नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना ऐसे मिशनों को अंजाम देने के लिए जानी जाती है जिसके बारे में बाकी लोग सोच भी नहीं सकते। अब वायु सेना ने हाल ही में एक और ऐसा कारनामा कर दिखाया है जिसके बाद दुश्मन कोई हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा। भारतीय वायु सेना ने पहली बार अपने बेड़े के सबसे बड़े परिवहन विमान C-130 J की कारगिल हवाई पट्टी पर रात में लैंडिंग कराई। रास्ते में इलाके की मास्किंग करते हुए वायुसेना के गरुड़ कमांडोज ने प्रशिक्षण मिशन को भी पूरा किया। भारतीय वायु सेना ने इसकी वीडियो भी जारी की है।
बता दें कि जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प में 20 सैनिकों के जान गंवाने के बाद से ही भारत ने इस इलाके में बड़ी सैन्य तैनाती कर रखी है। इस दौरान दो दशक में पहली बार, चीन और पीएलए को घातक पलटवार का सामना करना पड़ा था और आज भी भारतीय सेना और वायुसेना इस दुर्गम क्षेत्र में मुस्तैदी से तैनात हैं।
करगिल के अलावा भारतीय वायु सेना के सी-17 परिवहन विमान को बीते दिनों आगरा के सैन्य क्षेत्र में स्वदेशी रूप से विकसित एक ‘हेवी प्लेटफॉर्म’ को सफलतापूर्वक उतारा गया। इस प्लेटफॉर्म की क्षमता 16 टन का भार वहन करने की है। अधिकारियों ने बताया कि यह पहली बार है कि 16 टन भार क्षमता वाले 24 फुट गुणा आठ फुट के आकार वाले प्लेटफॉर्म को भारतीय वायुसेना के विमान से पहुंचाया गया।
चीन सीमा पर पुख्ता तैयारियां
चीन से आने वाले किसी भी खतरे से निपटने के लिए भारतीय सेना के साथ वायुसेना भी अपनी तैयारियां पुख्ता करने में जुटी हुई है। सरकार भी इस मामले पर गंभीर है क्योंकि सैन्य रणनीतिकारों का मानना है कि आने वाले समय में पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन से संभावित युद्ध का खतरा है। ऐसे में वास्तविक नियंत्रण रेखा, चीन से लगती सीमा और चीन से नजदीक स्थित भारतीय क्षेत्रों में सैन्य तैयारियां पुख्ता करने पर जोर दिया जा रहा है।
भारतीय वायुसेना के पास अब 25 हवाई क्षेत्र हैं जहां से वे चीन में अभियान शुरू कर सकते हैं। भारतीय वायुसेना चीन सीमा के पास अपने उन्नत लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) को तेजी से अपग्रेड कर रही है। पूर्वी लद्दाख में, दौलत बेग ओल्डी, फुकचे और न्योमा में हवाई क्षेत्रों का निर्माण किया जा रहा है और पुरानी हवाई पट्टियों को अपग्रेड किया जा रहा है। न्योमा एयर बेस वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगभग 50 किमी दूर है, इसे ऐसे विकसित किया जा रहा है जिससे कि यहां से लड़ाकू विमान, उन्नत सैन्य ड्रोन और मिसाइल रोधी प्रणाली को संचालित किया जा सके।