महिला सशक्तीकरण के बाद भी भेदभाव, पुरुषों के मुकाबले 20 फीसदी कम मिलती है सैलरी
By पल्लवी कुमारी | Published: March 8, 2018 09:49 AM2018-03-08T09:49:32+5:302018-03-08T10:05:14+5:30
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2018: आखिर क्यों वेतन तय करने के वक्त कर्मचारी का पुरुष या महिला होना जरूरी है।
नई दिल्ली, 8 मार्च; पूरा विश्न आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है लेकिन महिला सशक्तीकरण के बाद भी महिलाओं के साथ भेदभाव में कमी नहीं आ रही है। हाल ही के सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है कि भारत में महिलाओं की सैलरी पुरुषों के मुकाबले 20 प्रतिशत कम है। साथ ही यह बात सामने आई है कि वेतन तय करने में कर्मचारी का पुरुष या महिला होना बहुत मायने रखता है।
20 फीसदी का सैलरी में गैप बहुत ज्यादा है
यह रिपोर्ट 'मॉन्स्टर सैलरी इंडेक्स' (एमएसआई) की है। इसके अनुसार पुरुष हर घंटे 231 रुपए और महिला 184.8 रुपए ही कमा पाती हैं। मॉन्टर.कॉम के सीईओ अभिजीत मुखर्जी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि 20 फीसदी का सैलरी में गैप सच में काफी ज्यादा है। हालांकि रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि धीरे-धीरे यह अंतर और भी कम हुआ है लेकिन 21वीं सदी में यह अंतर भी काफी ज्यादा है।
36 प्रतिशत औरतों ने भेदभाव की बात मानी
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साल 2016 में यह आकड़ा 24.8 प्रतिशत था। इसके अनुसार 2017 में इसमें पांच प्रतिशत की कमी आई है। मॉन्टर.कॉम के इस सर्वे में पांच हजार से ज्यादा महिलाओं को शामिल किया गया था। इस सर्वे में शामिल 36 प्रतिशत औरतों ने भेदभाव की बात मानी है और कहा है कि ऐसा नहीं होना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि भारत ही एक ऐसा देश है, जहां महिलाओं की सैलरी में भेदभाव किया जा रहा है। ऐसा जर्मनी और युरोप के कुछ देशों के भी यही आंकडें हैं।