रांची, चार नवंबर झारखंड में प्रत्येक स्तर के प्रोन्नति वाले पदों पर अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है। यह खुलासा एक रिपोर्ट में हुआ है।
राज्य सरकार द्वारा एससी/एसटी समुदाय के सदस्यों की पदोन्नति, प्रशासनिक असर और प्रतिनिधित्व का आकलन करने के लिए गठित तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति ने मुख्यमंत्री को दी गयी अपनी रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर किये हैं। समिति में राज्य के अपर मुख्य सचिव एल खियांग्ते, प्रमुख सचिव केके सोन एवं प्रमुख सचिव वंदना डाडेल शामिल थीं।
समिति ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एवं मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को बुधवार को पेश की।
अपनी रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि संकलित और विश्लेषित आंकड़ों के अनुसार यह स्पष्ट है कि सरकार में प्रत्येक स्तर पर प्रोन्नति वाले पदों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है। राज्य भर में स्वीकृत प्रोन्नतिवाले पदों के विरुद्ध प्रोन्नति के आधार पर पद धारण करनेवाले कार्यरत कर्मचारियों की कुल संख्या से संबंधित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों का प्रतिशत क्रमशः 4.45 तथा 10.04 प्रतिशत ही है जो राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या (क्रमशः 12.08 प्रतिशत (एससी) और 26.20 प्रतिशत (एसटी) के जनसांख्यिकीय अनुपात से बहुत कम है।
समिति ने अपनी अनुशंसा में कहा है कि चूंकि राज्य की सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व अपेक्षित स्तर से काफी नीचे है, इसलिए प्रोन्नति में आरक्षण की वर्तमान नीति को जारी रखना आवश्यक है।
समिति ने कहा है कि इस स्तर पर वर्तमान प्रावधान में किसी भी प्रकार की ढील देना या किसी भी खंड को हटाना न्यायोचित या वांछनीय नहीं होगा और बड़े पैमाने पर सामुदायिक हितों के विरुद्ध होगा।
समिति ने कहा कि झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) तथा झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) और कार्मिक प्राशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग को भी वर्षवार तथा श्रेणीवार विवरण के साथ परिणामों के डेटाबेस को बनाए रखने की आवश्यकता है की कितने एससी, एसटी, ओबीसी ने अनारक्षित श्रेणी के अंतर्गत योग्यता प्राप्त की है। सभी विभागों द्वारा आरक्षण नीति और उसके प्रावधानों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिए अधिक कठोर और निरंतर निगरानी रखना आवश्यक है और इसके लिए कार्मिक विभाग के अंतर्गत एक पृथक कोषांग बनाया जाना चाहिए।
झारखंड में सरकार की सेवाओं और पदों के अधीन प्रोन्नति, प्राशासनिक दक्षता और क्रीमी लेयर में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता पर एक अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने के लिए इस तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति का सरकार ने गठन किया था जिसने राज्य सरकार को बुधवार को अपनी रिपोर्ट पेश की।
समिति ने बताया कि प्राप्त आंकड़ों के अनुसार राज्य सरकार के 34 विभागों में से 31 प्रमुख विभागों में कुल स्वीकृत पदों की संख्या 3,01,1 98 है जिनमें से 57,182 पद प्रोन्नति के आधार पर भरे जाते हैं जबकि 2,44,016 पद सीधी नियुक्ति से भरे जाते हैं।
समिति ने अपने अध्ययन में जनरैल सिंह के मामले में उच्चतम न्यायालय के दृष्टिकोण पर भी पुनर्विचार किया। जनरैल सिंह केस (एसएलपी) (सी) 30621/2011 के निर्णय के अनुसार अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सरकारी पदों पर प्रतिनिधित्व कि अपर्याप्तता पर नागराज मामले में निर्धारित मापदंडों के आधार पर राज्य द्वारा परिमाणात्मक आंकड़े एकत्र किये जाएंगे जिसे अदालतों द्वारा जांचा जा सकेगा।
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