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विधायक रहमान पारा ने अनुच्छेद 370 बहाली प्रस्ताव किया पेश किया, भाजपा का विरोध

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: November 4, 2024 12:26 IST

Jammu and Kashmir Assembly: उमर अब्दुल्ला की यह प्रतिक्रिया पारा द्वारा अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग करने वाले प्रस्ताव को पेश करने के बाद आई है, जिसका विधानसभा में भाजपा सदस्यों ने कड़ा विरोध किया था।

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ठळक मुद्देपीडीपी के इस प्रस्‍ताव को मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला ने प्रचार का हथकंडा बताया।मुख्‍यमंत्री की पार्टी नेकां धारा 370 की वापसी का वायदा अपने घोषणा पत्र में कर चुकी है। मैं आपको सदन का अध्यक्ष चुने जाने पर बधाई देता हूं।

Jammu and Kashmir Assembly: जम्‍मू कश्‍मीर केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा के पहले ही सत्र में उस समय अफरा-तफरी मच गई, जब पीडीपी विधायक वहीद उर रहमान पारा ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग करते हुए प्रस्ताव पेश किया। हालांकि भाजपा ने इस प्रस्‍ताव का जबरदस्‍त विरोध करते हुए इसे खारिज करने की मांग की तो स्पीकर अब्‍दुल रहीम राथर ने इसके प्रति जांच करने के बाद कोई फैसला लिए जाने की बात कही। इतना जरूर था कि पीडीपी के इस प्रस्‍ताव को मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला ने प्रचार का हथकंडा बताया।

याद रखने योग्‍य तथ्‍य यह है कि मुख्‍यमंत्री की पार्टी नेकां धारा 370 की वापसी का वायदा अपने घोषणा पत्र में कर चुकी है। पारा ने  प्रस्‍ताव पेश करते हुए कहा कि महोदय, मैं आपको सदन का अध्यक्ष चुने जाने पर बधाई देता हूं। हम आपके अनुभव से बहुत कुछ सीखेंगे। आज, मेरे पास अपनी पार्टी की ओर से एक प्रस्ताव है, जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं।

प्रस्ताव में अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग की गई है। उनके इस कदम से सदन में भारी हंगामा हुआ और भाजपा विधायकों ने अध्यक्ष से इस प्रस्ताव को तुरंत रद्द करने का आग्रह किया। भाजपा सदस्यों के गुस्से को शांत करने की कोशिश करते हुए अध्यक्ष राथर ने कहा कि यह मेरा अधिकार क्षेत्र है, मुझे इसकी जांच करने दीजिए और उसके अनुसार मैं प्रस्ताव पर निर्णय लूंगा।

राथर ने विपक्षी खेमे को शांत करते हुए कहा था। हालांकि, भाजपा के 28 विधायकों ने बैठने से इनकार कर दिया और पीडीपी विधायकों के इस कदम का विरोध करना जारी रखा। भाजपा के नेता प्रतिपक्ष सुनील शर्मा ने कहा कि यह पहले दिन नहीं किया जाता है, इस तरह की चीजें इस सदन में पेश की जाती हैं।

इस पर स्पीकर राथर ने फिर दोहराया कि मैंने अभी तक यह कॉपी नहीं देखी है। मुझे इसे देखने दीजिए और इसकी जांच करने दीजिए। अगर आपने (भाजपा) इस सदन को नहीं चलने देने का फैसला किया है, तो मैं कुछ नहीं कह सकता। सदन में हंगामा जारी रहा क्योंकि भाजपा विधायकों ने अपनी कुर्सियों पर बैठने से इनकार कर दिया और विधायक पारा द्वारा लाए गए प्रस्ताव को रद्द करने की मांग की।

हालांकि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 पर पीडीपी के वहीद पारा द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर के लोग 5 अगस्त, 2019 को लिए गए फैसले को स्वीकार नहीं करते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर लोगों ने फैसले का समर्थन किया होता, तो मौजूदा नतीजे अलग होते।

उन्होंने यह भी कहा कि प्रस्ताव का कोई महत्व नहीं है और यह महज प्रचार का हथकंडा है। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इस मामले पर सदन की चर्चा और चिंतन किसी एक सदस्य द्वारा तय नहीं किया जाएगा। उन्होंने प्रस्ताव के उद्देश्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर यह वास्तविक होता, तो प्रस्तावक पहले ही उनसे (नेकां) चर्चा कर लेते।

उमर अब्दुल्ला की यह प्रतिक्रिया पारा द्वारा अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग करने वाले प्रस्ताव को पेश करने के बाद आई है, जिसका विधानसभा में भाजपा सदस्यों ने कड़ा विरोध किया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के वरिष्ठ नेता और चरार-ए-शरीफ से सात बार के विधायक अब्दुल रहीम राथर को सोमवार को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का पहला अध्यक्ष चुना गया।

विपक्षी दलों द्वारा इस पद के लिए चुनाव न लड़ने का फैसला किए जाने के बाद राथर (80) को ध्वनि मत से अध्यक्ष चुना गया। ‘प्रोटेम स्पीकर‘ मुबारक गुल ने चुनाव का संचालन किया। कृषि मंत्री जावेद अहमद डार ने पांच दिवसीय सत्र के पहले दिन राथर को अध्यक्ष पद के लिए नामित करने का प्रस्ताव पेश किया और नेकां के विधायक रामबन अर्जुन सिंह राजू ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया।

इसके बाद सदन के नेता उमर अब्दुल्ला और विपक्ष के नेता सुनील शर्मा (भाजपा) राथर को अध्यक्ष की कुर्सी तक लेकर गए। राथर इससे पहले, पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में अध्यक्ष का पद संभाल चुके हैं। वह 2002 से 2008 तक उस समय विपक्ष के नेता भी थे, जब ‘पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी’ (पीडीपी)-कांग्रेस गठबंधन सरकार ने राज्य में शासन किया था। सदन की छह साल से अधिक के अंतराल के बाद सोमवार को बैठक हुई। विधानसभा का आखिरी सत्र जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने से एक साल पहले 2018 की शुरुआत में बुलाया गया था।

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