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CJI एस ए बोबडे ने तबादले की सूचना 17 फरवरी को दी थी, विदाई समारोह में न्यायमूर्ति मुरलीधर ने कहा

By भाषा | Updated: March 5, 2020 21:04 IST

दिल्ली उच्च न्यायालय में अपने विदाई समारोह में न्यायमूर्ति मुरलीधर ने कहा कि भारत के प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे से 17 फरवरी को उन्हें सूचना मिली कि कॉलेजियम ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में उनके स्थानांतरण की अनुशंसा की है।

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ठळक मुद्देउन्हें 17 फरवरी को ही इस बारे में सूचित कर दिया गया था और इससे उन्हें कोई समस्या नहीं है।केंद्र सरकार द्वारा 26 फरवरी की रात को न्यायमूर्ति मुरलीधर के तबादले की अधिसूचना के बाद विवाद पैदा हो गया था।

न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर ने बृहस्पतिवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और वकीलों को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में अपने तबादले से संबंधित विवाद पर स्थिति स्पष्ट की।

उन्होंने कहा कि प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे द्वारा उन्हें दी गई सूचना पर उन्होंने कहा कि प्रस्ताव पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा 26 फरवरी की रात को न्यायमूर्ति मुरलीधर के तबादले की अधिसूचना के बाद विवाद पैदा हो गया था। उसी दिन उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने कथित तौर पर नफरत भरे भाषण देने के लिए भाजपा के तीन नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में विफल रहने के लिए दिल्ली पुलिस की खिंचाई की थी। न्यायमूर्ति मुरलीधर (58) को बृहस्पतिवार को भव्य विदाई दी गई।

इस दौरान बड़ी संख्या में न्यायाधीश और वकीलों सहित अन्य लोग मौजूद थे। उन्होंने कहा कि वह अपने तबादले पर भ्रम को स्पष्ट करना चाहते हैं और 26 फरवरी को सीजेआई से प्राप्त सूचना के बाद के घटनाक्रमों के बारे में उन्होंने जानकारी दी। सीजेआई की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने 12 फरवरी की बैठक में न्यायमूर्ति मुरलीधर के पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में तबादले की अनुशंसा की थी। न्यायमूर्ति मुरलीधर दिल्ली उच्च न्यायालय में वरीयता के आधार पर तीसरे स्थान पर हैं। स्थानांतरण प्रक्रिया के बारे में उन्होंने कहा कि पांच सदस्यीय कॉलेजियम केंद्र सरकार को अनुशंसा भेजता है कि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को दूसरे उच्च न्यायालय में भेजा जाए।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे मामले में कॉलेजियम के निर्णय से सीजेआई ने मुझे 17 फरवरी को एक पत्र के माध्यम से अवगत कराया। मैंने पत्र प्राप्ति की सूचना दी, फिर मुझसे पूछा गया कि आप क्या चाहते हैं। मैंने कहा कि अगर मेरा तबादला दिल्ली उच्च न्यायालय से होता है तो मुझे पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय जाने में कोई दिक्कत नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैंने सीजेआई को स्पष्ट किया कि मुझे प्रस्ताव पर आपत्ति नहीं है। मेरे तबादले का स्पष्टीकरण प्रेस में पहुंचा... 20 फरवरी को ‘उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम के सूत्रों के हवाले से’ जो खबर चली उसकी पुष्टि मुझे कुछ दिनों पहले कर दी गई थी।’’ सीजेआई का 14 फरवरी का पत्र न्यायमूर्ति मुरलीधर को 17 फरवरी को मिला।

उन्होंने कहा कि 26 फरवरी उनके जीवन का दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में संभवत: सबसे लंबा कार्य दिवस था जब उन्होंने 14 घंटे पीठ में बिताए थे। न्यायमूर्ति मुरलीधर ने यह कहते हुए भाषण समाप्त किया कि 26 फरवरी की मध्य रात्रि को जारी अधिसूचना में दो चीजें हुईं। उन्होंने कहा, ‘‘पहला, मेरा तबादला पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में हो गया। दूसरा इसमें मुझे उस पद पर नियुक्ति मिली जहां से मेरा कभी तबादला नहीं होगा या मुझे नहीं हटाया जाएगा और वहां रहकर मुझे गर्व होगा।

देश के सबसे बेहतर उच्च न्यायालय का ‘पूर्व न्यायाधीश।’ दिल्ली उच्च न्यायालय।’’ विदाई समारोह में न्यायमूर्ति मुरलीधर की मां, पत्नी उषा रामनाथन, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए पी शाह, वरिष्ठ वकील शांति भूषण और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी उपेन्द्र बख्शी मौजूद रहे। न्यायमूर्ति मुरलीधर को विदाई देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल ने कहा कि वह दुखी हैं और उनकी गैर मौजूदगी हमेशा महसूस होगी।

दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने न्यायमूर्ति मुरलीधर को ‘‘काफी विद्वान, साहसी, नैतिकता वाला एवं ईमानदार न्यायाधीश’’ बताया। न्यायमूर्ति मुरलीधर ने 2018 में निचली अदालत द्वारा ट्रांजिट रिमांड को निरस्त कर कार्यकर्ता गौतम नवलखा की कोरेगांव भीमा हिंसा मामले में नजरबंदी से रिहा करने के आदेश दिए थे, जिसके बाद विवाद पैदा हो गया था।

उनकी अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अक्टूबर 2018 में हाशिमपुरा नरसंहार मामले में उत्तर प्रदेश के 16 पूर्व पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया था। वह उस पीठ की अध्यक्षता कर रहे थे जिसने उसी वर्ष कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 1984 के सिख विरोधी दंगा मामले में उन्हें जेल भेजा। उन्होंने सितम्बर 1984 में चेन्नई में कानून की प्रैक्टिस शुरू की थी और वह उच्चतम न्यायालय तथा दिल्ली उच्च न्यायालय 1987 में आए।

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