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जम्मू-कश्मीर: मीरवायज की ‘नजरबंदी’ पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बयान से मचा बवाल, जानिए क्या है विवाद

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: August 20, 2023 11:12 IST

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा हुर्रियत कांफ्रेंस नेता मीरवायज उमर फारूक की ‘नजरबंदी’ के संबंध दिए वक्तव्य के बाद सवाल उठने लगे हैं और साथ ही यह विवाद अब एक नया रंग लेने लगा है।

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ठळक मुद्देजम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने मीरवायज उमर फारूक की ‘नजरबंदी' पर दिया बयानउपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि हुर्रियत नेता मीरवायज न तो बंद हैं और न नजरबंद हैंहुर्रियत ने कहा कि अगर मीरवायज आजाद हैं तो वह शुक्रवार को मस्जिद में आकर नमाज पढ़ें

जम्मू: क्या कोई नेता या व्यक्ति लगातार चार सालों तक अपनी मर्जी और खुशी से अपने आपको घर में कैद रख सकता है। उप राज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा हुर्रियत कांफ्रेंस नेता मीरवायज उमर फारूक की ‘नजरबंदी’ के प्रति दिए गए वक्तव्य के बाद सवाल उठने लगे हैं और साथ ही यह विवाद अब एक नया रंग लेने लगा है।

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बयान पर इस कारण से बवाल मचा है क्योंकि उन्होंने एक बार फिर एक समारोह में यह दोहराया है कि मीरवायज उमर फारूक न ही बंद हैं और न ही उन्हें नजरबंद किया गया है। लेकिन उनके बयान पर इस कारण से सवाल उठ रहे हैं क्योंकि मीरवायज के घर के बाहर लगातार चार सालों से पुलिसकर्मी तैनात हैं लेकिन प्रशासन द्वारा कहा जाता है कि सुरक्षाकर्मी उनकी 'नजरबंदी' के लिए नहीं बल्कि उनकी सुरक्षा की खातिर तैनात किए गए हैं।

लेकिन प्रशासन के इस दावे के ठीक उलट एक साल पहले 19 अगस्त को बीबीसी में प्रशासित खबर में दावा किया गया था अभी तक मीरवायज नजरबंदी से रिहा ही नहीं हो पाए हैं। ऐसे में अब मीरवायज के वकील ने प्रशासन को एक कानूनी नोटिस भेजा है।

मीरवायज के वकील नजीर अहमद रोंगा ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के बिना रोक-टोक आवाजाही के आश्वासन के बाद भी हुर्रियत नेता को आजादी से कहीं आने-जाने नहीं दिया जा रहा है।

उन्होंने आरोप लगाया है कि जम्मू कश्मीर पुलिस ने मीरवायज को आजादी से आने-जाने की इजाजत नहीं दी है क्योंकि पुलिस नागरिक प्रशासन का आदेश मानने को राजी नहीं है।

वर्ष 2019 में पांच अगस्त को राज्य के दो टुकड़े करने और उसकी पहचान खत्म किए जाने की कवायद के दिन ही अन्य नेताओं की तरह मीरवायज उमर फारूक को उनके घर पर नजरबंद कर दिया गया था। इस नजरबंदी के दौरान न ही उन्हें घर से बाहर जाने की अनुमति दी गई और न ही किसी को उनसे मिलने दिया गया।

मीरवाइज के वकील के इन आरोपों के इतर जम्मू-कश्मीर सरकार का कहना है कि वे अपनी ‘मर्जी ’ से अपने घर के भीतर हैं। सरकार के इसी बयान पर अब सवाल उठ रहे हैं। दरअसल कश्मीर प्रशासन यहां शांति बहाली की कवायद में उमर फारूक को संदिग्ध मानता है क्योंकि प्रशासन को ऐसा लगता है कि घाटी में जन समर्थन उनके साथ हैं और वे लोगों की विचारधारा को प्रभावित कर कश्मीर में कानून व व्यवस्था की समस्या उत्पन्न कर सकते हैं।

अब जबकि उप राज्यपाल ने एक बार फिर मीरवायज को न ही बंदी माना है और न नजरबंदी तो इसे उनकी रिहाई के तौर पर लेने वाली हुर्रियत का कहना था कि अगर मीरवायज सच में आजाद हैं तो उन्हें इस शुक्रवार को जामा मस्जिद में धार्मिक समारोह में शिरकत की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि मीरवायज एक धार्मिक नेता हैं।

जम्मू कश्मीर प्रशासन कहता था कि मीरवायज कहीं भी आने जाने के लिए स्वतंत्र हैं और वह हिरासत में नहीं हैं लेकिन 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से उन्हें श्रीनगर की जामा मस्जिद में नमाज का अदा करने की अनुमति नहीं दी गई है।

ऐसे में मीरवायज के वकील नजीर अहमद रोंगा ने जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव अरुण कुमार मेहता को भेजे गए कानूनी नोटिस में कहा है कि इस कानूनी नोटिस के जरिए मेरे मुवक्किल मीरवायज उमर फारूक के नगीन स्थित घर के बाहर सुरक्षा बलों की टुकड़ी की तैनाती करके उनकी आवाजाही पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने का अनुरोध किया जाता है। मेरे मुवक्किल को अवैध और अनधिकृत हिरासत में रखा गया है। अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन और स्वतंत्रता को कम कर दिया गया है।

टॅग्स :Mirwaiz Umar Farooqमनोज सिन्हाManoj SinhaKashmir Police
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