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हरियाणा विधानसभा चुनाव: 'ताऊ' की विरासत के नए उत्तराधिकारी दुष्यंत चौटाला, महज 11 महीने में लिखी इबारत

By बलवंत तक्षक | Updated: October 25, 2019 08:09 IST

Haryana Assembly Results 2019: जजपा के सुप्रीमो दुष्यंत चौटाला ने जींद जिले के उचाना कलां क्षेत्र से भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह की विधायक पत्नी प्रेमलता को भरी मतों से शिकस्त दे कर धमाका कर दिया है. जजपा ने दुष्यंत चौटाला के दादा ओमप्रकाश चौटाला और चाचा अभय चौटाला के नेतृत्व वाली मूल पार्टी इनेलो को बुरी तरह पछाड़ दिया है. दुष्यंत अब जाट समुदाय तथा युवाओं में एक सम्मानित नेता बनकर उभरे हैं.

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ठळक मुद्देपिछले साल इनेलो में दुष्यंत के पिता अजय चौटाला और चाचा अभय चौटाला के बीच दो फाड़ हो गया था.अजय और उनके पिता इनेलो के कार्यकाल में हुए शिक्षक भर्ती घोटाले में सजा काट रहे हैं.

हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम ने पूर्व उपप्रधानमंत्री एवं दिग्गज जाट नेता देवीलाल की विरासत पर चर्चा का रुख उनके प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला के पक्ष में मोड़ दिया है. स्व. चौधरी देवीलाल जिन्हें 'ताऊ' के रूप में जाना जाता है, के परपोते दुष्यंत की जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने अपने गठन के 11 महीने में ही हरियाणा की राजनीति में अपनी पैठ बना ली है. जजपा ने दस सीटों पर जीत दर्ज की है. जजपा के सुप्रीमो दुष्यंत चौटाला ने जींद जिले के उचाना कलां क्षेत्र से भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह की विधायक पत्नी प्रेमलता को भरी मतों से शिकस्त दे कर धमाका कर दिया है. जजपा ने दुष्यंत चौटाला के दादा ओमप्रकाश चौटाला और चाचा अभय चौटाला के नेतृत्व वाली मूल पार्टी इनेलो को बुरी तरह पछाड़ दिया है. दुष्यंत अब जाट समुदाय तथा युवाओं में एक सम्मानित नेता बनकर उभरे हैं.

पिछले साल इनेलो में दुष्यंत के पिता अजय चौटाला और चाचा अभय चौटाला के बीच दो फाड़ हो गया था. अजय और अभय पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के पुत्र हैं. अजय और उनके पिता इनेलो के कार्यकाल में हुए शिक्षक भर्ती घोटाले में सजा काट रहे हैं.

जोखिम उठानेवाला व्यक्ति

कुछ लोग दुष्यंत को जोखिम उठाने वाला व्यक्ति मानते हैं. उन्होंने इनेलो के उत्तराधिकार को लेकर अपने चाचा अभय के साथ कानूनी लड़ाई में पड़ने की जगह नई पार्टी बनाने का विकल्प चुना था. कुछ खापों और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने चौटाला परिवार में मेल-मिलाप कराने की कोशिशें की थीं, लेकिन दुष्यंत अपने फैसले पर अटल रहे. गठन के एक महीने बाद ही जजपा को पिछले साल दिसंबर में जींद उपचुनाव में अपनी पहली चुनावी चुनौती का सामना करना पड़ा. उसके उम्मीदवार दिग्विजय चौटाला भाजपा के हाथों हार गए, लेकिन जजपा कांग्रेस के धुरंधर रणदीप सिंह सुरजेवाला को तीसरे स्थान पर धकेलने में कामयाब रही. इसके बाद जजपा ने लोकसभा चुनाव में तीन सीट आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ते हुए सात सीटों पर चुनाव लड़ा था.

भाजपा की लहर के चलते दुष्यंत चौटाला को खुद अपनी हिसार सीट गंवानी पड़ी थी. लेकिन यह हार उन्हें पार्टी निर्माण और विधानसभा चुनाव में एक शक्ति के रूप में उभरने के बड़े लक्ष्य की ओर जाने से नहीं रोक पाई.

अपने दम पर लड़ने का निर्णय लाभदायक रहा

जजपा ने इस बार किसी के साथ गठबंधन नहीं किया और विधानसभा चुनाव अपने दम पर ही लड़ा. दुष्यंत ने खुद कड़े मुकाबले वाली उचाना कलां सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी एवं भाजपा नेता प्रेमलता के खिलाफ लड़ने का विकल्प चुना और जीत दर्ज की. प्रेमलता ने पिछली बार उन्हें इस सीट पर हराया था.

किसानों की चिंता रेखांकित करनेवाला नेता 

सांसद के रूप में दुष्यंत चौटाला संसद में काफी सक्रिय थे. उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर 677 सवाल पूछे. किसानों की चिंताओं को रेखांकित करने के लिए वह कई बार ट्रैक्टर से संसद पहुंच जाते थे.पिछले पांच वर्षों में अपनी यात्रा को याद करते हुए दुष्यंत ने कहा था, ''काफी बदलाव हुआ है, राजनीति में आने के लिए मुझे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और आज मैं पार्टी का नेतृत्व कर रहा हूं. इसके लिए कड़े प्रयास और बड़े बदलावों की जरूरत है.''

बन सकते हैं किंगमेकर

मतगणना के दौरान एक समय सत्ता की चाबी जजपा के हाथ में नजर आ रही थी. जजपा 14 सीटों पर आगे चल रही थी और भाजपा और कांग्रेस के बहुमत हासिल करने के आसार नहीं थे. भाजपा और कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए जजपा का समर्थन हासिल करना जरूरी था. ऐसे में माना जा रहा था कि अगर दुष्यंत चौटाला को मुख्यमंत्री का पद दे दिया जाए तो उनकी पार्टी भाजपा या कांग्रेस में से किसी को भी समर्थन करने को तैयार हो सकती है. लेकिन अंतिम परिणाम आते-आते तस्वीर बदल गई.

भाजपा 40 सीटें जीत गई है और बहुमत के लिए उसे सिर्फ छह सीटों की जरूरत है, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत कर 8 विधायक विधानसभा में पहुंचे हैं. चूंकि, केंद्र में भाजपा की सरकार है, इसलिए ज्यादातर निर्दलीय विधायकों का समर्थन भाजपा को मिलने के आसार हैं. विश्लेषकों की मानें तो जैसे जैसे राजनीतिक हालात बदलते जाएंगे वे किंगमेकर की भूमिका में आ जाएंगे. दुष्यंत ने इस बारे में पत्ते नहीं खोले हैं कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में वह सरकार गठन में भाजपा का समर्थन करेंगे या फिर कांग्रेस का. उन्होंने कहा, ''कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा.पहले हम अपने विधायकों की बैठक बुलाएंगे और तय करेंगे कि सदन में हमारा नेता कौन होगा.इसके बाद किसी चीज पर आगे बढ़ेंगे.''

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