जम्मू: चार महीनों के अंतराल में यह दूसरा अवसर है जब पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने चुनाव मैदान में उतरे बिना ही हार मान ली है। हालांकि हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में तो वे मैदान में भी नहीं उतरे थे और इस बार उन्होंने अपने उम्मीदवारों को मझधार में छोड़ दिया है। उनकी पार्टी की ओर से विधानसभा चुनावों के लिए पर्चे भरने वाले उम्मीदवारों को तो उन्होंने यह सलाह तक दे डाली है कि अगर वे चाहें तो अपने नामांकन पत्र वापस ले सकते हैं।
यह पूरी तरह से सच है कि डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद ने अपने पार्टी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने से हाथ पीछे खींच लिए हैं, ऐसे में डीपीएपी उम्मीदवारों के लिए मुश्किल समय आने वाला है। आजाद के जाने से डीपीएपी के सभी उम्मीदवारों को नुकसान होगा, खासकर चिनाब घाटी के उम्मीदवारों को, जो वोट पाने के लिए आजाद के कद पर निर्भर थे।
सूचनाओं के आजाद ने अपने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए प्रचार करने से हाथ पीछे खींच लिए हैं। उन्होंने कहा कि 25 अगस्त को उन्हें सीने में दर्द हुआ और 26 अगस्त को वे नई दिल्ली के लिए रवाना हुए और एम्स नई दिल्ली में भर्ती हो गए।
याद रहे आजाद जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और कांग्रेस पार्टी में रहते हुए गांधी परिवार के करीबी थे। लेकिन पार्टी में मतभेद होने के बाद उन्होंने 2022 में अपनी अलग पार्टी डीपीएपी बनाई, जो हाल ही में हुए संसदीय चुनावों में बुरी तरह हार गई।
इन चुनावों में डीपीएपी को उनके प्रभाव से वोटों में बदलाव की काफी उम्मीद थी, लेकिन अब उनकी अनुपस्थिति उन्हें काफी नुकसान पहुंचाएगी। इसका सीधा असर डोडा और भद्रवाह सीटों पर पड़ेगा, जहां आजाद के पैतृक क्षेत्र गुंडोह और भल्लेसा में काफी अच्छे वोट हैं।
डोडा सीट से डीपीएपी के उम्मीदवार अब्दुल मजीद वानी वोट पाने के लिए आजाद के कद का इस्तेमाल करते, लेकिन अब उन्हें खुद ही मतदाताओं तक पहुंचना होगा। इसी तरह भद्रवाह सीट पर डीपीएपी के उम्मीदवार मुहम्मद असलम गोनी को भी पहले से ही कड़े मुकाबले में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
जहां कांग्रेस, भाजपा और नेशनल कांफ्रेंस ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। चेनाब घाटी की अन्य सीटों पर जहां डीपीएपी ने उम्मीदवार उतारे हैं, उन्हें बिना किसी जाने-पहचाने चेहरे के वोट हासिल करने होंगे