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माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में सरकार की सख्ती और बदलाव का असर

By राजेंद्र पाराशर | Updated: June 18, 2019 05:57 IST

तीन माह पहले पुलिस ने जिस तरह से कुठियाला के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करके कुछ अन्य लोगों को भी शामिल किया उससे पूरे विश्वविद्यालय में मानो भूचाल ही आ गया था.

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अपनी तीन दशकों की यात्रा में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल इतने झंझावातों से कभी नहीं गुजरा जितना इस शैक्षिणक सत्र में, लेकिन फिर भी स्नातकोत्तर विषयों में प्रवेश लेने के वाले छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. प्रति सीट प्रवेश लेने वालों का अनुपात पिछले वर्ष के 3.82 से बढ़कर 4.88 हुआ है.

विश्वविद्यालय को एक विचारधारा विशेष का केंद्र बनाकर जिस तरह से कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की गई और अनुषांगिक संगठनों को लाखों रुपए दिए गए उस पर कांग्रेस सरकार की नजर पड़ना लाजिÞमी था, मगर कमलनाथ सरकार ने आते ही जिस तरह से अपनी प्राथमिकताओं में पत्रकारिता विश्वविद्यालय को रखा और एक पत्रकार को वहां का कुलपति नियुक्त किया तभी से यह स्पष्ट था कि इस विश्वविद्यालय में आने वाले समय में विचारधारा की लड़ाई से आगे जाकर भी बहुत कुछ होने वाला है. विश्वविद्यालय में यूं तो बहुत से कुलपति रहे, लेकिन सबसे ज्यादा विवादास्पद समय, दस सालों तक एक-छत्र राज्य चलाने वाले आरएसएस के नुमाइंदे और स्वयंसेवक प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाला का रहा. कुठियाला थे तो एंथ्रोपोलाजी के प्रोफेसर, लेकिन बन गए पात्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति.

तीन माह पहले पुलिस ने जिस तरह से कुठियाला के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करके कुछ अन्य लोगों को भी शामिल किया उससे पूरे विश्वविद्यालय में मानो भूचाल ही आ गया था. तब अखबारों से ऐसा लगा कि विश्वविद्यालय में अब नियमित शैक्षणिक गतिविधियां हो पाना मुश्किल होगा, लेकिन विश्वविद्यालय के एक बड़े वर्ग ने जिस तरह से पूरे शैक्षणिक वातावरण को फिर से संभाला उसने विश्वविद्यालय के प्रति आम जनमानस की धारणा ही बदल दी.

नए कुलपति ने आते ही बहुत से परिवर्तन किए जिनमें सभी कोर्स के पाठ्यक्रम को बदलना शामिल था . पाठ्यक्रम के बदलाव को लेकर विश्वविद्यालय के सभी शिक्षक ना केवल उत्साहित थे बल्कि उन्होंने तीन महीने के कम समय में एक गुणवत्तापूर्ण अंतरराष्ट्रीय स्तर का पाठ्यक्रम तैयार किया. कहने को तो वर्तमान कुलपति, जो पत्रकार भी है, ने बहुत से नए परिवर्तन किए लेकिन विश्वविद्यालय की बिगड़ी छवि को कैसे ठीक करें, यह उन्हें भी समझ नही आया, लेकिन नए सत्र में बढ़े हुए प्रवेश आवेदनों ने उनका काम आसान कर दिया.

ऐसे समय जब यह माना जा रहा था कि विश्वविद्यालय की छवि ईओडब्ल्यू की शिकायत के बाद खराब हुई है तब छात्र यहां एडमिशन लेने में संकोच बरतेंगे, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन तब आश्चर्यचकित रह गया जब उसे पिछले वर्षों की तुलना में ज्यादा ऐडमिशन फार्म मिले. नए कुलपति ने पाठ्यक्रमों में सुधार की समय सीमा के कारण स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम नहीं चलाने का निर्णय लिया था तब भी विश्वविद्यालय को पोस्ट ग्रैजुएट प्रोग्राम्स में आशातीत एप्लीकेशन मिलीं.

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