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Hindi Diwas 2019, Kavita: हिंदी दिवस पर पढ़ें पांच बड़े कवियों की सुंदर कविताएं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 14, 2019 11:03 IST

Hindi Diwas 2019 Kavita Speech in Hindi: आजादी के बाद 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। इसलिए हर 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था।

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ठळक मुद्देहर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है हिंदी दिवसआजादी के बाद 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था

Hindi Diwas 2019: आज हिंदी दिवस है। भारत में कई बोलियां और भाषाएं हैं। इसमें हिंदी सबसे अहम है। हिंदी लगभग पूरे देश में समझे जा सकने वाली भाषा है। दक्षिण से लेकर पूर्वोत्तर तक हिंदी को समझने वाले लोग हैं। इसलिए भारत जैसे देश में इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। आजादी के बाद 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। हिंदी को देश की राजभाषा घोषित किए जाने के दिन ही हर साल हिंदी दिवस मनाने का भी फैसला किया गया, हालांकि पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया। हिंदी दिवस के इस मौके पर आप भी पढ़ें कुछ सुंदर कविताएं...

हरिवंश राय बच्चन की कविता- 'जो बीत गई सो बात गई'

जीवन में एक सितारा थामाना वह बेहद प्यारा थावह डूब गया तो डूब गयाअंबर के आंगन को देखोकितने इसके तारे टूटेकितने इसके प्यारे छूटेजो छूट गए फ़िर कहाँ मिलेपर बोलो टूटे तारों परकब अंबर शोक मनाता हैजो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुमथे उस पर नित्य निछावर तुमवह सूख गया तो सूख गयामधुबन की छाती को देखोसूखी कितनी इसकी कलियाँमुरझाईं कितनी वल्लरियाँजो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलींपर बोलो सूखे फूलों परकब मधुबन शोर मचाता हैजो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला थातुमने तन मन दे डाला थावह टूट गया तो टूट गयामदिरालय का आंगन देखोकितने प्याले हिल जाते हैंगिर मिट्टी में मिल जाते हैंजो गिरते हैं कब उठते हैंपर बोलो टूटे प्यालों परकब मदिरालय पछताता हैजो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैंमधु घट फूटा ही करते हैंलघु जीवन ले कर आए हैंप्याले टूटा ही करते हैंफ़िर भी मदिरालय के अन्दरमधु के घट हैं,मधु प्याले हैंजो मादकता के मारे हैंवे मधु लूटा ही करते हैंवह कच्चा पीने वाला हैजिसकी ममता घट प्यालों परजो सच्चे मधु से जला हुआकब रोता है चिल्लाता हैजो बीत गई सो बात गई

रामधारी सिंह दिनकर की कविता- शक्ति और क्षमा

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबलसबका लिया सहारापर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसेकहो, कहाँ, कब हारा?

क्षमाशील हो रिपु-समक्षतुम हुये विनत जितना हीदुष्ट कौरवों ने तुमकोकायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने काकुफल यही होता हैपौरुष का आतंक मनुजकोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग कोजिसके पास गरल होउसको क्या जो दंतहीनविषरहित, विनीत, सरल हो।

तीन दिवस तक पंथ मांगतेरघुपति सिन्धु किनारे,बैठे पढ़ते रहे छन्दअनुनय के प्यारे-प्यारे।

उत्तर में जब एक नाद भीउठा नहीं सागर सेउठी अधीर धधक पौरुष कीआग राम के शर से।

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहिकरता आ गिरा शरण मेंचरण पूज दासता ग्रहण कीबँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो, तो शर में हीबसती है दीप्ति विनय कीसन्धि-वचन संपूज्य उसी काजिसमें शक्ति विजय की।

सहनशीलता, क्षमा, दया कोतभी पूजता जग हैबल का दर्प चमकता उसकेपीछे जब जगमग है।

सुमित्रानंदन पंत की कविता- 'मौन-निमंत्रण'

स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसारचकित रहता शिशु सा नादान ,विश्व के पलकों पर सुकुमारविचरते हैं जब स्वप्न अजान,

न जाने नक्षत्रों से कौननिमंत्रण देता मुझको मौन !सघन मेघों का भीमाकाशगरजता है जब तमसाकार,दीर्घ भरता समीर निःश्वास,प्रखर झरती जब पावस-धारन जाने ,तपक तड़ित में कौनमुझे इंगित करता तब मौन!

देख वसुधा का यौवन भारगूंज उठता है जब मधुमास,विधुर उर के-से मृदु उद्गारकुसुम जब खुल पड़ते सोच्छ्वास,न जाने, सौरभ के मिस कौनसंदेशा मुझे भेजता मौन!

क्षुब्ध जल शिखरों को जब बातसिंधु में मथकर फेनाकार,बुलबुलों का व्याकुल संसारबना,बिथुरा देती अज्ञात,उठा तब लहरों से कर कौनन जाने, मुझे बुलाता कौन!

स्वर्ण,सुख,श्री सौरभ में भोरविश्व को देती है जब बोरविहग कुल की कल-कंठ हिलोरमिला देती भू नभ के छोरन जाने, अलस पलक-दल कौनखोल देता तब मेरे मौन !

तुमुल तम में जब एकाकारऊँघता एक साथ संसार ,भीरु झींगुर-कुल की झंकारकँपा देती निद्रा के तारन जाने, खद्योतों से कौनमुझे पथ दिखलाता तब मौन !

कनक छाया में जबकि सकलखोलती कलिका उर के द्वारसुरभि पीड़ित मधुपों के बालतड़प, बन जाते हैं गुंजारन जाने, ढुलक ओस में कौनखींच लेता मेरे दृग मौन!

बिछा कार्यों का गुरुतर भारदिवस को दे सुवर्ण अवसान,शून्य शय्या में श्रमित अपार,जुड़ाता जब मैं आकुल प्राणन जाने, मुझे स्वप्न में कौनफिराता छाया-जग में मौन!

न जाने कौन अये द्युतिमानजान मुझको अबोध, अज्ञान,सुझाते हों तुम पथ अजानफूँक देते छिद्रों में गानअहे सुख-दुःख के सहचर मौननहीं कह सकता तुम हो कौन!

महादेवी वर्मा की कविता- जीवन दीप

किन उपकरणों का दीपक,किसका जलता है तेल?किसकि वर्त्ति, कौन करताइसका ज्वाला से मेल?

शून्य काल के पुलिनों पर-जाकर चुपके से मौन,इसे बहा जाता लहरों मेंवह रहस्यमय कौन?

कुहरे सा धुँधला भविष्य है,है अतीत तम घोर ;कौन बता देगा जाता यहकिस असीम की ओर?

पावस की निशि में जुगनू का-ज्यों आलोक-प्रसार।इस आभा में लगता तम काऔर गहन विस्तार।

इन उत्ताल तरंगों पर सह-झंझा के आघात,जलना ही रहस्य है बुझना –है नैसर्गिक बात!

माखनलाल चतुर्वेदी की कविता- पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला केगहनों में गूंथा जाऊँ,

चाह नहीं, प्रेमी-माला मेंबिंध प्यारी को ललचाऊं,

चाह नहीं, सम्राटों के शवपर हे हरि, डाला जाऊं,

चाह नहीं, देवों के सिर परचढ़ूं भाग्य पर इठलाऊं।

मुझे तोड़ लेना वनमाली!उस पथ पर देना तुम फेंक,मातृभूमि पर शीश चढ़ानेजिस पथ जावें वीर अनेक।

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