झारखंड: हेमंत सोरेन सरकार के दावों पर उठ रहा सवाल, लॉकडाउन में ग्रामीण इलाकों में कंद-मूल और जंगली फल खाकर जीने को मजबूर लोग

By एस पी सिन्हा | Updated: April 22, 2020 15:04 IST2020-04-22T15:04:23+5:302020-04-22T15:04:23+5:30

Coronavirus Lockdown: कोरोना वायरस लॉकडाउन का असर झारखंड में भी व्यापक तौर पर पड़ा है। राज्य सरकार दावा कर रही है कि वो राशन आदि लोगों तक पहुंचा रही है लेकिन कई जगहों पर गरीब कंद-मूल और जंगली फल खाकर जिंदगी गुजार रहे हैं।

Jharkhand lockdown: question on Hemant soren government as people forced to live by eating wild fruits | झारखंड: हेमंत सोरेन सरकार के दावों पर उठ रहा सवाल, लॉकडाउन में ग्रामीण इलाकों में कंद-मूल और जंगली फल खाकर जीने को मजबूर लोग

Coronavirus: हेमंत सोरेन सरकार के दावों पर उठ रहा सवाल (फाइल फोटो)

Highlightsझारखंड में कई जगों पर गरीब दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए हैंसुदूर ग्रामीण इलाकों में समस्या ज्यादा बड़ी, प्रशासन के दावे कागजों में सिमट कर रह गए हैं

रांची: कोरोना के कहर के चलते जारी लॉकडाउन के दौरान काम धंधा बंद हुआ तो झारखंड में गरीब दाने-दाने के लिए मोहताज हो गये हैं. सरकार द्वारा घोषित योजनाओं का लाभ गरीबों तक नही पहुंच पाने के चलते सुदूर ग्रामीण इलाकों में बसे गरीब जंगलों में कंद-मूल और जंगली फल खाकर अपनी और अपने परिवार की जिन्दगी बचाने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं.

उदाहरणस्वरूप सिमडेगा जिले के जलडेगा प्रखंड के पतिअंबा पंचायत स्थित छाताटुकू गांव में एक बेबस मां सुखमती बागे अपने दो छोटे बच्‍चों जंगली फल केउंद खिलाकर उनका पेट भरने को मजबूर है. सुखमती के पति कंदरा बागे किसी मामले में जेल में बंद हैं. पति के नहीं रहने पर सुखमती बागे मजदूरी अपने बच्‍चों को पाल रही थी. लेकिन लॉकडाउन में काम धंधा बंद हुआ, तो वह दाने-दाने के लिए मोहताज हो गई. 

घर में खाने का समान खत्‍म होने के बाद बेबस मां अपने बच्‍चों को कभी-कभी घर से तीन किमी दूर चल रहे दीदी किचन से भी खाना बचाकर बच्‍चों के लिए घर लाती है. यह केवल सिमडेगा की ही कहानी नही है. पलामू, चतरा, गढवा सहित कई ऐसे जिलों की स्थिती कुछ ऐसी ही है. 

खासकर सुदूर गांव में बसे लोगों तक ना ही अधिकारी पहुंच पाते हैं और ना ही कोई देखने-सुनने जाता है. जनवितरण प्रणाली के तहत मिलने वाला राशन दुकान से ही बाजार में पहुंच जाता है. लेकिन कागजी तौर पर सभी को भरपूर अनाज उपलब्ध करा दिया जाता है. 

गरीबों का हाल यह है कि न तो कोई उनकी सुनने वाला है और ना ही दबंगों के आगे वे लोग कुछ बोल पाते हैं. स्थानीय प्रतिनिधि भी उन्हीं बिचौलियों की सुनते हैं, जो उनकी हकमारी में अपना लाभ देखते हैं. 

ग्रामीणों के द्वारा बताया जाता है कि कई ऐसे भी बेबस हैं, जिनके पास अपना घर भी नही है. घास-फूस की बनी झोपडी में इनकी जिन्दगी कटती रहती है. प्रधानमंत्री आवास क्या होता है? इनके सपने में भी यह बात नही आती. सिमडेगा की उक्त महिला का भी अपना घर भी नहीं है. 

गांव के ही बिरसी बागे नामक महिला ने अपने घर के एक छोटा सा हिस्‍सा सुखमती को दिया है, जिसमें वह बच्‍चों के साथ रहती है. सुखमती के पास राशन कार्ड भी नहीं है. इससे उसे सरकारी राशन भी नहीं मिल पाता है. ऐसी सुखमती कई अन्य भी हैं. लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नही है. लॉकडाउन में सरकार राशन कार्ड नहीं होने पर भी गरीबों को राशन देने की योजना चला रही है. 

प्रशासन भी हर गरीब तक राशन पहुंचाने का दावा कर रही है. लेकिन उनका दावा सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रहा गया है. बेबस लोगों की स्थिति सरकारी कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़ा कर रही है.

Web Title: Jharkhand lockdown: question on Hemant soren government as people forced to live by eating wild fruits

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