गुजरात बोर्ड: अल्पसंख्यक छात्रों को मुस्लिम एवं अन्य कैटेगरी में बांटने पर विवाद, सरकार ने कहा 2013 से यूज हो रहा है ये फॉर्म
By आदित्य द्विवेदी | Published: November 23, 2018 04:02 PM2018-11-23T16:02:04+5:302018-11-23T16:09:51+5:30
गुजरात सरकार का कहना है कि फॉर्म को 2013 से बदला नहीं गया है, वहीं सोशल ऐक्टिविस्ट सवाल उठा रहे हैं कि ऐसा डेटा जुटाने की जरूरत क्यों पड़ रही है। इसे लेकर कुछ स्टूडेंट्स में नाराजगी तो कुछ में डर है।
गुजरात में 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने वाले मुस्लिम छात्रों को सरकार चिन्हित कर रही है। ऐसी आशंका बोर्ड परीक्षा के फॉर्म में दिए गए एक विवादित कॉलम के बाद उठाई जा रही है। अहमदाबाद मिरर की एक रिपोर्ट के मुताबिक एग्जाम फॉर्म में पूछा गया है कि क्या वो अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं? अगर उसमें 'हां' कहा गया तो उसके बाद दो विकल्प दिए गए हैं- पहला मुस्लिम और दूसरा अन्य। रोचक बात ये है कि गुजरात में क्रिश्चियन, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन जैसे अन्य प्रमुख अल्पसंख्यक समुदाय हैं। लेकिन ऐसे में सवाल उठ रहा है कि गुजरात सरकार सिर्फ यही क्यों जानना चाहती है कि अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति मुस्लिम है या नहीं?
बोर्ड परीक्षा में शामिल होते हैं लाखों छात्र
गुजरात में बोर्ड परीक्षाओं का आयोजन गुजरात सेकेंड्री और हायर सेकेंड्री एजुकेशन (GSHSEB) आयोजित करती है। प्रत्येक वर्ष करीब 17.5 लाख छात्र बोर्ड एग्जाम में शामिल होते हैं। 2018 में 17.14 लाख छात्रों ने बोर्ड की परीक्षाएं दी। सभी छात्रों के लिए ऑनलाइन परीक्षा फॉर्म भरना अनिवार्य है। बहुत सारे ऐसे गरीब छात्र हैं जो कंप्यूटर और इंटरनेट के अभाव में दूसरों से अपना फॉर्म भरवाते हैं।
छात्रों को मिल रहा गलत संदेश
अहमदाबाद मिरर ने अपनी रिपोर्ट में दो माइनॉरिटी स्कूलों के प्रधानाध्यापकों की राय भी प्रकाशित की है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम छात्रों को चिन्हित करके एक गलत संदेश दिया जा रहा है। एक अन्य प्राध्यापक का कहना है कि ये हैरान करने वाला मुद्दा है। गुजरात सरकार पहले ही मुस्लिमों के प्रति व्यवहार को लेकर आलोचना झेलती रहती है। अगर बोर्ड जानना चाहता है कि छात्र किस अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं तो उन्हें सिख, जैन, पारसी और क्रिश्चियन ऑप्शन देना चाहिए। सिर्फ मुस्लिम क्यों?
विपक्ष ने सरकार पर साधा निशाना
विपक्ष के नेता और वडगाम विधानसभा क्षेत्र के विधायक जिग्नेश मेवाणी ने इसे असंवैधानिक करार दिया है। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने भी इसे लेकर भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि एक ओर भाजपा एकता और राष्ट्रवाद का जिक्र करती है और दूसरी ओर अपनी विभाजन आधारित नीति अख्तियार कर रही है।
सोशल एक्टिविस्ट भी उठा रहे सवाल
सेंटर ऑफ सोशल नॉलेज एंड एक्शन के सचिव अच्युत याग्निक का कहना है कि यह सवाल ही गलत है। उन्होंने कहा, 'बोर्ड को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के बीच भेद नहीं करना चाहिए। यह बोर्ड और शिक्षा मंत्री की असंवेदनशीलता है। मुख्यमंत्री इसका संज्ञान लेना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि आगे से ऐसी गलतियां ना हों।' राज्य सरकार का कहना है कि फॉर्म को 2013 से बदला नहीं गया है, वहीं सोशल ऐक्टिविस्ट सवाल उठा रहे हैं कि ऐसा डेटा जुटाने की जरूरत क्यों पड़ रही है। इसे लेकर कुछ स्टूडेंट्स में नाराजगी तो कुछ में डर है।