एके-47, सोशल मीडिया और कॉलेज की लड़कियों के लिए आतंक की राह अपना रहे कश्मीरी, ये पैटर्न खतरनाक है!
By आदित्य द्विवेदी | Updated: June 4, 2018 09:59 IST2018-06-04T09:42:24+5:302018-06-04T09:59:45+5:30
कश्मीर में बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद आतंकी बनने का एक नया पैटर्न शुरू हुआ है। अब लोग आजादी नहीं ग्लैमर के लिए आतंक का रास्ता अपना रहे हैं, जो 90 के दशक से बिल्कुल अलग है।

Terrorism| Terrorism Trends in Kashmiri Youths| Young Militants of Kashmir
श्रीनगर/नई दिल्ली, 4 जूनः 90 के दशक में आतंक की राह जाने वाले कश्मीरी युवाओं का तरीका था। वो सबसे पहले 'अपर ग्राउंड वर्कर' के तौर पर काम करते थे। उसके बाद उन्हें हथियारों की ट्रेनिंग के लिए कम से कम तीन महीने सीमा पार भेजा जाता था। वो अपने हथियारों के साथ वापस आते थे और पहचान छिपाकर चुपचाप काम को अंजाम देते थे। लेकिन 8 जुलाई 2016 को घाटी में आतंकियों के पोस्टर बॉय बुरहान वानी के एनकाउंटर ने इस पैटर्न को पूरी तरह बदल दिया है। अब आजादी नहीं, ग्लैमर के लिए युवा आतंक के रास्ते पर जा रहे हैं।
इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि नया पैटर्न एक आतंकी की मौत के बाद कई और आतंकी पैदा कर देता है। यह रिपोर्ट बुरहान वानी की मौत के बाद बने 35 आतंकियों के एनकाउंटर, उनके नेटवर्क, दोस्त और परिजनों से पूछताछ के बाद बनाई गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लैमर युवाओं को आतंक की राह पर लेकर जा रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक आतंकियों की ये पीढ़ी 1990 के बाद पैदा हुई है। इसने बंदूकें, हिंसा, खून देखा है। इनके लिए चर्चा का एकमात्र विषय आजादी है। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी आजादी के बारे में सुना है। अब घाटी के समाज ने भी आतंकियों को स्वीकार करना शुरू कर दिया है।
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कश्मीर में काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकार दया सागर एक फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं,
'आजादी सिर्फ एक नारा है जो कश्मीर में अपने मायने खो चुका है। अब सिर्फ कंधे पर एके 47 रखे आतंकियों का ग्लैमर है, जो खाली निट्ठले बैठे युवाओं को अपनी तरफ खींच रहा है। हिजबुल मुजाहिदीन शहीद होने के लिए तैयार बकरे की तरह, रायफल-बंदूकों से सजा कर उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर जारी कर देता है। आतंकी बन जाने का ठप्पा लगने के बाद एक अदना-सा चौथी फेल लड़का यहां रातों रात हीरो बन जाता है। वह भीड़ के बीच घूमता है तो लोग उसके हाथ चूमने के लिए बेताब रहते हैं। कश्मीर वि.वि और कालेजों में पढ़ने वाली दर्जनों लड़कियां रातों रात उसकी फैन हो जाती हैं और कश्मीर के बहके हुए युवा इस ग्लैमर की चकाचौंध में ‘गुमशुदा’ हो जाते हैं।'
आतंकी बनने के इस नए पैटर्न को देखिएः
- पंपोर का रहने वाला आदिल मुश्ताक मीर ने बुरहान वानी से प्रेरित होकर हथियार उठा लिए। उसने 1 अगस्त 2016 को आतंक का रास्ता अपनाया और 16 जून 2017 को एनकाउंटर में मारा गया। मुश्ताक मीर के एनकाउंटर के एक हफ्ते के अंदर कश्मीर के पांच नए युवकों ने आतंक का रास्ता अपना लिया। इसमें पुलवामा का परवेज अहमद मीर, त्राल का रसिक नबी भट, शोपियां का रई अहमद ठोकर, शोपियां का वसीम अहमद वानी और कुलाम का जवैद अहमद भट शामिल था।
- पुलवामा के मोहम्मद अशरफ डार ने 14 सितंबर 2016 को आतंक का रास्ता अपनाया। 9 अगस्त 2017 को दो और आतंकियों के साथ उसका एनकाउंटर कर दिया गया। डार के एनकाउंटर के बाद चार नई भर्तियां हुईं इसमें पुलवामा का मोहम्मद यूसुफ गनई, फरीद मोइनउद्दीन, आरज़ू बशीर नजर और इरफान हसन शामिल थे।
- वानी की मौत के बाद कुलगाम के वकील अहम ठोकर ने 6 सितंबर 2016 को आतंक का रास्ता अपनाया था। उसे 12 फरवरी 2017 को कुलगाम में फारुक अहमद डार और यूनुस लोने के साथ मार गिराया गया। इसके बाद लोने के एक खास दोस्त दाऊद अहमद के सहयोगी ने 10 मार्च 2017 को आतंक का रास्ता अपनाया।
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इस तरीके से आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद उससे प्रेरित होकर करीब 35 कश्मीरी युवकों ने आतंक का रास्ता अख्तियार किया है। लोग आजादी नहीं, ग्लैमर की वजह से आतंक की राह पर जा रहे हैं। उन्हें लगता है कीड़े-मकोड़ की तरह जीने से अच्छा है आतंक का रास्ता अपना लो। 90 के दशक में बाकायदा आतंक की ट्रेनिंग दी जाती थी। अब फोटो सेशन होता है। समाज में लोग डरते हैं। कॉलेज लड़कियों के लिए हीरो बन जाते हैं। आतंकियों को भर्ती का ये नया पैटर्न बेहद खतरनाक है। सरकार को इससे निपटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए।
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