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भारत के उत्तर-पश्चिमी, मध्य और दक्षिण-मध्य क्षेत्र पिछली आधी सदी में तीव्र गर्म हवाओं से प्रभावित

By भाषा | Updated: September 7, 2021 21:45 IST

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नयी दिल्ली, सात सितंबर भारत के उत्तर-पश्चिमी, मध्य और उससे आगे दक्षिण-मध्य क्षेत्र पिछली आधी सदी में तीव्र गर्म हवाओं की घटनाओं के नए अति प्रभावित क्षेत्र (हॉटस्पॉट) बन गए हैं। एक अध्ययन में यह कहा गया है।

इस अध्ययन में निवासियों के लिए विभिन्न खतरों पर ध्यान देने के साथ उक्त तीनों क्षेत्रों में प्रभावी गर्म हवा विरोधी कार्ययोजना (हीट एक्शन प्लान) विकसित करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक विज्ञप्ति में कहा गया कि लू (हीटवेव)एक घातक स्वास्थ्य खतरे के रूप में उभरा है, जिसने हाल के दशकों में दुनिया भर में हजारों लोगों की जान ले ली, साथ ही भारत में भी पिछली आधी सदी में आवृत्ति, तीव्रता और अवधि में वृद्धि हुई है। इससे स्वास्थ्य, कृषि, अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। ऐसे परिदृश्य में, तत्काल नीतिगत हस्तक्षेप और गर्मी को कम करने के कठोर उपाय और अनुकूलन रणनीतियों को प्राथमिकता देने के लिए देश के सबसे अधिक गर्मी की चपेट में आने वाले क्षेत्रों की पहचान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

विज्ञप्ति के अनुसार विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के प्रो. आर. के. माल के नेतृत्व में सौम्या सिंह और निधि सिंह सहित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन के अनुसंधान के लिए महामना उत्कृष्टता केंद्र (एमसीईसीसीआर) ने पिछले सात दशकों में भारत के विभिन्न मौसम संबंधी उपखंडों में हीटवेव (एचडब्ल्यू) और गंभीर हीटवेव (एसएचडब्ल्यू) में स्थानिक और लौकिक प्रवृत्तियों में परिवर्तन का अध्ययन किया।

इस कार्य के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के अंतर्गत सहयोग दिया गया है। ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ क्लाइमेटोलॉजी’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन लू और गम्भीर लू को भारत में मृत्यु दर से जोड़कर प्रस्तुत करता है। हाल में अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘एट्मॉस्फीयरिक रिसर्च’ में अध्ययन प्रकाशित किया गया था।

अध्ययन ने पश्चिम बंगाल और बिहार के गांगेय क्षेत्र के पूर्वी क्षेत्र से उत्तर-पश्चिमी, मध्य और आगे भारत के दक्षिण-मध्य क्षेत्र में लू की घटनाओं के स्थानिक-सामयिक प्रवृत्ति में बदलाव दिखाया है। अनुसंधान ने पिछले कुछ दशकों में एक खतरनाक दक्षिणवर्ती विस्तार और एसएचडब्ल्यू घटनाओं में एक स्थानिक वृद्धि देखी है जो पहले से ही कम दैनिक तापमान रेंज (डीटीआर), या अंतर के बीच की विशेषता वाले क्षेत्र में अधिकतम और न्यूनतम तापमान एक दिन के भीतर और उच्च आर्द्रता वाली गर्मी के तनाव के अतिरिक्त अधिक आबादी को जोखिम में डाल सकती है।

विज्ञप्ति में कहा गया कि महत्वपूर्ण रूप से, एचडब्ल्यू/एसएचडब्ल्यू की घटनाओं को ओडिशा और आंध्र प्रदेश में मृत्यु दर के साथ सकारात्मक रूप से सहसंबद्ध पाया गया है। इससे यह प्रदर्शित होता है कि मानव स्वास्थ्य गंभीर लू आपदाओं के लिए अतिसंवेदनशील है।

मंत्रालय के अनुसार अत्यधिक तापमान की लगातार बढ़ती सीमा के साथ, गर्मी कम करने के उपाय भविष्य में समय की आवश्यकता है। खुली जगह पर कार्य संस्कृति के साथ घनी आबादी के कारण एक समान गर्मी प्रतिरोधी उपाय और अनुकूलन रणनीतियों की ज़रूरत है जो समाज के प्रत्येक वर्ग को उनकी कठिनाई के आधार पर कवर करती है। अध्ययन तीन हीटवेव हॉटस्पॉट क्षेत्रों में प्रभावी ग्रीष्म नियंत्रण कार्य योजना विकसित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

भविष्य में अत्यधिक गर्मी के विनाशकारी प्रभावों को कम करने और नए हॉटस्पॉट बनने के संभावित खतरों के मद्देनजर पर्याप्त अनुकूलन उपायों को तैयार करने के लिए, विश्वसनीय भविष्य के अनुमानों की आवश्यकता है। इसने सौम्या सिंह, जितेश्वर दधीच, सुनीता वर्मा, जे.वी. सिंह, और अखिलेश गुप्ता, और आर.के. माल की शोध टीम को भारतीय उपमहाद्वीप पर क्षेत्रीय जलवायु मॉडल (आरसीएम) का मूल्यांकन करने के लिए सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले आरसीएम को खोजने के लिए प्रेरित किया।

विज्ञप्ति के अनुसार ये भविष्य में हीटवेव की आवृत्ति, तीव्रता और स्थानिक वृद्धि का अध्ययन करने में मदद करेंगे। अध्ययन में पाया गया कि एलएमडीजेड-4 और जीएफडीएल-ईएसएम-2-एम मॉडल वर्तमान परिदृश्य में भारत में हीट वेव का अनुकरण करने में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले हैं, जिनका भविष्य के अनुमानों के लिए भी मज़बूती से उपयोग किया जा सकता है। दो मॉडलों ने हीटवेव कम करने की भविष्य की तैयारी के लिए आधार तैयार किया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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