भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा में भेजे जाने के मोदी सरकार के फैसले पर हंगामा हो रहा है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने नेताओं ने मोदी सरकार और जस्टिस गोगोई पर हमला बोला है। जस्टिस गोगोई ने अक्टूबर 2018 में देश के 46वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ली थी। 13 महीने के अपने कार्यकाल में जस्टिस गोगोई ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों पर कुछ महत्वपूर्ण फैसले दिए और अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करा लिया। इनमें अयोध्या का 'राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवाद' प्रमुख है। जस्टिस गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हुए थे। रिटायरमेंट के चार महीने बाद ही उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया गया है।
सरकार के इस फैसले पर जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा है कि कुछ समय से अटकलें लग रही थीं कि गोगोई को क्या सम्मान मिलेगा? आश्चर्य की बात है यह है कि इतनी जल्दी मिल गया। उन्होंने सवाल खड़ा किया और पूछा है कि क्या आखिरी गढ़ ढह गया है?
AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि 'क्या यह 'इनाम है'? लोगों को जजों की स्वतंत्रता में यकीन कैसे रहेगा?
कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने मोदी सरकार पर तंज कसते हुए कहा कहा कि नमो संदेश! या तो राज्यपाल, चेयरमैन या राज्यसभा... या तो तबादले झेलो और इस्तीफा देकर घर जाओ।
आइए अब आपको जस्टिस रंजन गोगोई के कुछ बड़े फैसले बताते हैं।
अयोध्या राम मंदिर विवाद पर फैसला
न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने नौ नवंबर को अयोध्या भूमि विवाद का पटाक्षेप कर दिया था. यह मामला दशकों पुराना था. संविधान पीठ ने अपने फैसले में हिंदुओं को राम मंदिर के निर्माण के लिए 2.77 एकड़ विवादित भूमि सौंप दी और यह आदेश भी दिया कि मुसलमानों को इस पवित्र नगरी में एक मस्जिद बनाने के लिए किसी प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन दी जाए. अयोध्या मामले में उन्होंने तय किया कि दलीलों को लंबे समय तक खींचे जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी और 18 अक्टूबर की निर्धारित समय सीमा से दो दिन पहले ही यह कहते हुए सुनवाई पूरी कर दी कि 'बस बहुत हो गया.'
राफेल मामले पर मोदी सरकार को क्लीन चिट
न्यायमूर्ति गोगोई का नाम उस पीठ की अध्यक्षता करने के लिए भी याद रखा जाएगा, जिसने राफेल लड़ाकू विमान सौदे के मामले में दो बार मोदी सरकार को 'क्लीन चिट' दी. पहली बार रिट याचिका पर और फिर दूसरी बार पुनर्विचार याचिकाओं पर. इन याचिकाओं के जरिए राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे पर शीर्ष न्यायालय के 14 दिसंबर 2018 के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया था. साथ ही, पीठ ने शीर्ष न्यायालय की कुछ टिप्पणियों को गलत तरीके से कहने को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भविष्य में अधिक सावधानी बरतने की नसीहत दी.
सबरीमाला मामले को बड़ी बेंच को भेजा
सीजेआई गोगोई ने उस पीठ की भी अध्यक्षता की जिसने सबरीमाला मामले में 3-2 के बहुमत से फैसला दिया. उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने केरल के सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति के फैसले से जुड़ी पुनर्विचार याचिकाओं को सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया। सीजेआई रंजन गोगोई द्वारा लिखे गए बहुमत के निर्णय में पुनर्विचार याचिकायें सात न्यायाधीशों की पीठ के लिए लंबित रखी गई, लेकिन उसने 28 सितंबर, 2018 के बहुमत के फैसले पर रोक नहीं लगाई जो सभी आयु वर्ग की महिलाओं को इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति देता है.
नेताओं की तस्वीर पर पाबंदी
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति पी.सी. घोष की पीठ ने सरकारी विज्ञापनों में नेताओं की तस्वीर लगाने पर पाबंदी लगा दी थी. फैसले के बाद से सरकारी विज्ञापन में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश, संबंधित विभाग के केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, संबंधित विभाग के मंत्री के अलावा किसी भी नेता की सरकारी विज्ञापन पर तस्वीर के प्रकाशन पर पाबंदी है.
सात भाषाओं में फैसला
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को अंग्रेजी और हिंदी समेत 7 भाषाओं में प्रकाशित करने का फैसला प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने ही लिया. इससे पहले तक उच्चतम न्यायालय के फैसले केवल अंग्रेजी में ही प्रकाशित होते थे.
सुप्रीम कोर्ट भी आरटीआई के अधीन
सीजेआई न्यायमूर्ति गोगोई ने उस पीठ की भी अध्यक्षता की जिसने 13 नवंबर को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि चीफ जस्टिस का कार्यालय सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकार है. हालांकि, पीठ ने यह भी कहा कि सार्वजनिक हित में सूचना का खुलासा करते हुए न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ध्यान में रखा जाए.
आरोपों का भी किया सामना
सीजेआई के पद पर न्यायमूर्ति गोगोई का कार्यकाल विवादों से अछूता नहीं रहा. उन्हें यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना करना पड़ा. हालांकि, वह इसमें पाक-साफ करार दिए गए. न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय एक आंतरिक जांच समिति ने उन्हें इस मामले में 'क्लीन चिट' दे दी.
बताते चलें कि साल 2018 के जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जजों ने एक अभूतपूर्व कदम में उठाते हुए प्रेस कॉन्फ्रेस बुलाई थी। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जस्टिस गोगोई, मदन बी लोकुर, जस्टिस चेलमेश्वर और कुरियन जोसेफ शामिल थे। इन जजों ने महत्वपूर्ण मामले के आवंटन को लेकर तात्कालीन CJI दीपक मिश्रा के आचरण पर सवाल उठाए थे।
फिलहाल राज्यसभा के प्रस्ताव को जस्टिस रंजन गोगोई ने स्वीकार कर लिया है। ऐसे में देखना होगा कि वो उठ रहे तमाम सवालों का क्या जवाब देते हैं।