पटना:बिहार विधानसभा चुनाव में महिला मतदाता निर्णायक मानी जाती हैं। लेकिन चुनाव को लेकर जारी सियासी सरगर्मी के बीच आधी आबादी को लेकर दलों की उदासी सामने आई है। वैसे तो बिहार की सियासत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व हमेशा सीमित और चुनिंदा रहा है। यहां तक कि जब महिलाएं विधानसभा तक पहुंचती हैं, वह अक्सर पिता, भाई या पति की छाया में ही सक्रिय रहती हैं। ऐसे में इस बार भी कई विधानसभा सीटों पर महिलाएं मजबूती से टक्कर देने के लिये तैयार हैं। लेकिन महागठबंधन की तुलना में एनडीए ने महिलाओं पर ज्यादा भरोसा जताया और उन्हें तवज्जो दिया है। एनडीए के पांच घटक दलों ने मिलकर 34 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा है। जबकि महागठबंधन के सात घटक दलों ने मिलकर सिर्फ 31 महिलाओं को ही टिकट दिया है।aएनडीए में भाजपा और जदयू 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इसके साथ दोनों ही दलों ने 13-13 महिलाओं को टिकट दिया है। वहीं अन्य घटक दलों में चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) जिनके खाते में 29 सीटें गई हैं। इस पार्टी ने पांच महिलाओं को टिकट दिया है। जबकि जीतन राम मांझी की पार्टी 6 सीटों पर चुनाव लड़ रही। इनमें से 2 सीटों पर महिलाएं चुनाव लड़ रहीं हैं। दरअसल, दोनों महिलाएं हम के संरक्षक और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के परिवार से ही हैं।
साथ ही उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी भी 6 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है। उपेंद्र कुशवाहा ने एक सीट पर महिला उम्मीदवार को उतारा है। लेकिन खास बात यह है कि ये महिला उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी ही है\ वहीं, महागठबंधन में राजद ने 24 महिलाओं को टिकट दिया था। लेकिन मोहनियां की प्रत्याशी श्वेता सुमन का नामांकन रद्द होने के कारण पार्टी के सिम्बल पर अब 23 महिलाएं ही चुनावी मैदान में डटी हुई हैं। बता दें कि बिहार में 243 सीटों पर महागठबंधन के द्वारा 254 उम्मीदवार उतारे गए हैं।
घटक दलों में कांग्रेस 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही। हालांकि, कांग्रेस ने 5 महिलाओं को टिकट दिया है। इसके अलावा भाकपा-माले जो 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, सिर्फ एक महिला को टिकट दिया है। वहीं, वीआईपी और आईआईपी ने भी एक-एक महिला पर भरोसा जताया है, जबकि भाकपा और माकपा ने एक भी महिला को टिकट नहीं दिया है।
उल्लेखनीय है कि आजादी से लेकर अब तक हुए तमाम चुनावों में मात्र 285 महिलाएं ही चुनाव जीत सकी हैं। 1972 के चुनाव में 45 महिलाएं चुनावी मैदान में उतरीं, लेकिन कोई जीत नहीं सकीं। 1977 के चुनाव में 96 में से 13, 1980 में 77 में से 11, 1985 में 103 में से 15 तो 1990 में 147 में से 10 महिलाएं चुनाव जीत सकीं। 1995 के चुनाव में 263 में से 11, 2000 के चुनाव में 189 में से 19 तो फरवरी 2005 के चुनाव में 234 में से तीन तो अक्टूबर 2005 के चुनाव में 138 में से 25 महिलाएं चुनाव जीतकर सदन में पहुंचीं। 2010 के चुनाव में 307 में से 34 तो 2015 में 273 में से 28 महिलाएं चुनाव जीतीं।
वहीं 2020 के चुनाव में रिकॉर्ड संख्या में 370 महिलाएं चुनावी मैदान में उतरीं और इसमें से 26 जीतकर सदन पहुंचीं। हालांकि हर चुनावों में वे पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान करती हैं। विधानसभा के मतदाता सूची के अनुसार किसी भी विधानसभा क्षेत्र में शत प्रतिशत लिंगानुपात नहीं हैं। महिलाओं का लिंगानुपात 892 है। यानी एक हजार पुरुष मतदाताओं पर 892 महिला मतदाता ही हैं। बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में सिर्फ 74 विधानसभा में लिंगानुपात कुछ संतोषजनक हैं, जहां पर लिंगानुपात 900 से अधिक है। सबसे दिलचस्प तो यह है कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में महिलाओं का लिंगानुपात संतोषजनक है वहां से कम महिला सदस्य निर्वाचित होकर आती हैं।
राज्य की सिर्फ 11 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर 10 पुरुष मतदाताओं की तुलना में नौ महिला मतदाता हैं। सिर्फ 11 विधानसभा क्षेत्रों से ही लिंगानुपात ठीक होने पर महिला विधायक निर्वाचित हुई। इसमें त्रिवेणीगंज, धमदाहा, कोढ़ा, राजापाकर, कटोरिया, संदेश, शेरघाटी, बाराचट्टी, हिसुआ, वारसलीगंज और जमुई विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। हालांकि इसकी तुलना में वैसी विधानसभा क्षेत्रों से भी महिलाएं निर्वाचित हुई जहां पर लिंगानुपात उनके अनुकूल नहीं था। इसमें रामनगर, नरकटियागंज, बेतिया, केसरिया, परिहार, बाबूबरही, फुलपरास, प्राणपुर, गौराबौराम, गोपालगंज, महनार, मोकामा, मसौढ़ी और नोखा विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं।
बिहार में भागलपुर विधानसभा क्षेत्र के मतदाता सूची में सर्वाधिक लिंगानुपात है। भागलपुर विधानसभा क्षेत्र का लिंगानुपात 958 है जो बिहार की सभी विधानसभा क्षेत्रों में अधिक है। यहां के मतदाता सूची में एक हजार पुरुषों की तुलना में 958 महिला मतदाता हैं। लिंगानुपात के मामले में नाथनगर विधानसभा क्षेत्र दूसरे स्थान पर हैं, जहां पर प्रति हजार पुरुष मतदाताओं की तुलना में 957 महिला मतदाता हैं। तीसरे स्थान पर बीहपुर है, जिसका लिंगानुपात 949 है। जबकि गोपालपुर का लिंगानुपात 944 है। सिर्फ 74 ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां का लिंगानुपात 900 से अधिक है। यानी 10 पुरुष मतदाताओं की तुलना में नौ महिला मतदाता हैं। इसमें त्रिवेणीगंज, धमदाहा, कोढ़ा, राजापाकर, कटोरिया, संदेश, शेरघाटी, बाराचट्टी, हिसुआ, वारसलीगंज, जमुई, बिस्फी, झंझारपुर, पीपरा, त्रिवेणीगंज, रानीगंज, फारबिसगंज, अररिया, सिकटी, बनमनखी, रूपौली, धमदाहा, पूर्णिया, कटिहार, कोढ़ा, बिहारीगंज, सिंहेश्वर, मधेपुरा, सोनबरसा, सहरसा, सिमरी बख्तियारपुर, महिषी, कुशेश्वरस्थान, बेनीपुर, अलीनगर, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, भोरे, बनियापुर, छपरा, परसा, लालगंज, महुआ, राजापाकर, पातेपुर, अलौली, बीहपुर, गोपालपुर, पीरपैंती, कहलगांव, भागलपुर, सुल्तानगंज, नाथनगर, कटोरिया, बेलहर, शेखपुरा, बरबीघा, बिहार शरीफ, राजगीर, हिलसा, दीघा, पटना साहिब, मसौढ़ी, संदेश, बक्सर, राजपुर, सासाराम, डेहरी, गोह, शेरघाटी, इमामगंज, बाराचट्टी, बोधगया, गया टाउन, अतरी, वजीरगंज, रजौली, हिसुआ, नवादा, गोविंदपुर, वारसलिगंज, सिकंदरा, झाझा और चकाई शामिल है।
गौरतलब है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में रामनगर, नरकटियागंज, बेतिया, केसरिया, परिहार, बाबूबरही, फुलपरास, त्रिवेणीगंज, धमदाहा, प्राणपुर, कोढ़ा, गौराबौराम, गोपालगंज, राजापाकर, महनार, कटोरिया, मोकामा, मसौढ़ी, संदेश, नोखा, शेरघाटी, बाराचट्टी, हिसुआ, बारसलीगंज और जमुई में महिलाओं द्वारा जीत दर्ज की गई थी।