंदा साहब जाया करते थे। एक दिन अचानक विक्रम ने कहा कि बधाई हो मिसेज बत्रा और सुनकर डिंपल चौंक गई। विक्रम ने कहा कि आपने ध्यान नहीं दिया कि हमने एक साथ चार परिक्रमा पूरी कर ली है।
ऐसे कई किस्से हैं, जब भले ही दोनों की शादी न हुई हो। हालांकि दोनों ने हमेशा एक दूसरे का होने का इरादा जरूर बना लिया था। डिंपल के मुताबिक, एक बार उन्होंने विक्रम से शादी के बारे में पूछा था और उस वक्त विक्रम ने अपने पर्स से ब्लेड निकालकर अपना अगूंठा काटा था और खून से डिंपल की मांग भर दी थी। उस बेमिसाल प्यार का अहसास अब भी डिंपल के दिलों में जिंदा हैं। विक्रम के युद्ध में शहीद होने के बाद भी उन्होंने शादी नहीं की।
कारगिल युद्ध के दौरान शहीए हुए थे 'शेरशाह'
कैप्टन विक्रम बत्रा बेहद दिलेर थे। कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने उन चोटियों को जीता था, जिन्हें जीतना बेहद मुश्किल समझा जाता था। सात जुलाई को उनकी डेल्टा कंपनी ने पॉइंट 5140 जीतकर वह शहीद हो गए थे। शहीद होने से पहले भी उन्होंने तीन दुश्मनों को मार गिराया था। कहते है कि दुश्मन भी बहादुरी को सम्मान देता था और उन्हें कोड नेम 'शेरशाह' के नाम से बुलाता था। मरणोपरांत उन्हें सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।