कश्मीर में कानून और व्यवस्था की बहाली के लिए तैनात प्रमुख बल, सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) ने अपने एक आंतरिक आकलन में कहा है कि घाटी में लंबे समय तक बंद की स्थिति अराजक तत्वों को यहां संघर्ष और विरोध की नई लहर पैदा करने का मौका दे सकती है।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पैरामिलिट्री फोर्स साथ ही अपने जवानों के अस्थाई कैंपों में रहने को लेकर भी चिंतित है, जो आतंकियों का निशाना बन सकते हैं। साथ ही वे इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि घाटी में इतने सारे सैनिकों की तैनाती उन्हें 'आत्मसंतुष्ट' बना सकती है।
जैश, लश्कर, हिजबुल बना रहे हमले की योजना: सीआरपीएफ
एक खुफिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए सीआरपीएफ ने चेताया कि हाल ही में आंतकी संगठनों जैश-ए-मोहम्मद, लश्करे-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन ने पुलवामा में किसी अज्ञात स्थान पर बैठक की, जहां ये फैसला किया गया कि जैश हाई पर सुरक्षा बलों पर हमला करेगा, लश्कर आतंरिक सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर हमला करेगा, और हिजबुल पुलिस/राजनेताओं की हत्याओं को अंजाम देगा।
केंद्र ने 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर में सात अतिरिक्त बटालियनों (करीब 75000 सैनिकों) को वहां मौजूद सीआरपीएफ की 61 बटालियनों और पुलिस की कानून और व्यवस्था बनाए रखने और आतंकवाद रोधी अभियानों का संचालन करने में मदद के लिए भेजा था।
5 और 6 अगस्त को संसद ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले आर्टिकल 370 को हटाते हुए उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का प्रस्ताव पारित किया था। इसके बाद से ही राज्य भारी सुरक्षा की व्यवस्था के तहत आंशिक लॉकडाउन (बंद) की स्थिति में है। सरकार ने अब तक ये नहीं बताया है कि वहां से इन अतिरिक्त सैनिकों कब हटाया जाएगा।
5 अगस्त के बाद नहीं हुआ है कोई बड़ा आतंरी हमला: CRPF
इस रिपोर्ट में के मुताबिक, 'सीआरपीएफ के आंतरिक आकलन के अनुसार, “अब तक, आंतकी घटनाओं और घुसपैठ में कुछ बढ़ोतरी के बावजूद समग्र सुरक्षा की स्थिति में कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं देखा गया है (कुछ ग्रेनेड फेंकने की घटनाओं या निशाना बनाकर की गई हत्याओं को छोड़कर)। लंबे समय तक लॉकडाउन विरोध की एक नई लहर और सशस्त्र संघर्ष को फिर से शुरू करने का मौका दे सकता है। आतंकवादी और ओजीडब्ल्यू (ओवरग्राउंड वर्कर्स) पाकिस्तान के इशारे पर बाद में हमले शुरू कर सकते हैं, जो कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय समर्थन पाने के लिए पूरी तरह से प्रयासरत है।'
सीआरपीएफ ने ये भी दावा किया है कि दूसरे राज्यों के कार्यकर्ताओं और मजदूरों की हत्या करके और सेबों की शिपमेंट को रोकेकर आतंकी इस बंद को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा करके आतंकी घाटी के लोगों से सामान्य आर्थिक गतिविधियों का मौका छीन रहे हैं, जिससे लोगों में अंसतोष पैदा हो रहा है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भारत को घाटी में स्थिति सामान्य करने का दबाव डाले और वहां लगे प्रतिबंधों और संचार माध्यमों पर रोक हटाने और राजनेताओं को रिहा करने के लिए कहने को विवश हो जाए।
लंबे समय तक अतिरिक्त जवानों की तैनाती ठीक नहीं: सीआरपीएफ
इस आकलन में सीआरपीएफ ने ये भी चेतावनी दी है कि लंबे समय तक इस काम में लगे रहने से उसके जवान के लिए ये नीरस और लापरवाही भरा हो सकता है, क्योंकि उनमें से ज्यादातर ऐड-हॉक सुरक्षा व्यवस्था का हिस्सा हैं। साथ ही ये भी कहा गया है कि जवानों की ऐसी टुकड़ियों पर हमेशा ही आतंकी हमले का खतरा रहता है। ये बात वहां तैनात सीआरपीएफ की छोटी टुकड़ियों के संदर्भ में कही गई है।
फोर्स ने साथ ही ये तथ्य भी स्वीकार किया है कि टुकड़ियों को निकट भविष्य में नहीं हटाया जाएगा। इस आकलन में आतंकियों का निशाना बनने के बजाय सक्रिय तौर पर उन्हें निशाना बनाने की बात कही गई है। साथ ही इसमें उच्च स्तर की खुफिया जानकारी मिलने की भी सिफारिश की गई है, जो 5 अगस्त के बाद खत्म सी हो गई है।